पहले सिर्फ शक था मुझे कि गांधी परिवार का जनता से नाता टूट गया है। पिछले सप्ताह जब कांग्रेस के आला नेताओं ने तय किया कि अयोध्या नहीं जाएंगे 22 जनवरी को, शक यकीन में बदल गया। न जाने का कारण उन्होंने बताया कि रामलला का जो उस दिन प्राण प्रतिष्ठा होने वाला है, वह कुछ और नहीं केवल भारतीय जनता पार्टी और संघ का राजनीतिक खेल है। चलिए इस बात को अगर मान भी लें कि नरेंद्र मोदी इस अवसर का पूरा राजनीतिक लाभ ले रहे हैं तो क्या थोड़ा सा लाभ कांग्रेस को नहीं मिलता अगर सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे अयोध्या चले जाते मंदिर के इस ऐतिहासिक अवसर में भाग लेने? नहीं जाने से तो बेहतर होता न?

मुझे जब बरखा दत्त ने अपने शो पर पूछा इसके बारे में तो मैंने साफ शब्दों में कहा कि मैं अगर राहुल गांधी के सलाहकारों में होती तो मेरी सलाह होती कि अपनी न्याय यात्रा मणिपुर के बदले अयोध्या से शुरू करें। समझ में नहीं आता मुझे कि गांधी परिवार के इस सदैव यात्री ने अपने आसपास क्यों ऐसे लोग इकट्ठा किए हैं जिनको न राजनीति की समझ है न राम की।

होती तो अभी तक इतना तो जान गए होते कि राम का नाम भारत का हर बच्चा जानता है और इतनी श्रद्धा जुड़ी हुई है राम के नाम से कि अल्लामा इकबाल ने अपनी एक मशहूर कविता में राम को इमाम-ए-हिंद कहा था। कविता की पंक्ति है : है राम के वजूद पे हिंदुओं को नाज, अहल-ए-नजर समझते हैं इसको इमाम-ए-हिंद’। राम की वह जगह है भारतीय संस्कृति में जो धर्म-मजहब से ऊपर है। सो कांग्रेस के आला नेताओं का यह फैसला नुकसान मोदी का नहीं कांग्रेस पार्टी का करेगा।

वैसे भी देश की इस सबसे पुरानी राजनीतिक दल का हाल कमजोर है इतना कि बीते साल के आखिरी दिनों में मतदाताओं ने उनको एक झटका और दिया राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बुरी तरह हरा कर। चुनावों में हारने के बाद गांधी परिवार को सीख ये लेनी चाहिए थी कि अगले कुछ महीनों में पार्टी के जमीनी संगठन को मजबूत करना होगा तेजी से ताकि लोकसभा चुनाव में तीसरी बार हार का सामना ना करना पड़े। ऐसा करने के बदले निकल पड़े हैं राहुल गांधी दूसरी यात्रा पर जैसे कि कमजोरी संगठन की जड़ों में नहीं उनकी अपनी छवि में है।

दस वर्ष विपक्ष में रहने के बाद दुनिया जान गई है कि गांधी परिवार कभी भी कांग्रेस का असली नेतृत्व अपने हाथों से निकलने नहीं देगा। मल्लिकार्जुन खरगे औपचारिक तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष जरूर बन गए हैं, लेकिन दुनिया जानती है कि गांधी परिवार उनसे ऊपर है। बिलकुल वैसे जैसे डाक्टर मनमोहन सिंह जानते थे कि उनकी जवाबदेही जनता को नहीं सोनिया गांधी को है।

कांग्रेस की असली समस्या है कि इतने दशकों से दरबारी पार्टी रही है कि संगठन कमजोर हो गया है। इसको मजबूत करने के लिए जमीन पर काम करना होगा, ताकि जिन कार्यकर्ताओं के बल पर यह सबसे शक्तिशाली राजनीतिक पार्टी थी कभी वो कार्यकर्ता लौट कर वापिस आ जाएं और दिल से काम करने लगें। न्याय यात्रा से राहुल की छवि बेशक फिर से चमक जाएगी, लेकिन जिन लोगों को संगठन में ऊर्जा भरने का काम करना चाहिए वो लग जाएंगे अब यात्रा को सफल बनाने में।

थोड़े दिन के लिए सुर्खियों में रहेगी यात्रा, थोड़ी देर के लिए ऐसा लगेगा कि राहुल गांधी वास्तव में अब बड़े राजनेता बन गए हैं, लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस पार्टी ज्यादातर चुनाव हारती गई है। माना कि कर्नाटक और हिमाचल में जीती है लेकिन ऐसा लगता है कि इन राज्यों को जीतने के बाद कांग्रेस फिर से सुस्ता गई।

दोष गांधी परिवार का है ही लेकिन दोष उन दरबारियों का भी है जो गांधी परिवार के आसपास मंडराते रहते हैं क्योंकि उनका अपना कोई राजनीतिक अस्तित्व नहीं है। इनमें एक भी ऐसा व्यक्ति होता अगर जिसने जनता का मन समझा हो तो सलाह यही देता कि अयोध्या नहीं जाने से कांग्रेस अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने का काम कर रही है।

कांग्रेस के प्रवक्ता कहने लग गए हैं अब कि अयोध्या नहीं जाकर कांग्रेस साबित करना चाहती है कि नेहरू जी के समाजवादी रास्ते पर फिर से चलने जा रही है। ऐसा कहने के बाद क्या इतना भी नहीं सोचते हैं ये लोग कि नेहरू जी की समाजवादी नीतियों के कारण ही भारत आगे ना बढ़ सका उस रफ्तार से, जिससे बढ़ना चाहिए था। लाइसेंस राज ना होता तो भारत का उद्योग जगत आज चीन से ज्यादा ताकतवर होता।

ऐसा नहीं है कि मोदी चांद तारे तोड़ कर लाए हैं आर्थिक क्षेत्र में। लेकिन ऐसा जरूर है कि मोदी हमेशा ही बातें करते हैं भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने की। राहुल गांधी जब भी आर्थिक मामलों की बात करते हैं तो भारत के गरीबों में खैरात बांटने की बातें करते हैं। अभी तक समझ में नहीं पाए हैं कि खैरात बांटने से लोग कभी भी गरीबी की बेड़ियां तोड़ नहीं पाए हैं। खैरात सिर्फ राहत देने का काम करती है उन लोगों को जो गुरबत में जकड़े हैं।

राजनीति पर जब बोलते हैं राहुल तो मोदी को निशाना बना कर जैसे मोदी नहीं होते तो भारत की राजनीति चमक रही होती। क्या कांग्रेस के दशकों लंबे राज में चमक रही थी? क्या सच यह नहीं है कि भ्रष्टाचार इतना था कि राजनेता रहते थे महलों में और जनता झोंपड़ियों में? अंत में दोहराना चाहती हूं कि अयोध्या न जाने का फैसला लेकर कांग्रेस के नेताओं ने साबित कर दिया है पूरी तरह कि वे न राजनीति को समझ पाए हैं न राम को।