सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों से प्रभावित गुलबर्ग सोसायटी में संग्रहालय के लिए एकत्र धन के दुरुपयोग के मामले में गुरुवार को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति की गिरफ्तारी पर शुक्रवार तक के लिए अंतरिम रोक लगा दी। इस दंपति की अग्रिम जमानत की याचिका गुरुवार को ही गुजरात हाईकोर्ट ने खारिज की थी। प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद को 13 फरवरी तक गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया जाता है। अदालत इनके मामले की तभी सुनवाई करेगी।

हाई कोर्ट में अग्रिम जमानत की याचिका खारिज होने के बाद तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति की गिरफ्तारी की संभावना को देखते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और वकील अपर्णा भट ने इस मामले का प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष उल्लेख किया। उनका कहना था कि पुलिस इस दंपति को गिरफ्तार करने वाली है, इसलिए यह असाधारण स्थिति उत्पन्न हो गई है और अदालत को इस मामले की तत्परता से सुनवाई करनी चाहिए।

अदालत ने दोनों की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ इस दौरान अपील दायर की जाए। इस दंपति ने अदालत से अनुरोध किया था कि उसे शीर्ष अदालत में अपील करने का मौका देने के लिए इस आदेश पर रोक लगाई जाए। लेकिन हाईकोर्ट ने अनुरोध ठुकरा दिया था। इसके बाद एक घंटे के भीतर ही तीस्ता और उनके पति ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी कि सीतलवाड़ जांच में सहयोग नहीं कर रही हैं और ऐसी स्थिति में उन्हें पूरी तरह अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती है।

सीतलवाड़ और उनके पति के खिलाफ अमदाबाद में गुलबर्ग सोसायटी में संग्रहालय के निर्माण से संबंधित मामले में गुजरात पुलिस की अपराध शाखा ने धोखाधड़ी, अमानत में खयानत और आयकर कानून के तहत मामला दर्ज किया है। गोधरा के बाद 2002 में दंगों के दौरान आग की भेंट चढ़ी गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी के ही एक दंगा पीड़ित ने तीस्ता सीतलवाड़, उनके पति जावेद आनंद और उनके दो गैर सरकारी संगठनों सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस और सबरंग ट्रस्ट के खिलाफ अमदाबाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। इस शिकायत में आरोपियों पर 1.51 करोड़ रुपए का गबन करने का आरोप लगाया गया था।

शिकायत के मुताबिक आरोपियों ने गुलबर्ग सोसायटी को संग्रहालय में तब्दील करने के लिए धन इकट्ठा किया था और अब उन्होंने 1.51 करोड रुपए का गबन कर लिया है। दूसरी ओर आरोपियों का दावा है कि इस मामले में उन्हें फंसाया गया है और वे राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार हैं। उनका दावा है कि दंगा भड़काने वाले ही उन्हें निशाना बना रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 2006 में गुलबर्ग सोसायटी में ‘म्यूजियम ऑफ रेजिसटेंस’ बनाने का फैसला किया था और तदनुसार ही भूखंड का एक हिस्सा सबरंग ट्रस्ट को बेच दिया गया था। हालांकि 2012 में संग्रहालय का विचार त्याग दिया गया क्योंकि इसकी लागत बढ़ गई थी और इसकी सूचना सोसायटी को दे दी गई थी।

उधर, सीतलवाड़ के खिलाफ दायर शिकायत के मुताबिक संग्रहालय का विचार त्यागने के बाद भी इसके लिए धन एकत्र किया गया। इससे पहले दिन में गुजरात हाईकोर्ट ने दोनों की अग्रिम जमानत का अनुरोध ठुकराते हुए उनकी संभावित गिरफ्तारी का रास्ता साफ कर दिया था।