सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ने निश्चित समय सीमा के भीतर मामलों के निस्तारण का अनुरोध करने वाली याचिका खारिज की। उच्चतम न्यायालय ने देश की सभी अदालतों में पेंडिंग मामलों का निस्तारण एक निश्चित समय सीमा के भीतर करने का निर्देश देने का अनुरोध करने वाली याचिका खारिज करते हुए शुक्रवार को कहा कि यह अमेरिका का सुप्रीम कोर्ट नहीं है।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि याचिका में सुप्रीम कोर्ट सहित सभी अदालतों में 12 से 36 महीने के बीच सभी मामलों का निस्तारण करने का अनुरोध किया गया है। अन्य देशों में मामलों के निस्तारण के लिए एक निश्चित समय-सीमा होने को याचिकाकर्ता द्वारा रेखांकित किये जाने के बाद पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘हम अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट नहीं हैं।’’

इसके साथ ही पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा, ‘‘आप चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में सभी मामलों की सुनवाई 12 महीने के भीतर पूरी कर दी जाए?’’ इसके बाद CJI ने टिप्पणी की, “हालांकि, यह बहुत वांछनीय है लेकिन यह असंभव है।” उन्होंने कहा कि इस तरह की कवायद के लिए कई चीजों की जरूरत है, जिसमें बुनियादी ढांचा बढ़ाना और न्यायाधीशों की संख्या में बढ़ोत्तरी करना शामिल है।

पश्चिमी देशों की कोर्ट से कहीं ज्यादा मामले हैं भारत के सुप्रीम कोर्ट में

पीठ ने याचिकाकर्ता से यह भी पूछा कि क्या उन्हें अमेरिका या कुछ अन्य देशों में एक साल में वहां के सुप्रीम कोर्ट द्वारा निस्तारण किये जाने वाले मामलों की संख्या के बारे में पता है। न्यायालय ने कहा कि (भारत की) शीर्ष अदालत में एक दिन में विभिन्न पीठों द्वारा निस्तारित किये जाने वाले मामलों की संख्या कई पश्चिमी देशों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक साल में निस्तारित किये जाने वाले मामलों से अधिक है।

Supreme Court: गृह मंत्रालय और UPSC के साथ 8 राज्यों को CJI चंद्रचूड़ की बेंच ने जारी किया अवमानना ​​नोटिस, अस्थायी डीजीपी नियुक्त करने का है मामला

बचपन में कराए गए विवाह अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता छीन लेते- SC

वहीं, दूसरी ओर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि किसी ‘पर्सनल लॉ’ के तहत परंपराएं बाल विवाह निषेध अधिनियम के क्रियान्वयन में बाधा नहीं बन सकतीं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बचपन में कराए गए विवाह अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता छीन लेते हैं। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने देश में बाल विवाह रोकथाम कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कई दिशानिर्देश भी जारी किए।

हालांकि, पीठ ने इस बात पर गौर किया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए) ‘पर्सनल लॉ’ पर प्रभावी होगा या नहीं, यह मुद्दा विचार के लिए संसद के पास लंबित है। केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से पीसीएमए को ‘पसर्नल लॉ’ पर प्रभावी बनाए रखने का आग्रह किया था।

(इनपुट- भाषा)