What is Article 143: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही मे राष्ट्रपति को लेकर कहा था कि किसी भी विधेयक को तीन महीने के अंदर पास करने या रिजेक्ट कर दिया जाए। इसे लंबे समय तक लटकाए रखने को लेकर कोर्ट ने राज्यपाल और राष्ट्रपति को लेकर फैसला दिया था। इस पर पिछले हफ्तों से लंबी बहस चल रही है। इस बीच राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा है, जिस पर नए सवाल खड़े होने लगे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 143 (1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगी है कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित निर्णय लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति और राज्यपालों के फैसलों पर समय सीमा तय कर सकता है।
अनुच्छेद 143 को लेकर क्या हैं प्रावधान
अब सबसे हम सवाल यह है कि संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत राष्ट्रपति ने जो सलाह मांगी है, उसको लेकर प्रावधान क्या हैं… तो बता दें कि इस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति किसी भी कानूनी मुद्दे पर सीधे सुप्रीम कोर्ट से सलाह तो ले सकते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई राय पर अमल करने के लिए बाध्य नहीं हो सकते हैं। हालांकि इसका महत्व संवैधानिक तौर पर काफी ज्यादा होता है।
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राष्ट्रपति ने पूछे हैं 14 सवाल
संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के तहत सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ राष्ट्रपति को किसी भी मुद्दे पर सलाह दे सकती हैं। बता दें कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र भेजा था जिसमें 14 कानूनी प्रश्न शामिल थे। यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ था जब राज्यपालों और राष्ट्रपति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था और राज्यपाल-राष्ट्रपति के लिए विधेयक को पास करने के लिए 3 महीने की समय सीमा तय कर दी थी।
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पहले भी सुप्रीम कोर्ट से राय मांग चुके हैं राष्ट्रपति
गौरतलब है कि पहले भी दो बार राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट से राय मांग चुके हैं लेकिन दोनों ही बार सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी तरह की राय नहीं दी। साल 1982 में पाकिस्तान से आए प्रवासियों के पुनर्वास संबंधी कानून पर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी थी लेकिन बाद में वह कानून संसद से पारित हो गया था जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट की राय अप्रासंगिक हो गई थी। इसके अलावा साल 1993 में जब राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद में मंदिर की पूर्व स्थिति पर राष्ट्रपति द्वारा राय मांगी गई थी, तब भीकोर्ट ने धार्मिक और संवैधानिक मूल्यों के विपरीत मानते हुए कोई राय देने से इनकार कर दिया था।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट कहना है कि अनुच्छेद 143 का उपयोग किसी पहले से दिए गए निर्णय की समीक्षा या पलटने के लिए नहीं किया जा सकता है। 1991 में कावेरी जल विवाद पर कोर्ट ने कहा था कि निर्णय देने के बाद इस विषय पर राष्ट्रपति की राय मांगना न्यायपालिका की गरिमा के विरुद्ध हो जाता है। ऐसे में सरकार चाहे तो पुनर्विचार याचिका या क्यूरेटिव पिटीशन दायर कर सकती है जो की न्यायिक प्रक्रिया का एक हिस्सा होता है।