Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बांद्रा ईस्ट में भारत नगर झुग्गी बस्ती के रिडेवलेपमेंट का रास्ता साफ कर दिया। कोर्ट ने स्लम रिहेबिलेशन अथॉरिटी के नोटिस के खिलाफ लोगों की तरफ से दायर अपील को खारिज कर दिया। इसमें झुग्गी पुनर्वास प्रोजेक्ट के लिए संबंधित परिसर खाली करने का निर्देश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता लोग प्रोजेक्ट में देरी करने के लिए केवल टालमटोल की रणनीति अपना रहे हैं, क्योंकि वह अयोग्य झुग्गी-झोपड़ी के निवासी हैं।
एसआरए के मुताबिक, भारत नगर झुग्गी क्षेत्र में 2,965 झुग्गी बस्तियों का सर्वे किया गया। इनमें से 2,625 पुनर्वास के लिए पात्र पाई गईं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस केवी चंद्रन की बेंच ने 27 फरवरी को लोगों की अपील पर फैसला सुनाया। उन्होंने 4 जनवरी 2023 के बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। एसआरए ने पहली बार जनवरी 2019 में महाराष्ट्र स्लम एरिया एक्ट, 1971 के प्रावधानों के तहत एक नोटिस जारी किया। इसमें अपीलकर्ताओं को 15 दिनों के अंदर अपने परिसर खाली करने के लिए कहा गया क्योंकि वे रिडेवलेप किए जाने वाले स्लम एरिया में रह रहे थे।
पहले भी उठाया गया था मुद्दा
अपीलकर्ताओं ने स्लम एक्ट के तहत गठित एजीआरसी से संपर्क किया। इसने जून 2019 में इसे खारिज कर दिया। उन्होंने तर्क दिया कि यह भूखंड महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलेपमेंट अथॉरिटी के लेआउट के तहत था और इसे डीसीआर के तहत डेवलेप किया जाना चाहिए, न कि एसआर योजना के तहत।
एजीआरसी ने नोट किया था कि कुछ अपीलकर्ताओं ने 2010 में हाई कोर्ट में एक अन्य याचिका में भी इसी तरह की आपत्तियां उठाई थीं, जिसमें समान मुद्दे उठाए गए थे और उनकी याचिका जून 2011 में खारिज कर दी गई थी। हालांकि एजीआरसी ने एसआरए के नोटिस की पुष्टि की, लेकिन अपीलकर्ताओं ने पुनर्विकास के लिए अपने परिसर डेवलपर को नहीं सौंपे। इसलिए, दिसंबर 2022 में एसआरए ने एक और नोटिस जारी कर उन्हें 48 घंटे के अंदर अपने परिसर खाली करने के लिए कहा। इसको फिर हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।
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हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
2023 में हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने दावा किया कि वे MHADA के किराएदार हैं और अथॉरिटी को किराया दे रहे हैं। SC ने 2019 AGRC के आदेश का हवाला दिया, जिसमें अपीलकर्ताओं के दावे में कोई दम नहीं पाया गया क्योंकि MHADA ने लगातार कहा था कि न तो संबंधित प्लॉट उसका लेआउट था और न ही अपीलकर्ता उसके किराएदार थे। इसके बजाय वे ट्रांजिट कैप किराएदार के रूप में वहां रह रहे थे और उन्हें वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे (WEH) के चौड़ीकरण के दौरान आवास दिया गया था। वे केवल ट्रांजिट फीस और अन्य सर्विस शुल्क का भुगतान कर रहे थे और अयोग्य झुग्गी-झोपड़ी के लोग थे।
एसआरए ने हाई कोर्ट को बताया था कि भारत एकता कोऑपरेटिव सोसायटी 261 पात्र झुग्गीवासियों का प्रतिनिधित्व करती है। अपीलकर्ताओं के दावों के बिल्कुल उलट एक वास्तविक संस्था है। अथॉरिटी ने कहा था कि चल रही परियोजना एक अलग लेवल पर पहुंच गई है और अपीलकर्ताओं को इसे बाधित करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने खिंचाई की
सुप्रीम कोर्ट की बेंच के जस्टिस धूलिया ने कहा कि हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के रुख पर सही ढंग से अविश्वास किया और कहा कि 2019 एजीआरसी आदेश अंतिम हो गया है, क्योंकि 2019 से 2022 के बीच इसे चुनौती देने के बजाय अपीलकर्ता झुग्गीवासियों के समाज के खिलाफ शिकायतें दर्ज करने में व्यस्त थे और समाज की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने का असफल प्रयास किया। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सोसायटी के 70 फीसदी से ज्यादा पात्र झुग्गीवासियों ने पुनर्विकास का फैसला ले लिया है। यह डीसीआर के तहत अनिवार्य है।
कोर्ट ने अपीलकर्ताओं की टालमटोल की नीति के लिए भी खिंचाई की और कहा कि उनमें से कुछ जो पहले पात्र झुग्गी-झोपड़ी के लोग थे और बाद में वर्तमान एसआर योजना के तहत पात्र पाए गए थे। उन्होंने भी प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। बेंच ने कहा, ‘इसका कारण यह है कि यदि म्हाडा इसे विकसित करती है, तो अपीलकर्ताओं को बड़ा आवास मिलेगा, जो आमतौर पर पुनर्विकसित भवनों में झुग्गीवासियों के लिए उपलब्ध नहीं कराया जाता है।’ सुप्रीम कोर्ट का पूजा स्थलों पर दावों की सुनवाई पर रोक सामाजिक शांति के लिए महत्वपूर्ण कदम