Bulldozer Action: अपराधियों और आरोपियों के घरों और प्रॉपर्टी पर सरकारों द्वारा चलाए गए बुलडोजर को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट और ज्यादा सख्त हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी इंसान के लिए सबसे सुरक्षित ठिकाना उसका घर होता है। घरों पर बुलडोजर चलाया जाना किसी भी कीमत पर सभ्य समाज की न्याय प्रणाली है।

देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने ये सारी टिप्पणियां उत्तर प्रदेश के महाराजगंज में बुलडोजर एक्शन से जुड़े एक केस में की हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इस केस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि अधिकारी इस तरह के बुलडोजर एक्शन का भी गलत तरीके से फायदा उठा सकते हैं और अपने निजी प्रतिशोध के लिए भी इशका इस्तेमाल कर सकते हैं।

जनसत्ता

‘नागरिकों की प्रॉपर्टी ही कर दी जाएगी ध्वस्त

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा गया कि बुलडोजर के जरिए न्याय किसी भी सभ्य न्याय व्यवस्था के लिए नहीं है। इस बात का गंभीर खतरा भी है कि अगर राज्य के किसी भी अधिकारी द्वारा मनमानी और गैरकानूनी व्यवहार की अनुमति दी जाती है, तो नागरिकों की संपत्तियों को बाहरी कारणों से चुनिंदा प्रतिशोध के रूप में ध्वस्त कर दिया जाएगा।

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नहीं दबाई जा सकती नागरिकों की आवाज- सुप्रीम कोर्ट

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी भी राज्य के नागरिकों की आवाज को उनकी संपत्तियों और घरों को नष्ट करने की धमकी देकर नहीं दबाया जा सकता है। एक इंसान के पास जो अंतिम सुरक्षा होती है, वह उसका घर है। कानून निस्संदेह सार्वजनिक संपत्ति पर अवैध कब्जे और अतिक्रमण को उचित नहीं ठहराता।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि बुलडोजर जस्टिस कानून के शासन के तहत बिल्कुल अस्वीकार्य है। अगर इसकी अनुमति दी जाती है तो अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता एक डेड लैटर बन जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया था 25 लाख का मुआवजा देने का फैसला

बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट महाराजगंज में बुलडोजर एक्शन से जुड़ एक मामले में यूपी सरकार को फटकार लगाई है और यह भी कहा कि बिना किसी तय प्रक्रिया के तहत हाईवे के मकानों पर बुलडोजर चलाया गया। कोर्ट ने आदेश दिया है कि राज्य सरकार द्वारा इस कार्रवाई के चलते पीड़ितों को हुई परेशानी के लिए 25 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।