सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसियों द्वारा कानूनी सलाह देने वाले या मामलों में पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को तलब करने पर स्वत: संज्ञान (Suo Motu) लेते हुए मामला दर्ज किया है। चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ 14 जुलाई को इस मामले की सुनवाई करेगी।
यह सुनवाई ईडी द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को जारी किए गए समन के तुरंत बाद हुई है, जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया था। ईडी के समन की काफी आलोचना हुई थी। 25 जून को जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एनके सिंह की शीर्ष अदालत की पीठ ने जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को तलब करने के प्रश्न को आगे की कार्रवाई के लिए मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया था।
पीठ ने कहा था कि कानूनी पेशा न्याय प्रशासन की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है
पीठ ने कहा था कि कानूनी पेशा न्याय प्रशासन की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। जो वकील अपनी कानूनी प्रैक्टिस में लगे हैं उन्हें कुछ अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त हैं जो इस तथ्य के कारण सुनिश्चित हैं कि वे कानूनी पेशेवर हैं और वैधानिक प्रावधानों के कारण भी। जांच एजेंसियों/पुलिस को किसी मामले में पक्षकारों को सलाह देने वाले बचाव पक्ष के वकील/अधिवक्ताओं को सीधे बुलाने की अनुमति देना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को गंभीर रूप से कमजोर करेगा और न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए सीधा खतरा भी होगा।”
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अदालत ने कहा था, “जो दांव पर लगा है वह है न्याय प्रशासन की प्रभावशीलता और वकीलों की कर्तव्यनिष्ठा और उससे भी महत्वपूर्ण, निडरता से अपने पेशेवर कर्तव्यों का निर्वहन करने की क्षमता। चूंकि, यह मामला सीधे न्याय प्रशासन को प्रभावित करता है इसलिए किसी पेशेवर को जहां वह इस मामले में वकील है, जांच एजेंसी/अभियोजन एजेंसी/पुलिस के इशारे पर काम करने देना, प्रथम दृष्टया अस्वीकार्य प्रतीत होता है।”
क्या जांच एजेंसी/अभियोजन एजेंसी/पुलिस सीधे वकील को पूछताछ के लिए बुला सकती है?
पीठ ने पूछा, ‘‘कुछ विचारणीय प्रश्नों में से एक यह भी है कि जब कोई व्यक्ति किसी मामले से केवल पक्षकार को सलाह देने वाले वकील के रूप में जुड़ा होता है तो क्या जांच एजेंसी/अभियोजन एजेंसी/पुलिस सीधे वकील को पूछताछ के लिए बुला सकती है?’’ एक और प्रश्न पूछते हुए पीठ ने कहा, ‘‘यह मानते हुए कि जांच एजेंसी या अभियोजन एजेंसी या पुलिस के पास ऐसा मामला है जिसमें व्यक्ति की भूमिका केवल एक वकील के रूप में नहीं है, बल्कि उससे कहीं अधिक है, तब भी क्या उन्हें सीधे समन जारी करने की अनुमति दी जानी चाहिए या उन असाधारण परिस्थितियों के लिए न्यायिक निगरानी निर्धारित की जानी चाहिए?’’
ईडी ने कहा था कि किसी वकील को एजेंसी के निदेशक की अनुमति के बिना तलब न किया जाए
न्यायालय ने यह कदम ईडी की ओर से वरिष्ठ वकीलों-अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल- को तलब किये जाने के बाद उठाया गया है। हालांकि, बाद में जांच एजेंसी ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे मनी लॉन्डरिंग मामलों की जांच के दौरान आरोपी व्यक्ति के वकील को समन जारी न करें। ईडी ने 20 जून को अपने जांच अधिकारियों को जारी निर्देश में कहा था कि किसी वकील को एजेंसी के निदेशक की अनुमति के बिना तलब न किया जाए।
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मनी लॉन्डरिंग अपराधों से निपटने के लिए कार्यरत केंद्रीय जांच एजेंसी ने अपने क्षेत्रीय संरचनाओं के मार्गदर्शन के लिए सर्कुलर जारी किया, जिसमें कहा गया कि बीएसए, 2023 की धारा 132 का उल्लंघन करते हुए किसी भी वकील को कोई समन जारी नहीं किया जाना चाहिए। एजेंसी ने कहा, “इसके अलावा अगर बीएसए, 2023 की धारा 132 के प्रावधानों के तहत किसी भी समन को जारी करने की आवश्यकता है तो इसे केवल ईडी के निदेशक की पूर्व स्वीकृति से ही जारी किया जाएगा।” वकीलों ने रेलिगेयर एंटरप्राइजेज की पूर्व अध्यक्ष रश्मि सलूजा को पेश की गई कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना पर केयर हेल्थ इंश्योरेंस लिमिटेड को कानूनी सलाह दी थी।
उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) और उच्चतम न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) ने इस समन की निंदा करते हुए इसे विधिक पेशे की नींव पर हमला करने वाली “चिंताजनक प्रवृत्ति” बताया था। बार निकायों ने भारत के प्रधान न्यायाधीश से मामले का स्वतः संज्ञान लेने का आग्रह किया था। न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की एक पीठ ने 25 जून को कहा था कि कानूनी पेशा न्याय प्रशासन की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। पढ़ें- देश दुनिया की तमाम बड़ी खबरों के लेटेस्ट अपडेट्स
(भाषा के इनपुट के साथ)