सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए संपत्तियां गिराने पर कड़ी फटकार लगाई है। हालांकि, जिन लोगों ने इस तरह की कार्रवाई में अपने घर खो दिए हैं उनके लिए लड़ाई अभी आधी ही जीती गई है। उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक, इस तरह से संपत्ति खोने वाले लोग अभी भी उचित मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं।

प्रयागराज में कार्यकर्ता जावेद मोहम्मद और उनका परिवार आगे बढ़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 10 जून, 2022 को मोहम्मद (58) को शहर में तत्कालीन भाजपा नेता नूपुर शर्मा द्वारा पैगंबर पर की गई टिप्पणी के विरोध में भड़की हिंसा के ‘मास्टर माइंड’ होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। दो दिन बाद प्रयागराज के करेली में उनके इलाके में बुलडोजर चल पड़े।

उन्होंने कहा, “जेल की बैरक में मैंने टीवी पर देखा कि जिस घर को मैंने दशकों में बनाया था, उसे ढहाया जा रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि मुझे क्या झेलना पड़ा होगा। घर बनाने में मुझे दशकों लग गए लेकिन इसे ढहाने में मुझे कुछ मिनट लगे।” हिंसा से जुड़े आठ मामलों में आरोपी बनाए जाने के बाद जावेद को इस साल 16 मार्च को जमानत पर रिहा किया गया। जब वह जेल में थे तो उनके परिवार को दूसरा घर खोजने में संघर्ष करना पड़ा। यहां तक कि रिश्तेदार भी उन्हें आश्रय देने में अनिच्छा दिखा रहे थे।

रिश्तेदारों ने किया मदद से इनकार

जावेद ने कहा, “जिस दिन हमारा घर तोड़ा गया, उस दिन जब मेरी बेटी अपने एक करीबी रिश्तेदार के घर गई तो रिश्तेदारों ने डर जताया कि अगर वह वहां रही, तो उनका घर भी तोड़ा जा सकता है।”

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घर ढहाए जाने के तुरंत बाद, जावेद ने मुआवज़ा पाने की उम्मीद में इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। मामला अभी भी कोर्ट में पेंडिंग है लेकिन उन्हें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराने में मदद करेगा। उन्होंने कहा, “मुझे उम्मीद है कि एक दिन मेरे परिवार को अदालत से न्याय मिलेगा। मुझे अपने देश की अदालतों पर पूरा भरोसा है।”

लोगों को मुआवजे की उम्मीद

उदयपुर में 61 वर्षीय राशिद खान, जिनके मामले के कारण सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए थे को भी मुआवजे की उम्मीद है। 16 अगस्त को एक स्कूली छात्र ने अपने सहपाठी की चाकू घोंपकर हत्या कर दी, जिससे शहर में सांप्रदायिक तनाव फैल गया। जल्द ही, जिला प्रशासन ने स्कूली छात्र के घर को ध्वस्त कर दिया।

जिस घर को प्रशासन ने गिराया था वह राशिद खान का था, जिसे लड़के के परिवार को किराए पर दिया गया था। खान के अनुसार, यह उचित सूचना दिए बिना किया गया था। उनके किराएदारों ने कथित तौर पर 17 अगस्त को सुबह 7 बजे उदयपुर नगर निगम (यूएमसी) का एक परिपत्र देखा। नोटिस 16 अगस्त की तारीख का था। फिर, डेढ़ घंटे बाद ही बुलडोजर चल पड़ा।

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कोर्ट में पेंडिंग हैं मुआवजे के मामले

खान ने स्थानीय प्रशासन पर अन्याय का आरोप लगाया और मुआवजे के तौर पर 25 लाख रुपए और ज़मीन की मांग की। हालांकि वे सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत करते हैं लेकिन खान ने कहा कि मुआवज़े का सवाल अभी भी अनुत्तरित है। खान ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने जो किया है वह अच्छा है, लेकिन हमें किसी मुआवजे के बारे में नहीं पता है और न ही यह पता चला है कि हमें मुआवजा मिलेगा या नहीं। सुप्रीम कोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन लोगों के घर ध्वस्त किए गए हैं, उन्हें मुआवजा दिया जाए।”

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बुलडोजर एक्शन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले याचिकाकर्ताओं में मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के एक मजदूर मोहम्मद हुसैन भी शामिल हैं। हुसैन के घर को इस साल जून में आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया गया था, जब उनके बेटे को गाय को मारने और उसके शव को मंदिर में फेंकने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

हुसैन एक लोडर हैं जो 5,000-7,000 रुपये प्रति माह कमाते हैं। उन्होंने कहा कि उनके रिश्तेदार उनके बेटे की गिरफ्तारी के बाद से उनके सात सदस्यीय परिवार की मदद करने से डर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मेरा बेटा अभी भी जेल में है। हम अपने रिश्तेदारों के एक तंग घर में रहते हैं। कोई भी हमें अपने घर में नहीं रखना चाहता क्योंकि हर कोई डरता है कि उनका घर तोड़ दिया जाएगा। यह फैसला हमें उम्मीद देता है। मुझे इस मामले में कोई मुआवज़ा नहीं मिला है। मैं बस अपने परिवार के लिए एक घर चाहता हूँ।”