Delhi Election Tahir Hussian News: दिल्ली चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी उतर चुकी है, मुस्तफाबाद सीट से दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन को मौका दिया गया है। अब वैसे तो जानकार मानते हैं कि दिल्ली चुनाव में AIMIM के लिए ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन उनका सिर्फ मुस्लिम बाहुल सीटों पर प्रत्याशियों का उतारना मायने रखता है। अगर इसी रणनीति के तहत ओवैसी और ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशियों को मुस्लिम सीटों से ही उतारते हैं, आम आदमी पार्टी के लिए टेंशन बढ़ सकती है।
अब सिर्फ पांच सवालों के जवाब जान दिल्ली चुनाव में ताहिर हुसैन की अहमियत को समझा जा सकता है।
सवाल नंबर 1- मुस्तफाबाद की मुस्लिम पॉलिटिक्स क्या है?
सवाल नंबर 2- ओवैसी की रणनीति क्या दिखाई पड़ती है?
सवाल नंबर 3- दिल्ली दंगे वाला नेरेटिव कितना काम करेगा?
सवाल नंबर 4- बीजेपी का दिल्ली में चलेगा हिंदुत्व कार्ड?
सवाल नंबर 5- क्या आम आदमी पार्टी के कटेंगे वोट?
मुस्तफाबाद की मुस्लिम पॉलिटिक्स क्या है?
मुस्तफाबादा सीट दिल्ली के नॉर्थ ईस्ट इलाके में पड़ती है, यहां पर 40 फीसदी आबादी मुसलमानों की है। अब इस सीट से आम आदमी पार्टी ने आदिल अहमद खान को टिकट दिया है, उन्हें केजरीवाल का काफी खास माना जाता है। ओवैसी की पार्टी ने तो ताहिर हुसैन को उतार ही रखा है, कहा जा रहा है कि कांग्रेस फिर अली मेहंदी को टिकट दे सकती है। यानी कि 40 फीसदी वोटों के लिए एक सीट से तीन मुस्लिम प्रत्याशी हो सकते हैं। सिंपल चुनावी गणित कहता है कि अगर मुस्लिम वोट बंटेगा तो इसका फायदा बीजेपी को जा सकता है।
इसका क्लासिक एग्जामपल 2015 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला था। तब मुस्तफाबाद सीट को बीजेपी के जगदीश प्रशान ने जीत लिया था। कहने को बीजेपी को उस चुनाव में सिर्फ तीन सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन उसमें से एक यह मुस्तफाबाद भी रही थी। माना जा रहा है कि ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों की वजह से मुस्तफाबाद सीट पर हिंदू वोट एकमुश्त हो सकता है, उस वजह से हो सकता है कि यह सीट बीजेपी की झोली में चली जाए।
आरोपी ताहिर हुसैन को AIMIM ने बनाया उम्मीदवार
ओवैसी की रणनीति क्या दिखाई पड़ती है?
दिल्ली में ओवैसी की पार्टी दो दर्जन सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। यह बात किसी से नहीं छिपी है कि पार्टी की पहली प्राथमिकता मुस्लिम बाहुल सीटों पर प्रत्याशी उतारने की है। इसी वजह से 6 उन सीटों को चिन्हित कर लिया गया है जहां पर मुस्लिम ही हार-जीत तय करते हैं। इसके ऊपर अपनी महाराष्ट्र रणनीति को आगे बढ़ाते हुए एक बार फिर ओवैसी दलित वोटों पर भी अपना फोकस रखना चाहते हैं। उनकी कोशिश है कि दलित-मुस्लिम के गठजोड़ के जरिए कई सीटों पर बड़ी पार्टियों के गणित बिगाड़े जाएं।
जानकार मानते हैं कि ओवैसी इस दिल्ली चुनाव में जीतने से ज्यादा दूसरी पार्टियों का खेल बिगाड़ने में अपनी भूमिका निभा सकते हैं। असल में भी जिन भी राज्यों में कोई पार्टी ज्यादा मजबूत नहीं होती है, लेकिन चुनाव लड़ने की जिद पर उतर जाए। उस स्थिति में वो ‘वोट कटवा’ बनकर रह जाती है। हाल ही में हुए हरियाणा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने काफी खराब प्रदर्शन किया, लेकिन कई सीटों पर उसे क्योंकि वोट ज्यादा मिल गए, उस वजह से वो सीटें कांग्रेस हार गई। कुछ ऐसा ही खेल दिल्ली में भी ओवैसी की पार्टी दिखाना चाहती है।
दिल्ली दंगे वाला नेरेटिव कितना काम करेगा?
साल 2020 में विधानसभा चुनाव के ठीक बाद दिल्ली में दंगे भड़क गए थे। पूरा नॉर्थ ईस्ट दिल्ली इसकी चपेट में था, सीलमपुर से लेकर मुस्तफाबाद, यमुना विहार तक दंगे की आग देखने को मिली थी। अब उन दंगों में नुकसान तो हिंदू-मुस्लिम दोनों का हुआ, लेकिन जो आरोप लगे वो पूरी तरह सियासी रहे। अगर ओवैसी की पार्टी की बात करें तो वो दिखाने की कोशिश कर रही है कि दिल्ली दंगों के बाद अरविंद केजरीवाल निष्क्रीय हो गए थे, उनकी तरफ से दंगा रोकने के लिए कुछ नहीं किया।
एक कदम आगे बढ़कर यहां तक कहा जा रहा है कि सिर्फ मुसलमानों को दिल्ली में धोखा मिला है, उनके क्षेत्रों में कोई विकास नहीं हुआ। यानी कि एक तरफ दंगों का दंश और दूसरी तरफ विकास की उम्मीद। AIMIM को लगता है कि अगर इन दोनों ही मुद्दों को साथ में उठाया गया, उनके पक्ष में माहौल बन सकता है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कोई भी दंगा स्वभाव से पूरी तरह सांप्रदायिक होता है, ऐसे में अगर AIMIM को ताहिर हुसैन को चुनावी मैदान में उताकर अपने लिए उम्मीद दिखाई दे रही है तो दूसरी तरफ बीजेपी भी इसी दांव से हिंदू वोटों को और ज्यादा एकमुश्त कर सकती है।
बीजेपी का दिल्ली में चलेगा हिंदुत्व कार्ड?
