सुप्रीम कोर्ट ने एलआईसी के खिलाफ जीवन सरल याचिका के जरिये पॉलिसी होल्डर्स को भ्रमित करने व धोखा देने से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और दीपक गुप्ता की पीठ ने आर्टिकल 32 के तहत अप्रभावित पक्ष की तरफ से दायर याचिका हवाला देते कहा कि इस मामले में सुनवाई नहीं की जा सकती है।
एलआईसी की जीवन सरल पॉलिसी के खिलाफ शीर्ष अदालत में एनजीओ मनीलाइफ फाउंडेशन की तरफ से याचिका दायर की गई थी। याचिका में एलआईसी द्वारा जीवन सरल पॉलिसी को बाजार से तुरंत वापस लेने की मांग की गई। एनजीओ का कहना था कि एलआईसी द्वारा जीवन सरल पॉलिसी के जरिये लोगों को भ्रमित करने के साथ ही उनके साथ धोखाधड़ी की जा रही है।
इस पॉलिसी लेने वाले व्यक्ति को 10 साल या उससे अधिक तक प्रीमियम जमा करने के बाद उसके जमा किए गए प्रीमियम की आधी राशि भी नहीं मिल रही है। यह पॉलिसी लोगों को नेगेटिव रिटर्न दे रही है। खासकर अधिक उम्र वाले लोगों को, जो निवेश की दृष्टि से यह पॉलिसी ले रहे हैं।
याचिका में आगे आरोप लगाया गया था कि पॉलिसी को भ्रामक और त्रुटिपूर्ण प्रपोजल फॉर्म के साथ बेचा जा रहा है। याचिका में यह भी कहा गया था कि लोगों के भ्रमित कर इस पॉलिसी के तहत 73000 करोड़ रुपये से लेकर 1 लाख करोड़ रुपये का निवेश हो चुका है। याचिका में पॉलिसीहोल्डर्स की बीमा प्रीमियम की राशि को 8 फीसदी ब्याज के साथ लौटाने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट जब इस जनहित याचिका दायर करने का आधार पूछा तो मनीलाइफ फाउंडेशन ने कहा था कि पॉलिसीहोल्डर एकजुट नहीं हैं। इसलिए वह उनकी तरफ से जनहित याचिका के जरिये यह मामला अदालत के समक्ष लेकर आया है।
यह है जीवन सरल योजनाः एलआईसी की जीवन सरल योजना एक एंडोमेंट स्कीम है। यह बीमित रकम के दोगुना डेथ बेनिफिट और प्रीमियम रिटर्न के साथ नॉन यूनिट लिंक्ड बीमा योजना है। इस योजना के तहत, पालिसीधारक खुद प्रीमियम भुगतान की रकम तय करता है। तय किए गए मासिक प्रीमियम का 250 गुणा मूल बीमा की रकम होती है।
अगर पॉलिसी होल्डर पूरे पॉलिसी पीरियड तक जीवित रहता है, तो उसे मैच्योरिटी पर मिलनेवाले बीमित रकम के साथ लॉयल्टी एडिसन्स का भुगतान किया जाता है। मैच्योरिटी पर मिलनेवाली बीमित रकम, पॉलिसी होल्डर की पॉलिसी लेने के समय उम्र तथा उसके द्वारा शुरू में चुनी गई पालिसी अवधि पर निर्भर करती है।