सुप्रीम कोर्ट ने आज देश में वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण की बढ़ती समस्या पर अपनी नाराजगी जाहिर की। सर्वोच्च अदालत ने इस मुद्दे पर सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया है। नोटिस में अदालत ने कहा है कि साफ हवा और पानी मुहैया नहीं कराने के कारण राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को लोगों को मुआवजा क्यों नहीं देना चाहिए। कोर्ट ने नोटिस का जवाब देने के लिए 6 हफ्ते का समय दिया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को निर्देश दिए हैं कि वह दिल्ली में चलने वाली फैक्ट्रियों से पर्यावरण पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव पर अपनी रिपोर्ट दे।

जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने पंजाब के मुख्य सचिव से भी सवाल किया कि उन्होंने किसानों द्वारा पराली जलाने से रोकने के लिए क्या उपाय किए हैं? कोर्ट ने कहा कि आप लोगों को इस तरह ट्रीट नहीं कर सकते और उन्हें मरने के लिए नहीं छोड़ सकते। हमें बताइए कि हमारे आदेश के बाद भी पराली जलाने की घटनाएं क्यों बढ़ीं? हम पराली जलने से क्यों नहीं रोक पा रहे हैं। यह हमारी असफलता नहीं है?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘हम राज्य की हर मशीनरी को जिम्मेदार ठहराएंगे। आप लोगों को इस तरह मरने के लिए नहीं छोड़ सकते। दिल्ली में दम घुटने के हालत हो गए हैं। क्योंकि आप कुछ कर नहीं पा रहे हैं, इसका मतलब ये नहीं है कि दिल्ली-एनसीआर के लोग मर जाने चाहिए या वो कैंसर से पीड़ित हो।’ कोर्ट ने हरियाणा सरकार से सवाल किया कि राज्य में पराली जलाने की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं? कोर्ट ने कहा कि पंजाब और हरियाणा कुछ नहीं कर रहे हैं।

सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि लोगों को गैस चैंबर में रहने के लिए मजबूर क्यों किया जा रहा है? अच्छा होगा कि सभी को एक साथ मार दिया जाए, 15 बैग्स में विस्फोटक भरकर लाइए और एक साथ विस्फोट कर दीजिए। लोग इस तरह क्यों परेशान हों। दिल्ली में सभी एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। हम इससे अचंभित हैं।