सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को खत्म कर दिया है। इससे जहां मुस्लिम महिलाएं खुश हैं, वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कई मौलवियों को यह फैसला पसंद नहीं आ रहा है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि जिस तरह अयोध्या राम मंदिर केस आस्था का विषय है उसी तरह तीन तलाक का मुद्दा भी आस्था से जुड़ा हुआ है। बोर्ड का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले से दूर रहना चाहिए। राम का जन्म अयोध्या में हुआ था जो कि एक आस्था का विषय है, न कि संवैधानिक नेतिकता और ऐसा ही तीन तलाक के मुद्दे में भी लागू होता है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंंवैधानिक बताते हुए इसे खत्म कर दिया है और कहा है कि छह महीने में केंद्र सरकार इस बारे में कानून बना ले।
कुरान भी तीन तलाक के खिलाफ है। पूर्व सांसद आरिफ मोहम्मद खान ने अपने एक लेख में कुरान के हवाले से लिखा है कि इसमें तीन तलाक को बिल्कुल प्रश्रय नहीं दिया गया है। इसमें कहा गया है कि अगर लगता है पति-पत्नी में बन नहीं रही है और रिश्ता टूटने की कगार पर है तो पत्नी को समझाएं। बात नहीं बने तो पत्नी से अलग सोएं। उन्हें तलाकशुदा जोड़े का उदाहरण देकर तलाक की दुश्वारियों का अहसास दिलाने की कोशिश करें। यह जताने की कोशिश करें कि कैसे तलाक से परिवार और बच्चों पर असर पड़ेगा। अगर तब भी बात नहीं बनते तो पति-पत्नी के परिवार से एक-एक व्यक्ति के जरिए मध्यस्थता की व्यवस्था भी कुरान में बताई गई है (4.34-35)।
अगर मध्यस्थता से भी बात नहीं बने तो कुरान में तलाक की बात कही गई है। इसके बाद भी तीन महीने पति-पत्नी को पहले की तरह रहने के लिए कहा गया है। इस मियाद को इद्दत कहते हैं। इद्दत के दौरान पति चाहे तो तलाक वापस भी ले सकता है। तीन महीने बाद पत्नी राजी हो तो पति दोबारा निकाह कर सकते हैं। कुरान में यह भी व्यवस्था है कि तलाक देते वक्त दो गवाह जरूर मौजूद रहें और उनकी मौजूदगी में तलाक की शर्तें तय हों और उन शर्तों पर हर हाााल में अमल हो (65-1-2)।