हरियाणा में पंचायत चुनाव लड़ने वालों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय की है। कोर्ट से पहली बार इस तरह का फैसला आया है। जस्टिस जे. चेलमेश्वर की पीठ ने मौजूदा कानून में बदलाव को चुनौती देने वाली अर्जियां खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि नया कानून संविधान के मुताबिक है और इसे इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता कि इससे चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों के मौलिक अधिकार का हनन होता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य की विधानसभा को नए कानून में बदलाव का अधिकार है।
एक पीआईएल पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर में हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम, 2015 के अमल पर रोक लगा दी थी। इस अधिनियम में व्यवस्था है कि चुनाव लड़ने के लिए सामान्य वर्ग के उम्मीदवार का कम से कम दसवीं पास होना जरूरी है। महिला उम्मीदवारों के लिए आठवीं और दलित के लिए पांचवी पास होने की शर्त रखी गई थी। राज्य सरकार ने इस कानून को वापस लेने की मांग खारिज कर दी थी और कहा था कि इसकी वैधता की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट कर सकता है।
कोर्ट ने शुरुआती सुनवाई में कहा था कि अगर चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय की जाएगी तो भारत की आधी आबादी चुनाव नहीं लड़ पाएगी। कोर्ट का यह भी कहना था कि साक्षरता की स्थिति से समानता के अधिकार का हनन हो सकता है। राज्य सरकार का कहना था कि उसका यह कदम प्रगतिशील है और संसदीय चुनावों में भी अमल में लाए जाने लायक है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले का भी हवाला दिया, जिसके तहत राज्य में सरंपच या उप सरपंच के लिए दो से ज्यादा बच्चे नहीं होने की शर्त तय की गई थी।