उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में केरल सरकार की नयी शराब नीति पर मंगलवार को अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी। इस नीति के तहत सिर्फ पांच सितारा होटलों को बार लाइसेंस दिये जायेंगे। न्यायालय ने कहा कि जनता में शराब के सेवन पर प्रतिबंध लगाने के इरादे से किये गये इस निर्णय में ‘कुछ भी गैरकानूनी या तर्कहीनता’ नहीं है। न्यायालय ने कहा कि उसे केरल बार होटल एसोसिएशन तथा अन्य की अपील स्वीकार करने के लिये कोई उचित कारण या तर्क नजर नहीं आता है। राज्य सरकार की शराब नीति को दो, तीन, चार सितारा होटलों और हेरिटेज होटलों ने भी चुनौती दी थी।

न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन और न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि शत प्रतिशत साक्षरता वाले इस राज्य के तुलनात्मक दृष्टि से छोटा होने के बावजूद देश में शराब की कुल खपत का 14 फीसदी केरल में उपभोग होता है। न्यायालय ने कहा कि पांच सितारा होटलों के अलावा अन्य सभी होटलों पर इस तरह का प्रतिबंध लगाने से संविधान के अनुच्छेद 14 का हनन नहीं होता है।

पीठ ने कहा कि उसे शराब के सेवन पर प्रतिबंध लगाने के राज्य की मंशा पर कोई तर्कहीनता नजर नहीं आती है। न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय की खंडपीठ के निर्णय को बरकरार रखा है। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की नयी शराब नीति को हरी झंडी देते हुये कहा था कि इसका मकसद सार्वजनिक स्थलों पर शराब के सेवन को कम करने और शराब के सेवन से होने वाले प्रतिकूल प्रभावों से युवा वर्ग को बचाना है।

हालांकि शीर्ष अदालत ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि इस नयी नीति के लागू होने के बाद से इन बार में काम करने वाले हजारों कार्मिक बेरोजगार हो गये हैं और एक दर्जन से अधिक ने आत्महत्या भी कर ली है। न्यायालय ने कहा कि चूंकि सरकार ने इन कार्मिकों के पुनर्वास के लिये ऐसी दुकानों से बेचे जाने वाली शराब पर पांच फीसदी उपकर लगा दिया है, इसलिए इस पर सही तरीके से अमल होना चाहिए।