केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की बेल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार के वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि आप हाईकोर्ट क्यों नहीं जा सकते? Kerala Union of Working Journalists ने पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की गिरफ्तारी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच कर रही थी। मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले में केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब भी मांगा है।
आपको बता दें कि 41 साल के कप्पन समेत 3 लोगों को उस वक्त गिरफ्तार किया गया था जब वो उत्तर प्रदेश के चर्चित हाथरस गैंगरेप और हत्या की घटना की रिपोर्टिंग करने जा रहे थे। कपिल सिब्बल ने पत्रकार को जमानत देने का अनुरोध किया और कहा कि उसके खिलाफ कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘प्राथमिकी में उसका नाम नहीं है। किसी तरह के अपराध का आरोप नहीं है। वह पांच अक्टूबर से जेल में है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘हम नोटिस जारी करेंगे। इस मामले को शुक्रवार के लिये सूचीबद्ध कर रहे हैं।’’ इस मामले में उच्च न्यायालय नहीं जाने के बारे में सवाल करते हुये पीठ ने कहा कि ‘हम इस मामले के मेरिट पर नहीं है। आप उच्च न्यायालय क्यों नहीं गये।?’
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश पुलिस का आरोप है कि कप्पन और उनके साथ धरे गए 2 अन्य लोग Campus Front of India (CFI) के सदस्य हैं। पुलिस के मुताबिक सीएफआई, हाथरस घटना के दौरान धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने में शामिल था। इस मामले में पुलिस ने इन सभी UAPA एक्ट के तहत भी केस दर्ज किया था।
सु्प्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील पत्रकार संघ की तरफ से मौजूद थे। कपिल सिब्बल ने कहा कि इस तरह के मामले में अदालत ने पहले भी हस्तक्षेप कर अहम फैसले दिये हैं। उन्होंने कहा कि यह पत्रकार का मामला है, नहीं तो वो आर्टिकल 32 के तहत राहत मांगने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पास नहीं जाते। इसपर अदालत ने कहा कि ‘आर्टिकल 32 के तहत हमें मिली ताकत की हमें जानकारी है।’ इस मामले में अदालत ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि मामले की अगली सुनवाई 20 नवंबर को की जाएगी।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की इसी बेंच ने आर्टिकल 32 को लेकर आए एक दूसरे मामले को भी उच्च न्यायालय में रेफर किया था। यह मामला समित ठक्कर से जुड़ा हुआ था। नागपुर के रहने वाले समित ठक्कर पर आरोप था कि उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके मंत्रियों के खिलाफ कई विवादित ट्वीट किये थे और उनपर कई एफआईआर दर्ज किये गये थे।
11 नवंबर को रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी को बेल देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट से कहा था कि ‘स्वतंत्रता की रक्षा जरुरी है और ऐसे मामले में फैसलों पर गंभीरता से सोचना जरुरी है।’ इस मामले में बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अर्णब गोस्वामी और दो अन्य लोगों को जमानत दिया था।
इन तीनों को आत्हमत्या के लिए उकसाने के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इससे पहले अर्णब गोस्वामी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था औऱ सुप्रीम कोर्ट में भी महाराष्ट्र सरकार ने अर्णब की याचिका का विरोध किया था।
बता दें कि संविधान में आर्टिकल 32 का उल्लेख किया गया है। यह मौलिक अधिकार से संबंधित है। इसमें इस बात का जिक्र है कि कोई भी शख्स अपने मूल अधिकार का उल्लंघन होने पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है।