सुप्रीम कोर्ट ने सत्तारूढ़ दल को जनता के पैसे पर अपनी उपलब्धि का बखान करने से रोकने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। उसने सरकारी विज्ञापनों के नियमन से जुड़े दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि इन विज्ञापनों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और प्रमुख न्यायाधीश जैसे कुछ ही पदाधिकारियों की तस्वीरें हो सकती हैं।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले पीठ ने केंद्र सरकार की इस याचिका को खारिज कर दिया कि न्यायपालिका को नीतिगत फैसलों के क्षेत्र में दखल नहीं देना चाहिए। अदालत ने कहा कि कोई नीति या कानून मौजूद न होने की स्थिति में अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। उसने केंद्र सरकार से यह भी कहा कि वह सरकारी विज्ञापन के मुद्दे के नियमन के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन करे।
अदालत ने सरकारी विज्ञापनों के नियमन के संदर्भ में एक समिति की सभी बड़ी सिफारिशें मान लीं। हालांकि अदालत ने मीडिया घरानों को दिए जा रहे सरकारी विज्ञापनों के विशेष आॅडिट के प्रावधान को मंजूरी नहीं दी। उसने प्रतिष्ठित शिक्षाविद प्रोफेसर एनआर महादेव मेनन की अध्यक्षता वाली इस तीन सदस्यीय समिति की वह सिफारिश भी अस्वीकार कर दी, जिसमें कहा गया था कि सरकारी विज्ञापनों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित किसी पदाधिकारी की तस्वीर नहीं होनी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने 24 अप्रैल को समिति बनाई थी और राजनीतिक लाभ लेने के लिए सरकारों और अधिकारियों द्वारा अखबारों व टीवी में विज्ञापन देकर जनता के पैसे का दुरुपयोग किए जाने पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश तय करने का फैसला किया था।
इससे पहले 17 फरवरी को सरकार ने अपने विज्ञापनों के नियमन के लिए दिशानिर्देशों का निर्धारण किए जाने का विरोध किया था। सरकार ने कहा था कि यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता, क्योंकि एक निर्वाचित सरकार संसद के प्रति जवाबदेह है। इसके साथ ही सरकार ने यह भी पूछा था कि अदालत यह कैसे तय करेगी कि कौन सा विज्ञापन राजनीतिक लाभ के लिए जारी किया गया है।
केंद्र का पक्ष रखने के लिए पेश हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि कुछ मामले सिर्फ सरकार पर ही छोड़ दिए जाने चाहिए और ये अदालतों के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि सरकार नीतियों व अन्य मामलों के बारे में इन विज्ञापनों के जरिए ही संवाद करती है।
इससे पहले अदालत ने राजनीतिक हस्तियों की तस्वीरों वाले सरकारी विज्ञापनों के प्रकाशन पर सीधे रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा था कि वह केंद्र का पक्ष और प्रचार संबंधी सामग्री के नियमन से जुड़ी सिफारिशें देने के लिए नियुक्त पैनल की सिफारिशें भी सुनना चाहेगी।
शीर्ष अदालत ने केंद्र और अन्य से कहा था कि वे पैनल की रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रियाएं जमा करवाएं। इन अन्य पक्षों में याचिकाएं दायर करने वाले गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन शामिल थे। तीन सदस्यीय समिति ने उन विज्ञापनों के खर्च और सामग्री के नियमन के लिए दिशानिर्देश तैयार किए थे, जिनके लिए धन का भुगतान करदाताओं के पैसे से किया जाता है।
लोकसभा के पूर्व सचिव टीके विश्वनाथन और सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार की सदस्यता वाली समिति ने सिफारिश की थी कि एक ही विज्ञापन निकाला जाना चाहिए, जो किसी महत्त्वपूर्ण शख्सियत की जयंती या पुण्यतिथि जैसे मौकों पर आए। अच्छा होगा कि यह विज्ञापन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से ही निकाला जाए।