भारतीय ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मांड में विराजमान तारामंडल के चित्रों का वर्णन भी किया है। निशा के व्योम में यहां-वहां छितराए से दृष्टिगोचर होने वाले तारों में से हमारे पूर्वजों ने कुछ को पहचान लिया था। इन तारों के आकार के अनुरूप चित्रों सहित शास्त्रों में उल्लेख भी किया है। इनमें से ज्यादातर राशिचक्र से जुड़े तारे हैं। शीत ऋतु के आकाश में तारामंडल में स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाला तारा, मृग या मकर है। इसके पेट में तीर चुभा हुआ है। इसी के थोड़े पश्चिम में बैल यानी वृषभ है। तारामंडल में यह लाल रंग का तारा है। इसी वृषभ की आंख में रोहिणी नक्षत्र की कल्पना की गई है।
मृग के उस पार दिखाई देता है, महाश्वान तारामंडल। इसमें लुब्धक तारा प्रतिष्ठित है। इसे आकाशीय पिंड का सबसे चमकीला तारा माना जाता है। इसी से संलग्न लघुश्वान तारामंडल है, अपने तारे प्रश्व के साथ। श्वान तारामंडल से थोड़ा आगे बढ़ेंगे तो सप्तर्षि तारामंडल है। इसी के पीछे लघु सप्तर्षि तारा भी है। ये दो तारे जो सप्तर्षियों का शरीर बनाते हैं, लघु सप्तर्षि की पूंछ वाले तारे की ओर इशारा करते हैं। इसी पूंछ वाले तारे को ध्रुवतारा कहा गया है, जो भारतीय लोक मानस में जाना-माना नाम है। अपना सिर आसमान की तरफ उठाएंगे तो राशिचक्रीय तारामंडल सिंह दिखाई देगा। इसी के अगले पंजे पर मघा तारा प्रतिष्ठित है और पूंछ पर अवस्थित है, डेनेबोला तारा।
दक्षिणी आकाश में एक विशाल जहाज के आकार का तारामंडल दिखाई देता है। इसे आर्गो नाम दिया गया है। वर्तमान वैज्ञानिकों ने इसी जहाजी तारे को तीन भागों में विभाजित कर दिया है। इस प्राचीन जहाज के पाल को कहते हैं, नौकाशीर्ष, पीछे के भाग को नौकापृष्ठ और निचले भाग को कहते हैं, नौकातल। नौकातल का अगस्त्य तारा, आकाश के इस भाग का सबसे अधिक चमकने वाला तारा है। सच्चाई तो यह है कि अगस्त्य समूचे आकाश का दूसरा सबसे ज्यादा दीप्तमान होने वाला तारा है।
आज भी दक्षिणी समुद्र के नाविक, नौसंचालन के लिए अगस्त्य तारे पर ही सर्वाधिक भरोसा करते हैं। नौसंचालन में दूसरा मददगार त्रिशंकु नामक तारा है। इन चार तारों ने मिलकर इसे त्रिशंकु-सा आकार दिया है। इस त्रिशंकु को किन्नर तारामंडल ने घेरा हुआ है। इसके तारे मिलकर आधा मनुष्य और आधा घोड़े जैसा आकार बनाते हैं। किन्नर के अगले खुर के पास है, आकाश का तीसरा सबसे ज्यादा चमकने वाला मित्र तारा है। इसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी है। इसके निकट भूतेश तारामंडल में स्वाति नाम का दूसरा तारा प्रतिष्ठित है। इसे चैथा सबसे ज्यादा चमक वाला तारा माना जाता है।
आसमान का पांचवां सबसे अधिक रोशन रहने वाला तारा है, अभिजित। यह पूरब से उदय होने वाला वीणा तारामंडल का सबसे ज्यादा प्रकाशित तारा है। अभिजित से ही लगभग जुड़े हुए स्वर्गिक त्रिकोण और ग्रीष्म त्रिकोण नाम के तारे हैं। मई के महीने में सूर्यास्त के समय ग्रीष्म त्रिकोण का उदय, ग्रीष्म ऋतु के आगमन का पूर्व संकेत है। हमारे मनीषियों और आधुनिक वैज्ञानिकों ने रात्रि में आकाश को निहारने का लंबा क्रम जारी रखते हुए करीब छह हजार तारों की गिनती की है। इनमें कुछ चमकीले हैं, कुछ धुधंले तो कुछ बड़ी कठिनाई से दिखने वाले तारे हैं। आकाशगंगाओं में दिखने वाले ही करीब चार सौ अरब तारे हैं।
कृष्ण विवर
ब्रह्मांड के भीतर कृष्ण विवर है, जिसे अंग्रेजी में ‘ब्लैक होल’ कहा जाता है। कृष्ण विवर यानी एक ऐसा पाताली गड्ढा, जिसमें गिर कर कुछ भी वापस नहीं आता। हालांकि स्टीफन हांकिन्स ने दावा किया था कि गामा किरणें अपनी अधिक ऊर्जा के बल पर इस अंधकूप से बाहर निकलने में सक्षम हैं। भारतीय खगोल विज्ञानी डा. चंद्रशेखर को जिस अनुसंधान पर नोबेल पुरस्कार मिला है, वह इसी कृष्ण विवर से संबंधित है। उन्होंने माना है कि यदि किसी तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 1.4 गुना से कम है, तब उसकी परिणति श्वेत वामन तारे के रूप में होती है।
दूसरी ओर यदि किसी तारे का द्रव्यमान सूर्य से 1.4 गुना अधिक हो तो उसकी परिणति कृष्ण विवर के रूप में होती है। हालांकि सापेक्षता का सिद्धांत देने वाले आइंसटीन का मानना है कि कृष्ण विवर अति संघनित द्रव्य के द्वारा तीव्र रूप से वक्र किया गया दिक और काल है, जिसमें से उल्टी छलांग मारकर कुछ भी बाहर नहीं निकल सकता है। प्रकाश भी नहीं। यह दिखता ही नहीं है। यदि इसमें कोई द्रव्य गिरेगा, तब एक बारगी इसमें से गामा किरणें निकल सकती हैं, जिन्हें देखकर उनकी स्थिति का आनुमान लगा सकते हैं।
इसके अलावा उसके चारों तरफ परिक्रमा करते तारों तथा अन्य पिंडों की गति से भी कृष्ण विवर की स्थिति के द्रव्यमान का अनुमान लगाते हैं। इसी विधि से वैज्ञानिकों ने विशाल मंदाकिनयों के केंद्र में विराट कृष्ण विवर की उपस्थिति मानी है। कृष्ण-विवर में प्रकाश जाकर निकल नहीं पाता। ऐसा क्यों है? क्योंकि अंधकूप में गुरुत्वाकर्षण बल इतना अधिक है कि वहां की एक चम्मच मिट्टी का भार, पृथ्वी के एक करोड़ टन वजन के बराबर है। ल्ल