आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने मणिपुर हिंसा को लेकर अपनी व्यवस्था दे दी है। पहले उसने केंद्र और राज्य सरकार से सख्त लहजे में कहा था कि मणिपुर में हिंसा रोकने के लिए आप कुछ कीजिए, नहीं तो हम करेंगे। मगर सरकारों ने उसके निर्देश को गंभीरता से नहीं लिया। फिर दूसरी सुनवाई में प्रधान न्यायाधीश ने और सख्त टिप्पणी की थी कि मणिपुर में कानून-व्यस्था ध्वस्त हो चुकी है। अदालत ने मणिपुर पुलिस से पूछा था कि बलात्कार और हिंसा के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने में इतना समय क्यों लगा। उसने तमाम प्राथमिकियों का ब्योरा भी मांगा था, मगर पुलिस के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं था।
समिति निदान, राहत, मुआवजे और पुनर्वास प्रयासों को भी देखेगी
इस बार मणिपुर के पुलिस महानिदेशक को तलब किया गया था। उनके सामने ही अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने तीन सेवानिवृत्त महिला न्यायाधीशों की एक न्यायिक समिति की घोषणा की। इस समिति की व्यापक भूमिका होगी। वह सीबीआइ जांचों की निगरानी के साथ-साथ निदान, राहत, मुआवजे और पुनर्वास संबंधी प्रयासों का आकलन करेगी। वह राहत शिविरों की निगरानी भी करेगी। इसके अलावा महाराष्ट्र के एक पूर्व पुलिस महानिदेशक को सीबीआइ जांच पर नजर रखने के लिए नियुक्त किया गया है। राज्य सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दलों पर निगरानी के लिए बाहर के पुलिस अधीक्षक श्रेणी के अधिकारियों को नियुक्त किया गया है।
सीबीआइ और राज्य जांच दल अपनी जांचों में होंगे संजीदा
इस तरह सर्वोच्च न्यायालय ने पहले से चल रही जांचों को न तो रोका है और न मुकदमों को बाहर भेजा है, पर केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से चल रही गतविधियों पर नजर रखनी शुरू कर दी है। यह पहला मौका है जब सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकार की व्यवस्था के ऊपर अपनी एक व्यवस्था लागू कर दी है। इससे स्पष्ट है कि अब भी सर्वोच्च न्यायालय को सरकार की व्यवस्था पर भरोसा नहीं है। न्यायिक समिति सीधा सर्वोच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। स्वाभाविक ही इससे सीबीआइ और राज्य जांच दल अपनी जांचों में कुछ संजीदा हो सकेंगे।
दरअसल, मणिपुर में हिंसक टकराव चलते तीन महीने से ऊपर हो गए, मगर अब तक उसे रोकने के लिए न तो राज्य सरकार की तरफ से कोई गंभीर प्रयास दिखाई देता है और न केंद्र की तरफ से। पुलिस पर भी पक्षपातपूर्ण व्यवहार के आरोप लगते रहे हैं। इस हिंसक टकराव में करीब दो सौ लोग मारे जा चुके हैं, सैकड़ों घर और पूजा स्थल आग के हवाले किए जा चुके हैं। अनेक महिलाओं के साथ बलात्कार की शिकायतें हैं। दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके सड़क पर घुमाने की घटना ने तो पूरी दुनिया को विचलित कर दिया था।
उसके बाद भी सरकारें गंभीर नजर नहीं आईं। रोज ही हिंसक घटनाएं हो जाती हैं। उपद्रवी तत्त्व पुलिस शस्त्रागारों से हथियार लूट ले जाते हैं और वह हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है। राहत शिविरों में करीब साठ हजार लोग त्रासदी झेल रहे हैं। मणिपुर के लोग लंबे समय से केंद्र सरकार से यह हिंसा रोकने की गुहार लगा रहे हैं। मगर इस दिशा में कोई भरोसेमंद पहल नहीं दिखती।
ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय का यह सख्त कदम निश्चित रूप से मणिपुर के लोगों में संवैधानिक व्यवस्था के प्रति भरोसा पैदा करने वाला है। इससे उन लोगों की पहचान हो सकेगी, जिन्होंने यह हिंसा भड़का कर अपना स्वार्थ साधने की कोशिश की। पीड़ितों के पुनर्वास, उचित मुआवजे और न्याय का भरोसा जगा है। सर्वोच्च न्यायालय का यह कदम दोनों सरकारों के लिए एक कड़ा संदेश है।