हरियाणा चुनाव में बीजेपी की तरफ से उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की जा चुकी है, उस एक सूची के बाद से ही पार्टी के अंदर बगावत के सुर तेज दिखाई दे रहे हैं, कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं, कई छोड़ने की बात कर रहे हैं तो कई पार्टी को अल्टीमेटम देने का काम लगातार कर रहे हैं। लेकिन कुछ ऐसे उम्मीदवार भी सामने आए हैं जिनके नाम पर दूसरे कारणों की वजह से विवाद चल रहा है।

हरियाणा चुनाव: सुनील सांगवन की इतनी चर्चा क्यों?

ऐसा ही एक नाम है सुनील सागवान जिन्हें भाजपा ने इस बार चरखी दादरी से अपना उम्मीदवार बनाया है। बड़ी बात यह है कि सुनील सांगवान कोई नेता नहीं हैं बल्कि वे तो एक पूर्व जेलर हैं जिन्होंने कई सालों तक एक पुलिस अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं। लेकिन राजनीति में आने के लिए उन्होंने समय से पहले रिटायरमेंट लेने का फैसला किया और अब बीजेपी ने उन्हें इनाम देते हुए चरखी दादरी से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया।

सांगवान जेलर, कब-कब बाहर आया राम रहीम?

सुनील सांगवान को लेकर सबसे चर्चित बात यह चलती है कि जिस समय वे जेलर थे, उनके रहते हुए गुरमीत राम रहीम को 6 बार पैरोल या फरलो मिली थी। बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि सबसे पहले 24 अक्टूबर 2020 को एक दिन की आपातकालीन पैरोल गुरमीत राम रहीम को दी गई थी। फिर 21 मई 2021 को भी एक दिन की आपातकालीन पैरोल उसे मिली। फिर 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले 7 से 28 फरवरी तक के लिए भी उसे जेल से बाहर आने की अनुमति दी गई। इसी तरह हरियाणा नगर निगम चुनाव से पहले 17 जून से 16 जुलाई तक 30 दिनों की लंबी पैरोल भी उसे दी गई।

हरियाणा चुनाव की हर डिटेल

इसके अलावा आदमपुर विधानसभा उपचुनाव 2022 से पहले भी 15 अक्टूबर से 25 नवंबर तक यानी की 40 दिनों की पैरोल पर वो बाहर निकला था। बताया तो यह भी गया है कि इस साल अयोध्या राम मंदिर उद्घाटन समारोह से पहले 21 जनवरी से 3 मार्च तक के लिए उसे फिर पैरोल की अनुमति मिली थी। अब इन 6 मामलों में कॉमन बात यह है उस समय सुनील सांगवान जेलर थे।

क्या राम रहीम पर मेहरबान थे सुनील सांगवान?

लेकिन बीबीसी से बात करते वक्त सुनील सांगवान ने उन सभी आरोपी को सिरे से खारिज कर दिया है जहां पर दावा किया गया कि वे जेलर रहते वक्त राम रहीम पर जरूर से ज्यादा मेहरबान थे। इस बारे में सुनील सांगवान का कहना है कि मुझे जो ट्रोल किया जा रहा है, वो पूरी तरह गलत है। समझने वाली बात यह है कि पैरोल जेल अधीक्षक के हस्ताक्षर से नहीं मिलती है बल्कि इसकी अनुमति तो डिविजनल कमिश्नर के हस्ताक्षर के बाद ही दी जा सकती है। सुनील सांगवान ने बीबीसी से बातचीत के दौरान यह दावा भी कर दिया कि उनके कार्यकाल के दौरान तो उल्टा तीन ऐसे मौके आए थे जब उन्होंने राम रहीम की पैरोल को खारिज कर दिया था।

राम रहीम को जेल, सुनील सांगवान कहां थे?

अब जानकारी के लिए बता दे वीआरएस लेने से पहले सुनील सांगवान गुरुग्राम की भोंडसी जेल में जेलर के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे। उससे पहले 5 साल तक रोहतक जेल में भी अधीक्षक की भूमिका में वे रह चुके थे। बड़ी बात यह है 2017 में जब राम रहीम पर आरोप तय किए गए थे, तब उसे रोहतक के सुनारिया जेल में रखा गया था, उस समय संगवान ही रोहतक जेल के जेलर भी थे। इसी वजह से कई बार ऐसे सवाल उठे कि उनके राम रहीम के साथ कैसे रिश्ते हैं, इसके ऊपर जब लगातार राम रहीम को पैरोल या परलो मिलती रही, विपक्ष द्वारा यह सवाल और ज्यादा उठता रहा।

बीजेपी ने सुनील को क्यों बनाया उम्मीदवार?

अब खबर यह है कि इस बार के आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को चरखी दादरी में एक युवा चेहरा चाहिए था जो अपने दम पर जाट वोटों को एकत्रित कर सके। बीजेपी की यह खोज सुनील सांगवान पर आकर खत्म हुई और क्योंकि उन्होंने भी राजनीति में आने की दिलचस्पी दिखा दी, ऐसे में उनका टिकट ही चरखी दादरी से फाइनल कर दिया गया। समझने वाली बात यह है कि सुनील सांगवान के पिता भी राजनीति में एक लंबी पारी खेल चुके हैं।