Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिना किसी राज्य सरकार का नाम लिए सियासी दलों को आईना दिखाने वाली टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने विभिन्न राज्यों की आर्थिक योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य के पास सारा पैसा उन लोगों के लिए है जो कोई काम नहीं करते लेकिन जब डिस्ट्रिक्ट ज्यूडिशियरी के जजों को सैलरी और पेंशन देने की बात आती है तो वे वित्तीय संकट का दावा करते हैं।
PTI की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राज्यों के पास उन लोगों को मुफ्त सुविधाएं देने के लिए पर्याप्त धन है जो कोई काम नहीं करते, लेकिन जब बात डिस्ट्रिक्ट ज्यूडिशियरी के जजों को सैलरी और पेंशन देने की बात आती है तो वे वित्तीय संकट का दावा करते हैं।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने यह मौखिक टिप्पणी तब की जब अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने दलील दी कि सरकार को ज्यूडिशियल ऑफिसर्स की सैलरी और रिटायरमेंट बेनिफिट्स पर फैसला लेते वक्त वित्तीय बाधाओं पर विचार करना होगा।
रिपोर्ट के अनुसार, बेंच ने कहा कि राज्यों के पास उन लोगों के लिए पैसा है, जो काई काम नहीं करते। चुनाव आते ही आप लाडली बहना और अन्य नई स्कीमों का ऐलान करते हैं, जहां आप फिक्स अमाउंट देते हैं। दिल्ली में किसी पार्टी ने ऐलान किया है कि वो सत्ता में आए तो 2500 रुपये देंगे।
कुछ जजों को मिल रही 10,000 से 15,000 रुपये के बीच पेंशन
सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि वित्तीय बोझ की वास्तविक चिंताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह टिप्पणी उस समय की गई जब रिटायर्ड जजों की पेंशन के संबंध में ऑल इंडिया जज एसोसिएशन द्वारा 2015 में दायर याचिका पर सुनवाई चल रही थी। इस पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह “दयनीय” है कि कुछ रिटायर्ड हाई कोर्ट जजों को 10,000 से 15,000 रुपये के बीच पेंशन मिल रही है।