Electoral Bonds Scheme Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलेक्शन बॉन्ड स्कीम पर अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने इसे अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन और असंवैधानिक माना है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द करना होगा। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि एसबीआई राजनीतिक पार्टियों द्वारा भुनाए गए चुनावी बॉन्ड का ब्योरा पेश करेगा। बेंच ने आगे कहा कि एसबीआई भारतीय चुनाव आयोग को 2019 से लेकर अब तक जारी किए गए बॉन्ड की जानकारी देगा और इलेक्शन कमीशन पूरी जानकारी को वेबसाइट पर उपलब्ध कराएगा।
सुप्रीम कोर्ट में कुल चार याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने चुनावी बांड की वैधता पर सवाल खड़े किए। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि चुनावी बॉन्ड ने राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग को काफी प्रभावित किया है। साथ ही लोगो के सूचना के अधिकार का उल्लघंन किया गया है। कोर्ट ने पिछले साल 31 अक्टूबर को मामले पर सुनवाई शुरू की थी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा शामिल हैं।
क्या हैं चुनावी बॉन्ड
सीजेआई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने पिछले साल 2 नवंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र की नरेद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 2017 में ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को फाइनेंस बिल के जरिए संसद में पेश किया था। संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड योजना का नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया। इस बॉन्ड के जरिये राजनीतिक पार्टियों को चंदा मिलता है। देश का कोई भी नागरिक, कंपनी या संगठन बॉन्ड खरीद सकता है और किसी भी दल को दे सकता है।
चुनावी बांड की मुख्य विशेषता यह है कि दानकर्ता की पहचान गुप्त रखी जाती है। जब कोई व्यक्ति या संगठन इन बांडों को खरीदता है, तो उनकी पहचान जनता या धन प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल के सामने प्रकट नहीं की जाती है। हालाँकि, सरकार और बैंक ऑडिटिंग उद्देश्यों के लिए खरीदार के विवरण का रिकॉर्ड रखते हैं।