दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने अपने नए मुख्यमंत्री का ऐलान कर दिया। कालकाजी सीट से विधायक आतिशी विधानसभा चुनाव तक मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभालेंगी। पार्टी की ओर से आतिशी के नाम का ऐलान किए जाने के बाद राजनीतिक हलकों और मीडिया गलियारों में पहला सवाल यही उठा कि आखिर आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अपनी पत्नी सुनीता केजरीवाल को दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी क्यों नहीं सौंपी?

केजरीवाल की ओर से यह ऐलान किए जाने के बाद कि अब वह दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं रहेंगे, उनके उत्तराधिकारी के रूप में जो नाम सामने आए थे उनमें आतिशी के साथ ही एक बड़ा नाम सुनीता केजरीवाल का भी था। इसके अलावा आम आदमी पार्टी की दिल्ली इकाई के संयोजक और मंत्री गोपाल राय का नाम भी इस पद के दावेदारों में प्रमुखता से लिया जा रहा था।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर अरविंद केजरीवाल सुनीता केजरीवाल के नाम पर तैयार क्यों नहीं हुए? दिल्ली के राजनीतिक हालात पर गौर करने के बाद इसकी कुछ प्रमुख वजह सामने आती हैं।

सुनीता केजरीवाल के नाम की चर्चा इसलिए भी जोर-शोर से उठी थी क्योंकि अरविंद केजरीवाल की गैर हाजिरी में सुनीता केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान दिल्ली में और उसके बाद हरियाणा में भी आम आदमी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार किया। यह कहा जा रहा था कि आम आदमी पार्टी में अब सभी सीनियर नेता पार्टी और सरकार के मामलों में सुनीता केजरीवाल से राय मशविरा करते हैं। इस वजह से दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के लिए उनका दावा मजबूत माना जा रहा था।

प्रशासनिक अनुभव ना होना

अगर अरविंद केजरीवाल सुनीता केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान करते तो उसमें सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि सुनीता केजरीवाल के पास किसी तरह का प्रशासनिक अनुभव नहीं है। राष्ट्रीय राजधानी में सरकार चलाना और वह भी ऐसे वक्त में बेहद मुश्किल काम है, जब पार्टी के बड़े नेता जांच एजेंसियों के रडार पर हैं और केंद्र सरकार में बैठी बीजेपी से उसकी सियासी अदावत चल रही है। ऐसे में सुनीता केजरीवाल के पास प्रशासनिक अनुभव की कमी होने का मामला एक बड़ी वजह है।

परिवारवाद को लेकर झेलने पड़ते हमले

अरविंद केजरीवाल ने जब 2012 में आम आदमी पार्टी बनाई थी तो उन्होंने राजनीति में भ्रष्टाचार और अन्य बुराइयों को खत्म करने के साथ ही परिवारवाद की भी आलोचना की थी। अगर वह सुनीता केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाते तो विपक्षी दल यह कहकर हमला बोलते कि अरविंद केजरीवाल सबसे बड़े परिवारवादी हैं। इसलिए केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी पत्नी सुनीता का नाम आगे नहीं किया।

विरोध होने का डर

अगर सुनीता केजरीवाल दिल्ली की मुख्यमंत्री बनतीं तो पार्टी के अंदर सभी नेता उन्हें किस हद तक स्वीकार कर पाते, यह एक बड़ा सवाल है क्योंकि पिछले कई ऐसे नेता हैं जो दिल्ली सरकार और संगठन में लंबे वक्त से काम कर रहे हैं, क्या वे सुनीता केजरीवाल का नेतृत्व मानने के लिए तैयार होते? ऐसे में क्या पार्टी में सुनीता केजरीवाल के नाम का विरोध हो सकता था?

सुनीता केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने में एक परेशानी यह भी थी कि सुनीता केजरीवाल विधायक नहीं हैं। हालांकि सीएम पद की शपथ लेने के 6 महीने के अंदर सदन की सदस्यता लेनी जरूरी है और उससे पहले ही दिल्ली में चुनाव का ऐलान हो जाता। लेकिन बिना विधायक बने किसी नेता को इतनी बड़ी कुर्सी सौंपने से केजरीवाल के खिलाफ गलत संदेश जा सकता था।

कार्यकर्ताओं को दिया संदेश

सुनीता केजरीवाल का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आगे न करके अरविंद केजरीवाल ने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह भी संदेश दिया है कि आम आदमी पार्टी के मुश्किल वक्त में पार्टी के साथ खड़े होने वाला कोई भी नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच सकता है।

दिल्ली में विधानसभा चुनाव अगले साल जनवरी या फरवरी महीने में होने हैं।