बिलकिस बानो केस,Supreme Court Verdict: गुजरात दंगों की पीड़िता बिलकिस बानो के साथ 11 लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था। गुजरात सरकार ने इन आरोपियों को माफी दे थी। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए इन आरोपियों की रिहाई को रद्द कर दिया है। अब इन आरोपियों को दो हफ्ते में सरेंडर करना होगा।

जस्टिस बीवी नागरत्ना (BV Nagarathna) और उज्जल भुइयां (Ujjal Bhuyan) की पीठ ने यह फैसला सुनाया है। इस मामले में बिलकिस बानो ने खुद ही दोषियों को मिली सजा में छूट को चुनौती देते हुए याचिका दायर थी। उनकी याचिका के अलावा गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली कई जनहित याचिकाएं भी दर्ज की गई थीं।

महिला सम्मान जरूरी

सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि पीड़ित के अधिकार महत्वपूर्ण हैं और महिला सम्मान की पात्र है। क्या महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों में छूट दी जा सकती है?

कोर्ट ने कहा “गुजरात वह राज्य नहीं है जहां अपराध हुआ है या अपराधियों को कैद किया गया है, इसलिए यह सजा छूट देने के लिए उपयुक्त सरकार नहीं है बल्कि छूट वो सरकार दे सकती जिसने मामला दर्ज किया है और सजा सुनाई है।”

दोषियों को 2008 में मुंबई (महाराष्ट्र) की एक ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। पीठ ने सभी 11 दोषियों को जेल लौटने और महाराष्ट्र सरकार से नई सजा माफी की मांग करने का निर्देश दिया है। 2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा था। मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की गई थी और मुकदमा गुजरात से महाराष्ट्र ट्रांसफर कर दिया गया था।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने मामले में 11 दिनों तक सुनवाई करने के बाद पिछले साल 12 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सजा में छूट को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गईं थी। जिनमें खुद बिलकिस बानो की याचिका भी शामिल थी। इस मामले में कई याचिकाकर्ताओं में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता महुआ मोइत्रा, सीपीआई (एम) की सुभाषिनी अली भी शामिल हैं।