सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (1 मई, 2023) को तलाक पर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने कहा कि अगर संबंधों को सुधारना संभव ना हो तो कोर्ट शादी खत्म कर सकता है। कोर्ट के पास संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेष अधिकार हैं। बेंच ने कहा कि आपसी सहमति हो तो कुछ शर्तों के साथ तलाक के लिए अनिवार्य 6 महीने के वेटिंग पीरियड की भी जरूरत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि वह आपसी सहमति से तलाक के इच्छुक दंपति को फैमिली कोर्ट भेजे बिना भी अलग रहने की इजाजत दे सकता है।

जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, ए.एस. ओका, विक्रम नाथ और जे.के. महेश्वरी की पांच सदस्यीय बेंच मामले में सुनवाई कर रहा थी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए गाइडलाइन जारी की है। कोर्ट ने गाइडलाइन में गुजाराभत्ता समेत अन्य प्रावधानों का भी जिक्र किया है। कोर्ट ने कहा, “हमने माना कि पति पत्नी के बीच विवाह के अपरिवर्तनीय टूटने (जब संबंधों को वापस पटरी पर लाना संभव ना हो) के आधार पर विवाह विच्छेद संभव है। यह सार्वजनिक नीति के विशिष्ट या मौलिक सिद्धातों का उल्लंघन नहीं करेगा।” गाइडलाइन में गुजाराभत्ता और बच्चों के अधिकारों का भी जिक्र किया गया है।

पीठ की ओर से न्यायमूर्ति खन्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा, “हमने कहा है कि इस अदालत के दो फैसलों में उल्लेखित जरूरतों और शर्तों के आधार पर छह महीने की अवधि दी जा सकती है।” सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 29 सितंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था। कोर्ट ने दलीलों पर सुनवाई करते हुए कहा कि सामाजिक परिवर्तनों में थोड़ा समय लगता है और कई बार कानून बनाना आसान होता है लेकिन समाज को इसके साथ बदलाव के लिए मनाना मुश्किल होता है। पीठ इस बात पर भी विचार कर रहा था कि क्या अनुच्छेद 142 के तहत इसकी व्यापक शक्तियां ऐसे परिदृश्य में किसी भी तरह से अवरुद्ध होती हैं, जहां किसी अदालत की राय में शादीशुदा संबंध इस तरह से टूट गया है कि जुड़ने की संभावना नहीं है लेकिन कोई एक पक्ष तलाक में अवरोध पैदा कर रहा है।

संविधान बेंच के पास भेजे गए मामले में मुख्य मुद्दा यह था कि क्या हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए जरूरी वेटिंग पीरियड को समाप्त किया जा सकता है। हालांकि, कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इस पर भी विचार किया कि क्या विवाहों को अपरिवर्तनीय टूटने के आधार पर भंग किया जा सकता है।