सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की जिस बेंच ने राजस्थान के राजनीतिक संकट पर मतभेद की आवाजों को लोकतंत्र के लिए अहम बताया था, उसी बेंच ने बुधवार को वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ किए गए ट्वीट्स के लिए अवमानना की कार्यवाही भी शुरु करवाई। गौरतलब है कि जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी ने राजस्थान के बागी विधायकों को मिले स्पीकर के नोटिस के मामले पर कहा था कि लोकतंत्र में मतभेद की आवाजों को दबाया नहीं जा सकता। इस मामले में कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी से विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिए शुरू की गई कार्यवाही की वजह भी पूछी थी।
तब सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच ने सीपी जोशी की तरफ से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल को उस टिप्पणी पर घेरा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि विधायकों ने पार्टी की मीटिंग में हिस्सा नहीं लिया और अपनी ही सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली इस बेंच ने कहा था कि इस तरह के मामले आसान नहीं होते और जिनकी सदस्यता रद्द करने की कार्यवाही की जा रही है, वे चुने हुए विधायक हैं।
हालांकि, इसी बेंच ने सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण को उनके कोर्ट के खिलाफ किए गए दो ट्वीट्स के लिए घेर लिया था। बेंच ने इसे अदालत की अवमानना मानते हुए खुद मामले का संज्ञान लिया था और भूषण के साथ ट्विटर को भी नोटिस जारी किया था। इसके अलावा अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को भी सलाह के लिए नोटिस दिया गया था।
क्या कहा था प्रशांत भूषण ने?
प्रशांत भूषण पर 29 जून के एक ट्वीट के लिए शिकायत दर्ज हुई थी। दरअसल, प्रशांत ने चीफ जस्टिस एसए बोबडे को हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल पर बैठते दिखाती हुई इस फोटो पर तंज कसा था। इसके अलावा बेंच ने 27 जून के एक ट्वीट का भी संज्ञान लिया था। कोर्ट का कहना था कि इस ट्वीट में प्रशांत भूषण ने न्यायालय पर तंज कसा।