इलाहाबाद हाईकोर्ट की कार्यप्रणाली सुप्रीम कोर्ट की निगाह में अरसे से खटक रही है। एक बार फिर से ऐसा मामला सामने आया जिसने सुप्रीम कोर्ट को नाराज कर दिया। टॉप कोर्ट को जस्टिस इतने ज्यादा नाराज हुए कि अपनी टिप्पणी को रिकार्ड में दर्ज करा दिया। यही नहीं आदेश में सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिया गया कि हमारी नाराजगी को इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार तक पहुंचा दिया जाए।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस पीवी संजय कुमार की बेंच के सामने एक ऐसा मामला आया जिसमें एक FIR में शामिल आरोपियों की जमानत पर अलग अलग जज सुनवाई कर रहे थे। एक मामले में एक आरोपी को जमानत मिल जाती है जबकि दूसरे जज दूसरे आरोपियों को जमानत से इनकार कर देते हैं। सुप्रीम कोर्ट का सवाल था- ये क्या हो रहा हैं?

साजिद की याचिका से पता चला सारा खेल

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जाहिर की कि हाईकोर्ट ने दंगे के ऐसे आरोपी को जमानत पर रिहा कर दिया जो हथियार लेकर वारदात कर रहा था। टॉप कोर्ट के पास एक आरोपी साजिद ने हाईकोर्ट के छह दिसंबर को दिए फैसले को चुनौती दी थी। जस्टिस गवई की अगुवाई वाली बेंच ने साजिद की रिट को बारीकी से देखा तो उनको दिख गया कि हाईकोर्ट में किस तरह का खेल चल रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी जताई थी हाईकोर्ट से नाराजगी

ध्यान रहे कि इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की कारगुजारी पर सख्त नाराजगी जताई थी। इस मामले में हाईकोर्ट ने पांच आरोपियों की अग्रिम जमानत की याचिका को तो नामंजूर कर दिया। लेकिन पुलिस को उनके खिलाफ 2 माह तक कोई कदम उठाने से भी रोक दिया। सुप्रीम कोर्ट का सवाल था कि ये कैसा फैसला है। एक तरफ आप जमानत से इनकार कर रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ उनको अरेस्ट करने से भी रोक रहे हैं।

इससे पहले एक अन्य मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की कार्यप्रणाली पर सख्त नाराजगी जताई थी। इस मसले में एक केस को उस जज की बेंच के पास ही भेज दिया गया था जो पिछले छह माह से इस मामले में फैसले को टाल रहे थे। टॉप कोर्ट ने अपने आदेश में हाईकोर्ट की रजिस्ट्री को फटकार लगाते हुए कहा था कि इस केस को उस जज से तुरंत हटाया जाए जो छह महीने से फैसले को लंबित रख रहे थे।