रोहित कुमार
आज हम सभ्यता और आधुनिकता के उत्तर चरण में हैं। यह देखना खासा दिलचस्प है कि बुद्धि और विकास के इस मुकाम तक पहुंचने के सफर में अध्यात्म और प्रेरणा की नई दुनिया कैसे आबाद हो रही थी। इस लिहाज से एक अहम नाम है- आरिसन स्वेट मार्डेन। मार्डेन की पहचान एक बड़े अमेरिकी लेखक से ज्यादा एक ऐसे लेखक के तौर पर है, जिसने आधुनिक जीवन में सफलता के मायने खोजे और बताए। 11 जून, 1848 को उनका जन्म हुआ था। उन्होंने वैसे तो कई विषयों पर लिखा पर सफलता को लेकर सूत्र रूप में उन्होंने जो विचार दिए, उसे विचार के क्षेत्र में एक नए रचनात्मक प्रयोग के तौर पर देखा गया। गौरतलब है कि यह वही दौर है जब ‘आधुनिक आध्यात्मकिता’ की बातें की जा रही थीं।
स्वेट मार्डेन ने 1897 में ‘सक्सेस मैग्जीन’ की स्थापना की। इसमें तब नेपोलियन हिल सरीखे चिंतक और लेखक के लेख छपे थे। ‘थिंक एंड ग्रो रिच’ के लेखक हिल ही दरअसल वो लेखक हैं जिन्होंने आधुनिक विश्व जगत को यह सुझाया कि पूंजीवाद के खिलाफ विराग गैरजरूरी है। उन्होंने भौतिकवादी मूल्यों से बगैर मुठभेड़ किए लोगों को यह बताया कि यह एक अवसर है और इसे बड़ी सफलता तक पहुंचने की सीढ़ी के तौर पर देखना चाहिए।
हिल यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने सफलता और धनाढ्यता को एक साथ देखा और इस साझे आकर्षण को विचार सूत्र के तौर पर परोस कर बड़ी ख्याति अर्जित की। जो बात यहां देखने-समझने की है, वह यह कि भौतिकता के साथ दुनिया में नए ख्वाब और कुबेरी कामयाबी के लिए होड़ ही नहीं मची बल्कि इसके साथ-साथ विचार और आदर्श का एक पूंजीवादी सांचा भी तैयार होने लगा।
बात करें स्वेट मार्डेन की तो उन्हें आज भी चाव से पढ़ा जाता है बल्कि प्रबंधन और नई तकनीक के क्षेत्र में उतरे युवाओं के तो वे आदर्श लेखक हैं। हिल की तरह मार्डेन सफलता या अवसर के तौर पर भौतिकवादी लिप्साओं की बात सीधे तो नहीं करते हैं, पर इस विचार गोत्र से वे बहुत दूर भी नहीं खड़े हैं। उनकी कही कुछ प्रसिद्ध उक्तियों को सामने रखते हुए यह बात ज्यादा अच्छे तरीके से समझी जा सकती है।
मसलन, मार्डेन कहते हैं, ‘चिंता ने आज तक कभी किसी काम को पूरा नहीं किया।’ यह एक ऐसा विचार है जिससे असहमति मुश्किल है। पर अगर पलट कर सवाल पूछा जाए कि चिंता रोजमर्रा के जीवन से होने वाली परेशानियों को लेकर या जीवन की सार्थकता को लेकर। यहां मार्डेन या तो मौन हैं या उनके लिए यह प्रश्न गैरजरूरी है। जबकि अध्यात्म जगत की मौलिक शिक्षा है सांसारिक चिंता से मुक्त होकर शांति की कामना। इस शिक्षा में सफलता से ज्यादा अहम है जीवन की सार्थकता।
मार्डेन इसी तरह कहते हैं कि हमें क्षमा, सहायता व सहयोग करने की आदत बना लेनी चाहिए। गुण कभी व्यर्थ नहीं जाते और आड़े वक्त पर काम आते हैं। उनकी एक प्रसिद्ध उक्ति यह भी है, ‘उठो, अपने जीवन की योजना बनाओ ताकि तुम्हारी सोई हुई महान प्रतिभा और शक्ति जो अब तक व्यर्थ पड़ी हुई है, जाग उठे।’ इस सीख का आवरण तो प्रेरक और आकर्षक है, पर इस तरह के विचार कहीं से भी शांति या मोक्ष या जीवन सार्थकता जैसे बड़े प्रश्नों को हल करने में मददगार नहीं हैं।
बहरहाल, अगर आध्यात्मकिता के बड़े तकाजों से परे हटकर बात करें तो विकास और आधुनिकता ने जीवन और समाज की जिस तरह की रचना की है, उसमें उत्साह और विवेक के साथ जीने का साहस और आगे बढ़ने की प्रेरणा तो मार्डेन देते ही हैं। बड़ी बात यह भी कि उनकी इन बातों को न सिर्फ लोगों ने पुस्तकों में पढ़ा बल्कि जीवन में बरता भी।
उनकी ऐसी ही एक सीख उन लोगों के लिए है जो जीवन में हर बात को भाग्य से जोड़ कर देखते हैं। ऐसे लोग अपनी अकर्मण्यता का ठीकरा किस्मत के सिर फोड़ते हैं। मार्डेन कहते हैं, ‘जो भाग्य के सहारे बैठ जाते हैं, उनका भाग्य भी उन्हीं के पास बैठ जाता है।’ साफ है कि पुरुषार्थहीन लोगों के लिए जीवन में न कोई अवसर है और न रास्ता। व्यक्ति के लिए जीने का अर्थ खुद को साबित करना है और जो लोग ऐसा करने का साहस नहीं दिखा पाते हैं, वहीं भाग्य या परिस्थितियों का हवाला देते हैं।
अपनी इस बात को और साफ करते हुए मार्डेन कहते हैं कि जीवन में कोई भी काम शून्य से शुरू करना उत्साहहीनता का कारण नहीं बनना चाहिए। बल्कि इसे वे अच्छा मानते हैं और बड़ी कामयाबी के लिए जरूरी मानते हैं। उनके शब्द हैं, ‘ऊंची से ऊंची चोटी पर पहुंचना मकसद हो तो अपना काम निचली सतह से शुरू करना चाहिए।’ मार्डेन इस बात को कई तरीके से समझाते हैं।
मसलन, सफलता सबसे पहले आपके मन में आती है, उसके बाद ही वह जीवन में उतरती है या कोई भी अवसर छोटा या बड़ा नहीं होता, छोटे से छोटे अवसर का उपयोग करने से वही छोटा अवसर बड़ा हो जाता है। आज मार्डेन की तरह कई लेखक सफलता के सपने बेच रहे हैं। इनमें से कई की तो बड़ी ख्याति है। पर इनकी किताबें तभी तक उपयोगी हैं जब तक हम इन्हें महज अपने सामान्य जीवन में अनुशासन या प्रबंधन के सबक के तौर पर पढ़ते हैं। जीवन और अध्यात्म का संबंध गहरा और सूक्ष्म है। ऐसे विचारकों के पास अपनी बात रखने के लिए न तो कोई आध्यात्मिक तकाजा है और न ही यह उनकी चिंता का विषय ही है।