अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट की छाया में रहने वाले सीरिया के सत्तारूढ़ संगठन हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) की पृष्ठभूमि को लेकर कई सवाल खड़े हुए थे कि उसके नेतृत्व में सीरिया का भविष्य क्या होगा। एचटीएस के नेता अबू मोहम्मद अल जुलानी अपनी छवि को जिहादी लड़ाके से बदल कर आधुनिक और दूरदर्शी नेता के रूप में पेश करने की कोशिश करते हुए दिखाई दिए, तो उम्मीदें जगीं कि संभवत: वे सीरिया की विविधता को स्वीकार कर एक मजबूत और समावेशी सरकार बनाएंगे। मगर हकीकत में यह महज दिखावा साबित हुआ।

अब सीरिया जातीय और धार्मिक हिंसक संघर्ष की ओर तेजी से बढ़ रहा है। एचटीएस समर्थित मौजूदा कार्यवाहक प्रशासन के सुरक्षा बल और अज्ञात बंदूकधारी संप्रदाय के आधार पर आम जनता को निशाना बना रहे हैं। सीरिया में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न और जनसंहार का स्तर इतना व्यापक है कि संयुक्त राष्ट्र ने हिंसा में आम नागरिकों के हताहत होने पर चिंता जताई है। उसने कहा है कि आम नागरिकों की हत्या को किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता।

सीरिया में अरब वहां सबसे बड़ा जातीय समूह

सीरिया सांस्कृतिक और जातीय विविधता वाला देश है। अरब वहां सबसे बड़ा जातीय समूह है। जबकि कुर्द एक महत्त्वपूर्ण जातीय समूह है, जो सीरिया के उत्तरी हिस्सों में बसे हुए हैं। इन्हें अपनी अलग संस्कृति और कुर्दी भाषा पर गर्व है। सीरिया का पश्चिमी तट अलावाइट समुदाय से आबाद है, यह एक शिया इस्लामी संप्रदाय से जुड़ा हुआ है। यह समुदाय राजनीतिक रूप से भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सीरिया के पूर्व राष्ट्रपति बशर अल-असद इसी समुदाय से हैं। सीरिया के सुरक्षा बलों ने कथित तौर पर अलावी अल्पसंख्यक समुदाय के सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी है।

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ऐसे तथ्य सामने आए हैं कि हयात तहरीर अल-शाम के सुरक्षा बलों को पूर्व राष्ट्रपति असद के समर्थकों से लड़ने के लिए भेजा गया है। सीरियाई सुरक्षा बलों द्वारा सीरियाई तट के गांवों और इलाके के लोगों को यातना देने और उनकी हत्या करने तथा इलाके पर कब्जा करने के कई वीडियो सामने आ रहे हैं। अंतराष्ट्रीय स्तर पर इस पर गहरी चिंता जताई गई है। सीरिया की अंतरिम सरकार ने देश के तटीय इलाके लाताकिया और तर्तूस में बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया है।

सीरिया के कुर्द विद्रोहियों के साथ कई दशक से लड़ता रहा है तुर्की

देश के तटीय इलाकों में अलावी और ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय पर सुरक्षा बलों के हमले का असर देश के दूसरे कई इलाकों पर पड़ रहा है और इससे पूरे देश में तनाव बढ़ रहा है। सीरिया में अरसे से राजनीतिक तानाशाही रही है। किसी दूसरे सशस्त्र गुट के पास प्रशासन चलाने का अनुभव नहीं है। सीरिया के सभी इलाकों पर कभी भी बशर-अल-असद का पूर्ण नियंत्रण नहीं था और अब हयात तहरीर अल-शाम के साथ भी कुछ ऐसा ही है। सीरिया में जातीय, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताएं हैं। प्रशासनिक व्यवस्था पर जातीय समूह हावी होते हैं। बशर अल-असद के सत्ता को उखाड़ फेंकने के अभियान में हयात तहरीर अल-शाम को देश के अन्य क्षेत्रों में प्रभावशाली जातीय समूहों का समर्थन इसलिए मिला था, क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि सत्ता में उनकी भी भागीदारी होगी। मगर सीरिया में भविष्य की राजनीतिक भागीदारी वाली सरकार को लेकर कोई भी सहमति अभी तक न बनने के कारण हिंसक विरोध अब सड़कों पर दिखाई दे रहा है।

