सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि राज्य सरकारें ऐसे दोषियों की सजा केंद्र सरकार से परामर्श किए बिना माफ नहीं कर सकतीं जो केंद्रीय एजंसियों की पड़ताल के बाद दोषी साबित हुए हों। राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले से उत्पन्न हुए संवैधानिक मुद्दों को सुलझाते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों को माफी देने का अधिकार है लेकिन वे इसे स्वत: संज्ञान लेते हुए नहीं कर सकते।
प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाले पांच जजों के संविधान पीठ ने यह भी कहा कि केंद्रीय कानूनों के तहत दर्ज मामलों में दोषियों की सजा माफी में केंद्र की राय प्रमुख होगी, जिनमें सीबीआइ जैसी केंद्रीय एजंसियों ने जांच की हो। न्यायमूर्ति दत्तू का बुधवार आखिरी कार्यदिवस था।
एक छोटे पीठ के संदर्भ में उठाए गए सभी मुद्दों पर जवाब देने में पीठ में सर्वसम्मति थी लेकिन इस मामले में 3 के मुकाबले 2 के अनुपात में सहमति नहीं थी कि क्या अदालतें ऐसे अपराधों में जेल की सजा निर्धारित कर सकती हैं जिनमें उम्रकैद की सजा का प्रावधान हो। बहुमत इस पक्ष में था कि अदालतों को ऐसा करने का अधिकार है।
पीठ में न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्ला, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष, न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और न्यायमूर्ति यूयू ललित भी हैं। पीठ ने राजीव गांधी हत्याकांड में दोषियों की सजा माफी के तथ्यात्मक और कानूनी पहलुओं को तीन जजों के पीठ को भेजा। सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि वह सजा माफी के कार्यपालिका के अधिकारों के दायरे पर छोटे पीठ द्वारा निर्धारित विभिन्न मुद्दों को देखेगा।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 20 फरवरी को राजीव गांधी हत्याकांड के तीन दोषियों- मुरूगन, संतन और अरिवु को रिहा करने के राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी। तीनों को सुनाई गई मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील किया गया था। बाद में अदालत ने चार अन्य दोषियों – नलिनी, रॉबर्ट पायस, जयकुमार और रविचंद्रन की रिहाई पर भी रोक लगा दी थी और कहा था कि राज्य सरकार की ओर से प्रक्रियात्मक खामियां की गई हैं। संतन, मुरूगन और अरिवु फिलहाल केंद्रीय जेल वेल्लूर में बंद हैं। तमिलनाडु के श्रीपेरूंबदूर में 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या में भूमिका के लिए अन्य चारों दोषी भी उम्रकैद की सजा काट रहे हैं।