उच्चतम न्यायालय ने सोमवार (28 मार्च) को विवादित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को उनके देश वापस भेजने और भारत सरकार द्वारा मंजूर उनका वीजा रद्द करने की मांग वाली याचिका विचारार्थ स्वीकार करने से इंकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ एक एनजीओ द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए कहा, ‘‘क्या आपको लगता है कि हमारे पास कोई और काम करने के लिए नहीं है।’’

पीठ एनजीओ ‘ऑल इंडिया ह्यूमन राइट्स एंड सोशल जस्टिस फ्रंट’ द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसने तस्लीमा का वीजा रद्द करने की मांग करते हुए आरोप लगाया कि वह बिना पूर्व अनुमति हर मुद्दे पर अपना नजरिया साझा करके ‘फारेनर्स आर्डर, 1948’ और ‘फॉरेनर्स एक्ट, 1946’ का उल्लंघन कर रही हैं।

एनजीओ के प्रमुख और वकील नाफिस अहमद सिद्दीकी ने कहा कि वर्ष 1994 से निर्वासन में रह रहीं तस्लीमा यहां पेशेवर काम करने के साथ विवादित बयान दे रही हैं। उन्होंने दावा किया कि अधिकारी 180 दिन से भी ज्यादा समयावधि के लिए तस्लीमा को वीजा दे रहे हैं जिसकी अनुमति नहीं है। इससे पहले उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर एनजीओ की जनहित याचिका खारिज कर दी थी।