Hindi Language Controversy: गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों में कथित तौर पर हिंदी थोपने को लेकर गुरुवार को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव के बीच भाषा को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी बहस छिड़ गई। एमके स्टालिन ने कहा कि उनकी सरकार राज्य में हिंदी को लागू करने की इजाजत नहीं देगी और तमिल भाषा और संस्कृति की रक्षा करेगी।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर लिखा, ‘अन्य राज्यों के मेरे प्यारे बहनों और भाइयों, क्या आपने कभी सोचा है कि हिंदी ने कितनी भारतीय भाषाओं को निगल लिया है? भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मगही, मारवाड़ी, मालवी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, अंगिका, हो, खरिया, खोरठा, कुरमाली, कुरुख, मुंडारी और कई अन्य अब अस्तित्व के लिए हांफ रही हैं। एक अखंड हिंदी पहचान के लिए जोर देने से प्राचीन मातृभाषाएं खत्म हो रही हैं। यूपी और बिहार कभी भी सिर्फ हिंदी हार्टलैंड नहीं थे। उनकी असली भाषाएं अब अतीत की निशानी बन गई हैं। तमिलनाडु इसका विरोध करता है क्योंकि हम जानते हैं कि यह कहां खत्म होगा।’

अश्विनी वैष्णव ने किया पलटवार

मुख्यमंत्री के बयान पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस टिप्पणी को शासन के मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिश बताते हुए खारिज कर दिया। वैष्णव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘समाज को विभाजित करने के ऐसे उथले प्रयासों से खराब शासन कभी नहीं छिप पाएगा।’ केंद्रीय मंत्री ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से भी जवाब मांगा है।

हिंदी का जबरदस्ती विरोध कर रहे स्टालिन

उन्होंने कहा, ‘यह जानना दिलचस्प होगा कि विपक्ष के नेता क्या कहते हैं, राहुल गांधी, इस विषय पर क्या कहना है? क्या वे हिंदी भाषी सीट के सांसद होने के नाते इससे सहमत हैं।’ स्टालिन ने पहले कहा था कि उनकी सरकार हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं है, बल्कि इसे जबरन थोपे जाने के खिलाफ है। उन्होंने कहा, “अगर आप इसे नहीं थोपेंगे तो हम इसका विरोध नहीं करेंगे।” उन्होंने आगे कहा कि तमिलनाडु पर हिंदी थोपना तमिलों के स्वाभिमान का अपमान होगा।

भाषा विवाद क्या है?

भाषा का विवाद काफी लंबे वक्त से रहा है। तमिलनाडु में 1960 के दशक में हिंदी विरोधी प्रदर्शन हुए थे, जब केंद्र सरकार ने हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा बनाने की कोशिश की थी, लेकिन विरोध प्रदर्शन तेज होने के बाद इस कदम को वापस ले लिया गया। तब से डीएमके ने खुद को तमिल भाषाई पहचान का खुद को रक्षक बताया है। धर्मेंद्र प्रधान ने हिंदी पर विवाद के बीच स्टालिन को लिखा पत्र पढ़ें पूरी खबर…