अब ओवैसी ने बीजेपी को दिल्ली चुनाव में वो मौका दे दिया है जिसकी तलाश लंबे समय से पार्टी कर रही थी। असल में अरविंद केजरीवाल तो सियासी रूप से इतने समझदार हो चुके हैं कि उन्होंने समय-समय पर मुस्लिम राजनीति करते हुए भी खुद पर कभी भी तुष्टीकरण के आरोप लगने नहीं दिए। पिछला विधानसभा चुनाव भी जबरदस्त ध्रुवीकरण वाला रहा था, शाहीन बाग, सीएए जैसे मुद्दों ने हिंदू-मुस्लिम करने का पूरा मौका दिया था। लेकिन उस चुनाव में खुद को हनुमान भक्त बताकर केजरीवाल ने ना सिर्फ हिंदुओं के वोट लिए, मुस्लिमों का एकतरफा वोट भी आम आदमी पार्टी को ही पड़ा।
लेकिन अब इस चुनाव से पहले ताहिर हुसैन का मैदान में उतरना बीजेपी को फिर वो मौका दे रहा है जिसके दम पर हाल ही में हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में प्रचंड जनादेश हासिल किया गया। वो मौका है- बंटेंगे तो कटेंगे दांव का, वो मौका है- एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे दांव का। यानी कि एक बार फिर बीजेपी अब पूरी तरह हिंदुत्व की राजनीति के साथ दिल्ली चुनाव में आगे बढ़ सकती है। इसकी एक झलक तो इसी बात से मिल जाती है कि बीजेपी नेताओं ने ताहिर के उतरने पर ऐसी प्रतिक्रिया दी हैं जिससे हिंदू समुदाय में गुस्सा पैदा होना लाजिमी है।
कपिल मिश्रा ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है कि अंकित शर्मा जी के 400 घावों से भरा शव , दिलबर नेगी जी का जला हुआ शरीर , कांस्टेबल रतनलाल जी की निर्मम हत्या,छतों पर रखें बम, पत्थर और मंदिर की तरफ़ निशाना लगाती गुलेल। केजरीवाल और ओवैसी ने पाँच साल पहले भी दिल्ली जलाई थी, आज फिर उसी ताहिर हुसैन को लेकर आए हैं दिल्ली को जलाने के लिए। इस बार फिर किसी अंकित शर्मा, किसी दिलबर नेगी को मरने नहीं देंगे। इस बार दिल्ली वाले मुँह तोड़ जवाब देंगे।
अब ‘मुंह तोड़ जवाब देंगे’ का मतलब ही यह है कि बीजेपी हिंदुओं को फिर एक होने की अपील कर रही है। वो नहीं चाहती कि हिंदू दलित, ओबीसी या फिर किसी दूसरी जाति में बंट जाए। वो तो महाराष्ट्र फॉर्मूले के तहत पूरे हिंदू वोट को अपने पाले में करना चाहती है। अब आम आदमी पार्टी से तो वो मौका नहीं मिल रहा था, लेकिन ओवैसी के जरिए केजरीवाल को भी लपेटे में लिया जा सकता है।
क्या आम आदमी पार्टी के कटेंगे वोट?
अब आम आदमी पार्टी को वोट सिर्फ उस स्थिति में कट सकते हैं अगर जनता बीजेपी के नेरेटिव से सहमत हो जाए, अगर बंटेंगे तो कटेंगे को ज्यादा ही गंभीरता से ले ले। इसके ऊपर आप के वोट उस सूरत भी में कटेंगे अगर सभी को चौकाते हुए ओवैसी की पार्टी सही में कुछ सीटों पर उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन कर जाए। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो आम आदमी पार्टी को ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला है। इसका एक एंगल यह भी है कि आम आदमी पार्टी की राजनीति कई मायनों में जाति आधारित दिखाई नहीं देती है।
वो अपनी फ्री योजनाओं के दम पर हर समुदाय का वोट हासिल करती है। इसी वजह से इस बार भी चुनाव में चुनौती आप के लिए तो है, लेकिन ज्यादा बड़ी चुनौती बीजेपी के लिए होने वाली है। मुद्दों की पिच पर देश की सबसे बड़ी पार्टी के लिए खेलना हमेशा टेढ़ी खीर ही साबित हुआ है।
मुस्तफबाद की ग्राउंड रिपोर्ट
वैसे जनसत्ता ने भी मुस्तफाबाद की नब्ज को समझने की कोशिश की है, ग्राउंड पर उतर जब लोगों से सवाल जवाब किए तो पता चला कि यहां पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच में कड़ा मुकाबला रहने वाला है। बीजेपी को लेकर भी थोड़ा बहुत समर्थन है, लेकिन ताहिर हुसैन के प्रति सिर्फ संवेदना ही देखने को मिल रही है, वोट में तब्दील कुछ नहीं हो रहा। ऐसे में इस सीट से ओवैसी का दांव अभी के लिए तो उतना सफल होता नहीं दिख रहा।