पृथ्वी का फेफड़ा ‘अमेजन जंगल’ तेजी से खत्म होने की ओर बढ़ रहा

सीरिया का पड़ोसी देश तुर्की लंबे समय से असद सरकार का विरोध करता रहा है। वह सीरिया के उत्तरी क्षेत्र में दबदबा रखने वाले कुर्द विद्रोहियों के साथ कई दशक से लड़ता रहा है। तुर्की सीरिया में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए विभिन्न सैन्य और राजनीतिक कदम उठा रहा है। तुर्की में लाखों सीरियाई शरणार्थी रह रहे हैं और तुर्की सरकार उन्हें वापस अपने देश में भेजने के लिए एक सुरक्षित क्षेत्र बनाने की कोशिश कर रही है। इसके अलावा तुर्की की योजना है कि वह इस सुरक्षित क्षेत्र में कुर्दों के प्रभुत्व को किसी तरह खत्म करे। वर्ष 2017 में इराक में कुर्दों ने अलग देश कुर्दिस्तान बनाने को लेकर रायशुमारी कराई थी। इस जनमत संग्रह में भारी संख्या में कुर्द शामिल हुए थे। पड़ोसी तुर्की और ईरान को डर है कि इससे उनके यहां भी कुर्दों को अलगाव की प्रेरणा मिलेगी। सीरिया के पूर्व राष्ट्रपति असद को ईरान का समर्थन हासिल था, इसीलिए असद कुर्दों के खिलाफ सैन्य अभियान के समर्थक थे।

सीरिया के के भीतर 67 लाख लोग विस्थापित

सीरिया से विस्थापित लाखों लोग अपने घरों को लौटना चाहते हैं। फिलहाल, देश के भीतर सड़सठ लाख लोग विस्थापित हैं, जबकि पचपन लाख शरणार्थी पड़ोसी देशों में रह रहे हैं। सीरिया में शांति की स्थापना हो, इसके लिए वैश्विक एजंसियां भी कोशिश कर रही हैं। संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी मामलों की एजंसी यूएनएचसीआर ने सीरिया में पिछले एक दशक से चले आ रहे हिंसक संघर्ष से प्रभावित और विस्थापित एक करोड़ तीस लाख से अधिक नागरिकों के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन सुनिश्चित किए जाने का आह्वान किया है। समस्या यह भी है कि शरणार्थियों को सुरक्षा, राजनीतिक स्थिरता और बुनियादी आवश्यकताओं की किल्लत की चिंता है, जो उन्हें अपने देश लौटने से रोक रही है।

दुनिया भर में रह रहे 75 फीसदी शरणार्थी गरीब, 50 फीसद लोगों को ही मिल पाता है रोजगार

कई दशकों से राजनीतिक अस्थिरता और सांप्रदायिक संघर्षों से जूझते सीरिया में क्षतिग्रस्त घरों की मरम्मत, स्कूल, अस्पताल, जल और बिजली आपूर्ति की जरूरत है। कतर सीरिया की खस्ताहाल बिजली आपूर्ति को सुधारने के लिए जार्डन के जरिए सीरिया को गैस की आपूर्ति करने की तैयारी कर रहा है। कतर को अमेरिकी समर्थन हासिल है। कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी के संस्थापक सदस्य अब्दुल्लाह ओकलान ने अपने समूह से हथियार छोड़ने की अपील की है। इससे सीरिया में शांति स्थापना में व्यापक मदद मिल सकती है। सीरिया की वर्तमान सरकार को ऐसी ही कल्याणकारी कोशिशें करने की जरूरत है, जिससे सभी समुदायों में शांति और सुरक्षा का बेहतर संदेश जाए और वे एक राष्ट्र के रूप में सीरिया के अस्तित्व को स्वीकार कर सकें।

उत्तरी सीरिया में कुर्द बलों को अमेरिका का समर्थन

उत्तरी सीरिया में कुर्द बलों को अमेरिका का समर्थन हासिल है। वहीं ईरान और तुर्की के सीरिया में गहरे राजनीतिक, धार्मिक और सामरिक हित हैं। शिया संप्रदाय से आने वाले असद जब तक सत्ता में रहे, तब तक सीरिया में ईरान का दबदबा रहा। ईरान भी शिया मुसलिम बहुल देश है। अब तुर्की सुन्नी आधारित व्यवस्था को सीरिया में मजबूत करने में जुटा है। ईरान और तुर्की के बीच प्रतिद्वंद्विता की यह स्थिति सीरिया में सांप्रदायिक संघर्ष बढ़ा सकती है। सीरिया के नए नेता अबू मोहम्मद अल जुलानी ने कई बार यह आश्वासन दिया है कि उनके अतीत को लेकर देश के लोग आशंकित न रहें। वहीं संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने जोर देकर कहा है कि यह सुनिश्चित करना होगा कि सीरिया को युद्ध की परछाई से बाहर लाकर, एक ऐसे भविष्य की ओर ले जाया जाए जो गरिमा एवं कानून के राज से निर्धारित हो। जहां सभी की आवाज सुनी जाए और किसी समुदाय को पीछे न छूटने दिया जाए। जबकि हकीकत में ऐसा दिखाई नहीं दे रहा है।