Justice Yashwant Verma: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। उनके घर पर लगी आग और जले हुए नोटों के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच कमेटी की रिपोर्ट में उन्हें दोषी पाया गया था। जस्टिस वर्मा ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी लेकिन आज वह याचिका खारिज हो गई है।
जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट की इंटरनल जांच रिपोर्ट के अलावा तत्कालीन सीजेआई द्वारा उन्हें पद से हटाने की सिफारिश को चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ये कहते हुए जस्टिस वर्मा की याचिका की कि जांच समिति ने सभी तय प्रक्रियाओं का पालन किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा की याचिका पर क्या कहा?
जस्टिस वर्मा की याचिका की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने की थी। बेंच ने कहा कि जस्टिस वर्मा का आचरण विश्वास पैदा नहीं करता इसलिए उनकी याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि इन हाउस समिति का गठन और उसकी जांच अवैध नहीं है।
जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने की प्रक्रिया कब शुरू होगी?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीजेआई और उनकी इन-हाउस समिति ने प्रक्रियाओं का पालन किया है। बस उन्होंने फोटो और वीडियो अपलोड नहीं किए। हमने इसे लेकर कहा भी था कि इसकी जरूरत नहीं है लेकिन आपने उस समय इसे चुनौती नहीं दी। बेंच ने कहा कि तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना ने इस मामले में राष्ट्रपति मुर्मू और पीएम मोदी को जो पत्र भेजा था, वह असंवैधानिक नहीं है।
जस्टिस यशवंत वर्मा की छुट्टी होना तय!
क्या है जस्टिस वर्मा से जुड़ा पूरा मामला
बता दें दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लगी थी। उस वक्त जस्टिस वर्मा घर पर नहीं थे। उनके परिजनों ने आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड से मदद मांगी थी। फायर डिपार्टमेंट की टीम ने आग बुझा दी थी। इसके बाद ही खबरें सामने आईं थीं कि जस्टिस वर्मा के सरकारी बंगले में आग बुझाने के दौरान भारी मात्रा में कैश देखा गया, जिनमें से कई नोट जल भी गए। इन जले नोटों के चलते ही जस्टिस वर्मा की मुश्किलें बढ़ीं थी।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कॉलेजियम की बैठक बुलाकर जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को इस मामले की जांच सौंपी गई थी। सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में हुई इस इंटरनल जांच रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को दोषी पाया गया था। इसके बाद उनके खिलाफ महाभियोग आने का खतरा मंडराने लगा था।