लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार उनमें से कई जल्द ही खुद को व्यस्त दिनचर्या, साथियों के दबाव और उम्मीदों के बोझ से दबा पाते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह परीक्षा में विफल होने का डर नहीं है, बल्कि इसके बाद का अपमान और तिरस्कार है जो उन्हें (छात्रों को) अपने जीवन को समाप्त करने की दिशा में ले जाता है।

यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे तीन छात्रों द्वारा हाल में की गई खुदकुशी ने इस बात को लेकर नए सिरे से बहस छेड़ दी है कि आखिर किस वजह से छात्र इस दिशा में बढ़ जाते हैं। एलेन करिअर इंस्टीट्यूट के प्रमुख मनोवैज्ञानिक डा हरीश शर्मा ने यहां कहा कि छात्रों को अक्सर पढ़ाई के बजाय भावनात्मक तनाव से जूझना मुश्किल लगता है। उन्होंने कहा, छात्रों के बीच शिक्षा संबंधी तनाव, भावनात्मक तनाव जितना अधिक नहीं है।

छात्र वास्तव में एक परीक्षा में विफल होने से नहीं डरते हैं, बल्कि इसके बाद के अपमान और तिरस्कार से डरते हैं। इसलिए वे पलायनवादी रुख अपनाना पसंद करते हैं। शर्मा ने कहा कि दूसरों की उम्मीदों का बोझ उनकी खुद की उम्मीदों के साथ जुड़ जाता है, जो अक्सर छात्रों को हतोत्साहित करता है।

उन्होंने कहा, ‘‘पालन-पोषण की शैली वैसी ही है, जैसी 1970 के दशक में थी, जबकि बच्चे के पास 2022 का आधुनिक मस्तिष्क है और उसे जो कुछ भी करने के लिए कहा जाता है, वह उसके लिए वैज्ञानिक स्पष्टीकरण की मांग करता है। कई बार, माता-पिता अपने बच्चे से कुछ ऐसा करवाते हैं, जो वे नहीं करना चाहते। दूसरों के साथ खुद की अपेक्षाओं का बोझ बच्चों को हतोत्साहित करता है।’’ एक के बाद एक व्याख्यान, परीक्षा श्रृंखला, अपने साथियों से आगे निकलने की निरंतर दौड़ और पाठ्यक्रम के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश – कोटा में कोचिंग सेंटर में पढ़ने वाले छात्र का औसत दिन लगभग ऐसा ही दिखता है।

शर्मा ने कहा कि इस व्यस्त कार्यक्रम के बीच, कई छात्र खुद को थोड़ी राहत देने के लिए वेब सीरीज देखते हैं, लेकिन अक्सर यह नहीं जानते कि कब रुकना है, जिससे वे अपनी पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘वेब सीरीज की लत गंभीर है। उनका प्रभाव डोपामाइन (फील-गुड हार्मोन) के एक शाट से 4,000 गुना अधिक है। छात्र तब तक वेब सीरीज देखना बंद नहीं करते, जब तक कि वे इसे पूरा नहीं कर लेते।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम अक्सर छात्रों को सूजन और लाल आंखों के साथ इलेक्ट्रानिक स्क्रीन सिंड्रोम से पीड़ित पाते हैं।’’

यहां न्यू मेडिकल कालेज अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख डा चंद्रशेखर सुशील ने कहा कि माता-पिता को अपने बच्चों को डाक्टर और इंजीनियर बनाने के लिए दबाव बनाने के बजाय अपने बच्चों का अभिवृत्ति (एप्टीट्यूड) टेस्ट कराना चाहिए और फिर तय करना चाहिए कि उनके लिए सबसे अच्छा क्या है।जिला प्रशासन ने अब कोचिंग संस्थानों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि वे एक मनोवैज्ञानिक को नियुक्त करें और जेईई और एनईईटी (मेडिकल) के अलावा अन्य करिअर विकल्पों पर भी छात्रों का मार्गदर्शन करें।

इस साल यहां कोचिंग सेंटरों में पढ़ने वाले 14 छात्रों ने आत्महत्या की है। पुलिस के मुताबिक, पिछले सप्ताह आत्महत्या करने वाले तीन छात्रों में से बिहार के नीट परीक्षार्थी अंकुश आनंद (18) और बिहार के गया जिले के जेईई की तैयारी कर रहे उज्ज्वल कुमार (17) अपने पेइंग गेस्ट (पीजी) आवास में अपने-अपने कमरे में 12 दिसंबर को फंदे से लटकते पाए गए। तीसरे छात्र मध्य प्रदेश से आए नीट की तैयारी कर रहे प्रणव वर्मा (17) ने 11 दिसंबर को अपने छात्रावास में कथित तौर पर जहरीले पदार्थ का सेवन किया था।

हालांकि, 2021 में किसी भी छात्र की आत्महत्या की सूचना नहीं मिली, जब यहां के कोचिंग सेंटर कोविड-19 महामारी के कारण बंद थे और छात्रों ने अपने घरों से आनलाइन कक्षाओं में भाग लिया। कोचिंग सेंटर के छात्रों द्वारा आत्महत्या की संख्या 2019 में 18 और 2020 में 20 थी। इस साल कोटा के विभिन्न कोचिंग संस्थानों में सर्वाधिक दो लाख छात्र पढ़ रहे हैं।