Supreme Court News: पत्नी की हत्या से जुड़े एक मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया। निचली अदालतों ने इस व्यक्ति को आखिरी बार देखे जाने की थ्योरी के सरकमस्टेंशियल एविडेंस (circumstantial evidence) आधार पर दोषी ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि प्रॉसिक्यूशन यह साबित करने में विफल रहा कि दोषी ठहराया गया व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ अंतिम बार तब देखा गया, जब वह जीवित थी।

लाइव लॉ की खबर के अनुसार, यह आदेश सुनाने के बाद जस्टिस अभय ओका ने हाईलाइट किया कि वह व्यक्ति नौ साल से जेल में बंद है। उन्होंने कहा कि यह हमारे सिस्टम में प्रॉब्लम हैं। वो बिना किसी एविडेंस के नौ साल जेल में रहा।

रिपोर्ट में बताया गया कि जस्टिस अभय ओका, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज-मसीह ने ट्रायल कोर्ट और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें IPC की धारा 302 के तहत व्यक्ति को दोषी ठहराया गया था।

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बेंच ने कहा कि इस मामले में PW1 (अभियोजन पक्ष का गवाह या वादी पक्ष का गवाह) के साक्ष्य के अनुसार, महिला की मौत शाम पांच बजे हो चुकी थी। इसके अलावा गवाह ने बताया कि अपील करने वाला शाम 7 बजे घर आया था। इसलिए प्रॉसिक्यूशन यह साबित नहीं कर पाया कि अपील करने वाला आखिरी बार अपनी पत्नी के साथ देखा गया था। इसलिए आरोपी पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

प्रॉसिक्यूशन ने क्या आरोप लगाए?

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, प्रॉसिक्यूशन ने आरोप लगाया था कि अपील करने वालो को अपनी पत्नी पर बेवफाई का शक करता था और आए दिन उससे झगड़ता था। 29 अप्रैल 2006 को उसकी पत्नी शाम करीब पांच बजे अपने घर में मृत पाई गई। प्रॉसिक्यूशन ने यह दावा कि अपीलकर्ता ने महिला की गला घोंटकर हत्या की। ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने “आखिरी बार देखे जाने के सिद्धांत” के आधार पर मृतक महिला के पति को दोषी ठहराया था।

हाई कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए व्यक्ति की तरफ से अपील करने वाले एडवोकेट प्रांजल किशोर ने अपनी दलीलों में कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं है। सिर्फ सरकमस्टेंशियल एविडेंस मौजूद हैं। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि मृतक को आखिरी बार अपीलकर्ता के साथ नहीं देखा गया था। उन्होंने कहा कि आखिरी बार देखे जाने की थ्योरी के बारे में अपीलकर्ता के खिलाफ पुलिस को बयान देने वाले दो गवाह मुकर गए।

प्रॉसिक्यूशन के वकील ने क्या कहा?

छत्तीसगढ़ की तरफ से पेश हुए वकील अपूर्व शुक्ला ने अपनी दलीलों में कहा कि CrPC की धारा 313 के तहत अपने बयान में अपीलकर्ता एविडेंस एक्ट की धारा 106 के तहत अपने अपराध की धारणा का खंडन करने में असफल रहा। उन्होंने कहा कि अपीलकर्ता ने बयान दिया है कि वो शाम चार या पांच बजे के करीब घर आया था।

इस पर जस्टिस ओका ने सवाल किया कि 106 की धारणा लागू होगी। आपको यह साबित करना होगा कि पति और पत्नी एक ही छत के नीचे एक ही परिसर में साथ थे। अगर आप यह साबित नहीं कर पाते तो यह सवाल ही नहीं उठता कि वो यह साबित करे।

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अपीलकर्ता की साली (प्रॉसिक्यूशन की गवाह) ने गवाही दी कि शाम करीब पांच बजे वो मृतक के घर गई थी, तब वो सो रही थी। जब उसने उसे उठाने का प्रयास किया तो उसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। इसके बाद डॉक्टर को बुलाया गया और उन्होंने अपीलकर्ता की पत्नी को मृत घोषित कर दिया। उन्होंने गवाही दी कि अपीलकर्ता शाम करीब सात बजे घर वापस आया। रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि ये गवाह अपने बयान से पलट गया।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि प्रॉसिक्यूशन ने इस गवाह को CrPC की धारा 161 के तहत बयान के प्रासंगिक हिस्से से उसका सामना नहीं करवाया। प्रॉसिक्यूशन के दूसरे गवाह ने भी अपीलकर्ता की उस घर के आस-पास मौजूदगी के बारे में गवाही नहीं दी, जब उसकी पत्नी मृत पाई गई थी। अपीलकर्ता ने कहा कि वो शाम चार से पांच के बीच घर लौटा था, उस समय प्रॉसिक्यूशन के दो गवाह घर में थे, जिन्होंने उसे बताया कि उसकी पत्नी न ही बात कर रही है और न हिल रही है। कोर्ट ने कहा कि धारा 313 के तहत अपीलकर्ता का पूरा बयान प्रॉसिक्यूशन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं करता है।