सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने एक अहम फैसले में गोरक्षा के नाम पर होने वाली भीड़ की हिंसा को गलत ठहराया है। कोर्ट ने मॉब लिंचिंग (भीड़ की हिंसा) की घटनाओं की निंदा की और संसद को मॉब लिंचिंग के मामले में अलग कानून बनाने की सलाह दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भीड़ की हिंसा को किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। कोई भी नागरिक कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता। कहा है। बता दें कि गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस संबंध में दिशा निर्देश जारी करने की मांग की गई थी। याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भीड़ की हिंसा रोकने का दायित्व राज्य सरकारों का है, ये सिर्फ कानून व्यवस्था का सवाल नहीं है बल्कि गोरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा अपराध है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की सदस्यता वाली बेंच ने अपने फैसले में कहा कि राज्य और केन्द्र सरकार भविष्य में मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएं। कोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकारों को मॉब लिंचिंग रोकने के लिए कोर्ट के दिशा-निर्देशों की अनुपालन रिपोर्ट फाइल करने का भी आदेश दिया है। कोर्ट ने भीड़ की हिंसा रोकने में असफल रहने पर सरकारों की आलोचना करते हुए कहा कि इन्हें रोकने की जिम्मेदारी राज्य और केन्द्र दोनों सरकारों की है। कोई भी नागरिक कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता है। डर और अराजकता के माहौल में राज्य सरकारों को परिस्थितियों के हिसाब से सकारात्मक तरीके से कारवाई करनी चाहिए, लेकिन किसी भी रुप में हिंसा की इजाजत नहीं दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट अब आगामी 28 अगस्त को इस मामले आगे सुनवाई करेगा। बीते साल 6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को गोरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने का निर्देश दिया था। साथ ही कोर्ट ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को नोडल अफसर के तौर पर हर जिले में तैनात करने का निर्देश भी दिया था। आज सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकारों से अभी तक कोई कारवाई नहीं करने पर जवाब मांगा है।