सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय ओका 24 मई को रिटायर हो रहे हैं। हालांकि शुक्रवार को ही उनका कोर्ट में अंतिम दिन था। इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने उनके सम्मान में एक विदाई समारोह का आयोजन किया। इस मौके पर बोलते हुए जस्टिस ओका ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था मुख्य न्यायाधीश पर केंद्रित है और उसमें बड़े बदलाव की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था में बड़े बदलाव की जरूरत- जस्टिस ओका

जस्टिस ओका ने कहा कि हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट से अधिक लोकतांत्रिक तरीके से काम करते हैं। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट समितियां के जरिए काम करते हैं जबकि सुप्रीम कोर्ट भारत के मुख्य न्यायाधीशों पर केंद्रित अदालत है और उसमें बदलाव की जरूरत है।

जस्टिस ओका ने शुक्रवार को कहा कि न्यायाधीशों को दृढ़ रहना चाहिए और किसी को अपमानित करने में संकोच नहीं करना चाहिए। न्यायमूर्ति ओका ने उन टिप्पणियों का उल्लेख किया कि वे कभी-कभी कठोर हो जाते थे, और कहा, “मेरा हमेशा से मानना रहा है कि एक न्यायाधीश को बहुत दृढ़ होना चाहिए और एक न्यायाधीश को बहुत सख्त होना चाहिए।एक न्यायाधीश को किसी को अपमानित करने में संकोच नहीं करना चाहिए। लेकिन मैं केवल एक कारण से कठोर था। मैं हमारे संविधान द्वारा निर्धारित सिद्धांतों को कायम रखना चाहता था।” न्यायमूर्ति ओका ने याद किया कि एक महान न्यायाधीश ने एक बार हमें सलाह दी थी, कृपया एक बात याद रखें। आप लोकप्रिय होने के लिए न्यायाधीश नहीं बन रहे हैं। मैंने उस सलाह का पूरी तरह पालन किया है। और इसीलिए आज अप्रत्यक्ष रूप से यह कहा गया कि कभी-कभी मैं बहुत कठोर हो जाता था।”

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जस्टिस ने कहा, “मेरा मानना है कि यह एक ऐसी अदालत है जो संवैधानिक स्वतंत्रता को बनाए रख सकती है। यही मेरा विनम्र प्रयास रहा है। मुझे यकीन है कि यहां बैठे इतने सारे दिग्गजों के सामूहिक प्रयासों से यह अदालत स्वतंत्रता को बनाए रखना जारी रखेगी क्योंकि यही संविधान निर्माताओं का सपना था।”

भविष्य की योजनाओं के बारे में जस्टिस ओका ने कहा, “हर कोई दूसरी पारी या तीसरी पारी के बारे में बात करता था। आप क्रिकेट की शब्दावली का उपयोग कर रहे हैं, मैं उसी का सहारा ले रहा हूँ, मैंने एक दिवसीय मैच की तरह खेला। एक दिवसीय मैच में कोई दूसरी पारी नहीं होती। इसलिए आज कम से कम मैं एक और पारी खेलने के बारे में नहीं सोच रहा हूं। मुझे इस पर विचार करने में कुछ समय लगेगा।”

सीजेआई बी आर गवई ने कहा कि जस्टिस ओका का योगदान निर्णयों से कहीं आगे तक फैला हुआ है और संविधान के प्रति गहरी समर्पण को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि भारतीय न्यायशास्त्र में जस्टिस ओका के योगदान को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। सीजेआई गवई ने कहा, “पिछले कुछ सालों में उनके फैसलों ने हमारे देश के कानूनी परिदृश्य को आकार दिया है और उसे मजबूत किया है। चाहे वह पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में हो, चाहे सरकार को उन लोगों के प्रति जवाबदेह बनाना हो जिनकी वे सेवा करते हैं, या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना हो और चाहे सबसे हाशिए पर पड़े लोगों के अधिकारों को बनाए रखना हो, जस्टिस ओका के फैसलों ने हमारे संविधान में निहित मूल मूल्यों की लगातार पुष्टि की है।”