सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को देश के विभिन्न हाई कोर्ट के जजों के बार-बार उच्चतम न्यायालय की अनदेखी करने पर चिंता जताई। शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायाधीशों का रवैया न्यायपालिका की छवि को खराब करने वाले थे। उच्चतम न्यायालय ने देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सोच के तौर-तरीकों पर सोमवार को चिंता व्यक्त की और इसे न्यायपालिका की छवि गिराने का प्रयास करार दिया।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति पी के मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति है। न्यायालय ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि उसके बार-बार ताकीद करने का उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, साथ ही इसके निर्णयों की लगातार अनदेखी की जाती है। न्यायालय ने कहा कि इसका नतीजा यह हुआ है कि विपरीत परिस्थितियों में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के काम करने के बावजूद कुछ न्यायाधीशों की वजह से न्यायिक प्रणाली बदनाम हो रही है। ऐसे लोग सम्पूर्ण न्यायपालिका की खराब छवि प्रस्तुत कर रहे हैं।
उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों पर असर नहीं- SC
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस पीके मिश्रा ने कहा कि यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति है और शीर्ष अदालत द्वारा बार-बार याद दिलाए जाने पर उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों पर असर नहीं हो रहा है। साथ ही के फैसलों की लगातार अनदेखी पर आश्चर्य व्यक्त किया। पीठ ने कहा, “हाल के दिनों में कई मौकों पर, इस अदालत ने देश भर के विभिन्न उच्च न्यायालयों के विद्वान न्यायाधीशों के व्यवहार और विचार पैटर्न को ध्यान में रखते हुए स्वत: कार्यवाही शुरू की है, जो सामान्य रूप से न्यायपालिका और विशेष रूप से उच्च न्यायालयों की छवि को खराब करती है।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी न्यायाधीश के लिए निर्धारित मानकों से हटना राष्ट्र द्वारा उस पर जताए गए भरोसे को धोखा देना होगा। सुपीम कोर्ट ने कहा, “हमें पूरी उम्मीद है कि उच्च न्यायालयों के विद्वान न्यायाधीश सावधान और सतर्क रहते हुए उन लोगों की सेवा के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे, जिनके लिए वे अस्तित्व में हैं, साथ ही पद की शपथ जो उन्होंने ली है।”
वकील की दलीलें सुनने के बाद हाई कोर्ट ने नहीं सुनाया था आदेश
शीर्ष अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि गुजरात हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने 1 मार्च, 2023 को वकील की दलीलें सुनने के बाद आदेश नहीं सुनाया था और उच्च न्यायालय के आईटी सेल ने याचिकाकर्ता को अप्रैल 2024 में एक तर्कसंगत आदेश की सॉफ्ट कॉपी दी थी, एक साल बाद। पीठ ने कहा कि गुजरात उच्च न्यायालय ने इस मामले में गंभीर रूप से कानून का उल्लंघन किया है।
शीर्ष अदालत ने यह मानते हुए रेखांकित किया कि न्यायाधीश को यह व्यक्त करना था कि बर्खास्तगी के कारणों का पालन किया जाएगा, ‘खारिज’ कहने और आदेश को वेबसाइट पर अपलोड करने के एक साल बाद विस्तृत, तर्कसंगत आदेश लिखने का कोई वैध कारण नहीं था। अदालत ने कहा कि उसने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि याचिका खारिज करने के लिए कारण बताने का कर्तव्य और जिम्मेदारी न्यायाधीश के दिमाग से पूरी तरह गायब है।
सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता
उच्च न्यायालय ने इसे नए सिरे से विचार के लिए किसी अन्य पीठ को सौंपने के लिए कहा। कोर्ट ने कहा,”संभवतः न्यायाधीश सहित शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो वास्तव में यह दावा कर सके कि उसने अपने जीवन में कोई गलती नहीं की है। यह मानवीय व्यवहार की विशेषता है कि लोग गलतियां करने के लिए प्रवृत्त होते हैं। इस तरह, व्यक्ति गलतियों से सबक सीखते हैं जो आगे बढ़ने के लिए अतीत को पीछे छोड़ने में मदद करते हैं।”
अदालत ने आगे कहा कि निष्पक्षता, औचित्य और अनुशासन के उच्चतम मानकों को ध्यान में रखते हुए, समय की मांग है कि न्यायाधीश मामले को एक बार फिर से बोर्ड पर लाएं, बर्खास्तगी के मौखिक आदेश को वापस लें और इसे मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखें।
जजों से क्या अपेक्षा करता है समाज
शीर्ष अदालत ने कहा कि आज की दुनिया में, जब ज्यादा से ज्यादा लोग अदालती कार्यवाही में रुचि दिखा रहे हैं, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर व्यापक कवरेज हो रही है तो जज भी समान रूप से ध्यान के केंद्र में हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “समाज उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश से अपेक्षा करता है कि वह ईमानदारी का आदर्श, बेदाग और अटल सिद्धांतों का प्रतीक, नैतिक उत्कृष्टता का चैंपियन हों जो लगातार उच्च कार्य कर सके और न्याय की गुणवत्ता की गारंटी दे सके।”