सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति पर कॉलेजियम के अपने फैसले को दोहराने के लिए बाध्य है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कानून और न्याय मंत्रालय को नोटिस जारी किया और न्यायाधीशों की नियुक्ति में देरी पर जवाब मांगा।
अदालत ने कहा, “जब तक बेंच सक्षम वकीलों से सुशोभित नहीं होती है, तब तक कानून और न्याय के शासन की अवधारणा ही प्रभावित होती है। उच्च न्यायालय के कॉलेजियम से सिफारिश के बाद सरकार से इनपुट लेने की विस्तृत प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने नामों पर विचार किया।”
जस्टिस संजय किशन कौल और अभय ओका की पीठ ने कानून और न्याय मंत्रालय में न्याय सचिव और अतिरिक्त सचिव (प्रशासन और नियुक्ति) को 28 नवंबर से पहले जवाब देने के लिए एक नोटिस जारी किया। SC के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम का भी हिस्सा हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वर्तमान में सरकार के पास 10 सिफारिशें लंबित हैं, जहां कॉलेजियम ने हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में एक उम्मीदवार की नियुक्ति के अपने फैसले को दोहराया है। वहीं कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित 11 नाम भी सरकार के पास बिना किसी कारण के लंबित हैं।
कोर्ट ने कहा, “हमने पाया है कि नामों को होल्ड पर रखने का तरीका (चाहे विधिवत सिफारिश की गई हो या दोहराई गई हो) इन व्यक्तियों को अपना नाम वापस लेने के लिए मजबूर कर देती है। इसका तात्पर्य यह है कि सरकार न तो व्यक्तियों की नियुक्ति करती है और न ही नामों पर (यदि कोई हो) की सूचना देती है।”
आम तौर पर CJI जो कॉलेजियम का प्रमुख होता है, वह न्यायाधीशों की नियुक्ति पर प्रशासनिक पक्ष पर सरकार के साथ संवाद करता है। पिछली बार 2016 में सरकार से न्यायिक पक्ष में नियुक्ति में देरी को दूर करने के लिए तत्कालीन सीजेआई टीएस ठाकुर ने निर्देश दिया था।
26 सितंबर को तत्कालीन सीजेआई यूयू ललित की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने जस्टिस दत्ता के नाम की सिफारिश की थी। उसके बाद तत्कालीन CJI ने SC के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए एक वरिष्ठ अधिवक्ता सहित चार और उम्मीदवारों की सिफारिश करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन कॉलेजियम एक बैठक के बजाय एक लिखित नोट के माध्यम से सिफारिशों पर निर्णय लेने पर विभाजित हो गया था।