सबसे पहले दिवाली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं आप सबको। जब दिवाली जैसे दिन पर यह लेख छपता है तो तय करती हूं कि गुजरे सप्ताह की बातों को छोड़ कर हिसाब लगाने की कोशिश हो। गए साल की बातें हों, दुनिया के हाल की बातें हों। इस दिवाली आपको भी महसूस हो रहा होगा कि दुनिया की समस्याओं का काला साया ऐसा मंडरा रहा है कि भारत की अंदरूनी समस्याएं इतनी गंभीर नहीं लगती हैं। गाजा पट्टी में जो बच्चे इजराइल की बमबारी से मारे जा रहे हैं, जो मातम छा रहा है, जो बर्बादी फैल रही है उसको अनदेखा करना मुश्किल है।

हमास ज्यादा दोषी

इस तबाही को देख कर मेरी समझ में नहीं आता है कि हमास क्यों नहीं इजराइल के उन दो सौ से ज्यादा बंदियों को रिहा करता है जो एक महीने से उसकी सुरंगों में कैद हैं न जाने किस हाल में। युद्धविराम चाहता है हमास तो क्यों नहीं ऐसा करता है? इस सवाल को मैंने मन में पूछा तो याद आई मुझे हमास के एक सरगना की बात, जो बीबीसी पर सुनी थी। इस आदमी का न तो नाम मुझे याद है न ही मैं इसका नाम लेना चाहती हूं इसलिए कि मैं मानती हूं कि आतंकवादियों के नाम लेना नहीं चाहिए। इस दरिंदे से जब पूछा गया कि हमास क्यों आम फिलिस्तीनियों को अपने युद्ध में त्याग करना चाहता है तो उसका जवाब था कि हर स्वतंत्रता संग्राम में आम लोगों की बलि चढ़ानी पड़ती है।

यह बात मुझे घिनौनी तो लगी ही लेकिन ये भी याद आया कि गाजा में जो हो रहा है उसके लिए हमास ज्यादा दोषी है और इजराइल कम। जब किसी देश पर आतंकवादी हमला होता है और वह देश उसका जवाब नहीं देता है तो ऐसा करने वाला देश कायर दिखता है और आतंकवाद की जीत होती है। हमने 26/11 का जवाब दिया होता बहादुरी से तो मुझे यकीन है कि भारत पर जो उसके बाद जिहादी हमले हुए हैं वो शायद नहीं होते। खैर लौट कर आते हैं गाजा और दुआ करते हैं कि यह युद्ध जल्द रुक जाए ताकि इसका नुकसान हम जैसे देशों को ना हो। कुछ तो होने लग गया है अभी से क्योंकि कच्चे तेल का दाम बढ़ने लग गया है।

अर्थव्यवस्था का हाल नाजुक

हम जैसे गरीब देश के लिए यह बहुत बुरी खबर है। हमारी अर्थव्यवस्था का हाल इतना नाजुक है कि पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री ने एलान कर दिया कि 80 करोड़ लोगों को जो मुफ्त में अन्न मिल रहा है, प्रधानमंत्री अन्न सुरक्षा योजना के तहत वह अगले पांच साल के लिए मिलता रहेगा। कई लाख करोड़ रुपए लगेंगे इस योजना पर जो विकास पर लग सकते थे और जो अब खैरात बांटने में लग जाएंगे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने की आवश्यकता है तो मतलब यह नहीं निकाल सकते हैं हम की गरीबी हटाने में हम विफल रहे हैं?

ऐसा सोच ही रही थी मैं कि टीवी पर देखा कि इंडिया टुडे की प्रीति चौधरी कुछ ग्रामीण महिलाओं से मध्य प्रदेश में आने वाले चुनावों के बारे में पूछ रही थी। महिलाओं ने प्रीति को बताया कि उनके बैंक खातों में पिछले पांच महीनों से मध्य प्रदेश सरकार हर महीने 1200 रुपए जमा कर रही है और यह बात उनको बहुत अच्छी लगती है। उनके लिए जरूर अच्छी बात है यह लेकिन देश के लिए अति-नुकसानदेह। इसलिए कि ये भी खैरात ही है, और खैरात बांटने से कभी कोई देश विकसित नहीं हुआ है।

मेरी राय में भारत गरीब अगर आज भी है तो सिर्फ इसलिए कि हमारे शासकों ने गलत आर्थिक नीतियां अपनाई हैं जबसे हमको स्वतंत्रता मिली है। देश के पहले प्रधानमंत्री दिल से विश्वास रखते थे कि भारत की तरक्की समाजवादी आर्थिक नीतियों से ही होगी। नतीजा यह कि जनता का पैसा लगाया गया बड़े-बड़े सरकारी उद्योगों पर जिन्होंने कभी मुनाफा नहीं कमाया। नतीजा यह कि नेहरूजी के शासनकाल के समाप्त होने पर देश में गरीब लोग उतने ही थे जितने उनके शासनकाल के शुरू में थे।

नेहरूजी के बाद शासनकाल आया उनकी बेटी का जो उनसे भी ज्यादा समाजवादी सोच की थीं। घाटे में चलते हुए सरकारी कारखानों को बंद करने के बदले इंदिराजी ने मुनाफे में चलते हुए निजी क्षेत्र में बैंकों और कारोबारों का राष्ट्रीयकरण किया और विकास की रफ्तार वैसी ही रही जैसे थी उनके पिता के समय। गरीबी हटाने का नारा सिर्फ नारा रहा।

विकास और परिवर्तन की ओर

आर्थिक रास्ता जब बदला नरसिम्हा राव ने लाइसेंस राज को समाप्त करके तब भारत चलने लगा था विकास और परिवर्तन की ओर। लेकिन देश के अधिकतर राजनेता अभी भी समाजवादी सोच से जुड़े हुए हैं सो अभी भी खैरात बांटी जाती है विकास के बदले। ऐसा करके चुनाव जीते जाते हैं लेकिन विकास नहीं होता है। विधानसभा चुनावों में ऐसा लगता है कि हर राजनीतिक दल ने तय कर लिया है कि चुनावों को जीतने का एक ही रास्ता है और वो है खैरात बांट कर।

लक्ष्मी पूजा के इस शुभ अवसर पर हमको सूचना यह चाहिए कि ऐसा क्यों है कि जिस देश में लक्ष्मी को हम देवी मानते हैं और जिसकी पूजा होती है हमारे सबसे बड़े त्योहार पर उस देश के राजनेता क्यों लक्ष्मी को ठुकरा कर दरिद्र देव को मानते हैं? दिवाली के इस शुभ अवसर पर याद दिलाना जरूरी है अपने राजनेताओं को कि इस सवाल पर उनको ध्यान करना चाहिए। ऐसा कहने के बाद ये भी कहना चाहती हूं कि एक दिवाली ऐसी भी आएगी शायद निकट भविष्य में जब हमारे राजनेता जान जाएंगे लक्ष्मी पूजा का असली मतलब क्या है और क्यों भारत का सबसे बड़ा त्योहार मनाया जाता है लक्ष्मी पूजा के दिन।