दरअसल, आधुनिक म्यांमा की कहानी सू की के परिवार से शुरू होती है। वो म्यांमा की आजादी के नायक रहे जनरल आंग सान की बेटी हैं। 1948 में ब्रितानी हुकूमत से आजादी से पहले ही जनरल आंग सान की हत्या कर दी गई थी। सू की तब महज दो साल की थीं।
1990 के दशक में सू की को दुनियाभर में मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली ऐसी महिला के तौर पर देखा गया, जिसने म्यांमा के सैन्य शासकों को चुनौती देने के लिए अपनी आजादी त्याग दी। उन्हें लंबे समय तक नजरबंद रखा गया।

1991 में नजरबंदी के दौरान ही सू की को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। 2015 के नवंबर महीने में उनके नेतृत्व में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने एकतरफा चुनावी जीत हासिल की। म्यांमा के इतिहास में 25 सालों में हुआ यह पहला चुनाव था जिसमें लोगों ने खुलकर हिस्सा लिया।

अलबत्ता म्यांमार की सत्ता संभालने के बाद से उन्होंने वहां के अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में जो रवैया अपनाया उसकी चौतरफा आलोचना हुई। लाखों रोहिंग्याओं का म्यांमा से पलायन न रोक पाना सू की की लोकप्रियता पर ग्रहण लगाता चला गया।