सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देश में महिलाओं की सुरक्षा पर चिंता व्यक्त की। शीर्ष अदालत ने कहा कि महिलाओं के संबंध में लोगों की मानसिकता बदलनी होगी। कोर्ट ने देश को लड़कियों और महिलाओं के लिए सुरक्षित और बेहतर स्थान बनाने का अनुरोध किया।
देश को लड़कियों और महिलाओं के लिए सुरक्षित और बेहतर स्थान बनाने का आग्रह करते हुए, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, “महिलाओं को अकेला छोड़ दें। हमारा एकमात्र अनुरोध है कि महिलाओं को अकेला छोड़ दें। हमें उनके आसपास हेलीकॉप्टर की जरूरत नहीं है, उन पर निगरानी रखने और उन पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत नहीं है। उन्हें बढ़ने दें, यही इस देश की महिलाएं चाहेंगी।”
ANI की खबर के अनुसार, पीठ ने कहा कि उसने वास्तविक जीवन में ऐसे मामले देखे हैं, जिनमें खुले में शौच के लिए जाने वाली महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न किया जाता है। पीठ ने कहा कि कई स्थानों पर ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों की कमी के कारण महिलाओं को शाम तक खुले में शौच के लिए इंतजार करना पड़ता है।
‘लोग अपनी जान गंवा रहे हैं’, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को लगाई फटकार
महिलाओं को शौच जाने के लिए भी शाम तक इंतजार करना पड़ता है- सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “गांव में स्वच्छ भारत अभियान के कारण कुछ विकास हो सकता है, लेकिन अभी भी कई जगहों पर शौचालय नहीं हैं। जिन महिलाओं को शौच के लिए जाना होता है, उन्हें शाम तक इंतजार करना पड़ता है। युवतियों को भी शाम तक बाहर निकलने का इंतजार करना पड़ता है, क्योंकि वे दिन में खुले में नहीं जा सकतीं, हमने ऐसे मामले देखे हैं।” पीठ ने कहा कि जोखिम दोगुना है, क्योंकि पहला, महिलाएं पूरे दिन शौच नहीं कर सकतीं और इसका उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और दूसरा, क्योंकि वे शाम को बाहर जाती हैं और जाते या लौटते समय उन्हें यौन उत्पीड़न का खतरा रहता है।
सुप्रीम कोर्ट बोला- महिलाओं के लिए शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में, हर जगह खतरा है
सर्वोच्च न्यायालय ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए बहुआयामी जागरूकता अभियान की आवश्यकता पर जोर दिया। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “चाहे शहर हो या ग्रामीण क्षेत्र, महिलाओं की वल्नरेबिलिटी ऐसी चीज है जिसे पुरुष कभी नहीं समझ पाएंगे। एक महिला जब सड़क, बस या रेलवे स्टेशन पर कदम रखती है तो उसे जो महसूस होता है, वह अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के निरंतर बोझ के साथ एक अतिरिक्त मानसिक बोझ है, जो वह घर, काम और समाज में अपनी जिम्मेदारियों के साथ उठाती है। हर नागरिक को सुरक्षित होना चाहिए, लेकिन यह अतिरिक्त बोझ महिला को उठाना पड़ता है।”
पीठ ने आगे कहा, “उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि महिलाएं यौन उत्पीड़न की धमकियां पाने के लिए यहां हैं, मानसिकता बदलनी होगी। शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में, खतरा हर जगह है।” पढ़ें- जज और वकील की भूमिका निभा सकता है AI? जानिए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ने क्या कहा