पूनम नेगी
महात्मा गांधी जन्मजात साहसी नहीं थे। स्कूली शिक्षा के दौरान वे अपने से कमजोर लड़कों से भयभीत रहते थे। अपने संस्मरण में बापू लिखते हैं कि एक दिन अंधेरे में उनको भयभीत होते देख रंभा नाम की उनके परिवार की घरेलू सहायिका ने उनसे कहा कि जब भी किसी भी परिस्थिति में तुम्हें डर लगे तो तुम पूरे विश्वास के साथ राम नाम का जप किया करो। उन्होंने उस सुझाव का अनुगमन किया और राम नाम के अमोघ अस्त्र से उनका डर सदा सदा के लिए दूर भाग गया। यह राम नाम बचपन से लेकर आखिरी समय तक उनकी जीवनीशक्ति बना रहा।
राम नाम का हर जप उनको भगवान के और निकट ले जाता है
राम नाम के इस महामंत्र को उन्होंने कभी एक पल के लिए भी नहीं बिसराया। अपने जीवन के इस अमोघ महामंत्र की महत्ता पर महात्मा गांधी ने लिखा कि जब कोई दैवीय चेतना व्यक्ति के अंतस को आलोकित कर देती है तो वह व्यक्ति जीवन की प्रत्येक परीक्षा में सहज रूप से सफल हो जाता है। वे कहते थे कि राम नाम के महामंत्र की हर पुनरावृत्ति हर बार उनके जीवन में नए प्रकाश का वाहक बनकर सामने आती है। राम नाम का हर जप उनको भगवान के और निकट ले जाता है।
राम नाम का महामंत्र नकारात्मक पक्ष को सकारात्मक पक्ष में बदल देता
महात्मा गांधी का अनुभूत सत्य था कि राम नाम का महामंत्र वह आध्यात्मिक सूत्र है जो व्यक्तित्व के नकारात्मक पक्ष को सकारात्मक पक्ष में बदलने की प्रचंड सामर्थ्य रखता है। यह क्रोध को करुणा, बुरे भाव को सद्भाव और घृणा को प्रेम में परिवर्तित कर देता है। यह मस्तिष्क को शांत बना देता है और विभक्त और परस्पर विरोधी विचारों को शांत करके चेतना के गहन स्तरों तक ले जाता है।
प्रतिदिन मीलों टहलते समय भी राम नाम का जप करते थे बापू
उनके लिए राम नाम का महामंत्र उनके जीवन का अक्षय आनंद का स्रोत था। वे प्रतिदिन मीलों टहलते समय भी इस राम नाम का जप करते थे। जप की यह क्रिया तब तक निरंतर चलती थी जब तक मंत्र का अंत: संगीत और उनके कदमताल श्वास की गति को स्थायित्व नहीं प्रदान कर देते थे। इस मंत्र साधना ने उन्हें भय और क्रोध पर नियंत्रण करना सिखाया। परिणाम यह हुआ कि उनकी आंतरिक शांति को मन की सतह पर चलने वाली अशांति या किसी अन्य तरह का हिंसक व्यवधान कभी भी हिला नहीं सका था न उसका नाश कर सकता था। इसीलिए वे राम पर पूर्णत: आश्रित हो गए थे।
तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस को भक्ति का सर्वोत्तम ग्रंथ मानने और प्रेरणा प्राप्त करने वाले महात्मा गांधी के बीज मंत्र के ‘राम’ आखिर हैं कौन? लोगों के जेहन में प्राय: यह सवाल कौंधता रहता है और यह स्वाभाविक भी है। दरअसल बापू राम के सगुण और निर्गुण दोनों रूपों को स्वीकार करते हुए भी अपने राम को लोक के राम से अलग ही रखते हैं। उनके राम शाश्वत, अजन्मा और अद्वितीय हैं।
वह तो जगत के स्वामी हैं। महात्मा गांधी राम के इसी स्वरूप की आराधना करते रहे। वे केवल उसी के अवलंबन के आकांक्षी रहे और चाहते थे कि हम सब भी वैसे ही हों। उनकी निगाह में राम सबके लिए बराबर हैं। अत: किसी अन्य मतावलंबी को उनका नाम लेने से आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इसी कारण महात्मा गांधी के राम अद्भुत हैं। वह सोने-जागने से लेकर दर्द निवारक का भी काम करते हैं। शर्त यह है कि राम का नाम मन और हृदय से निकले।
महात्मा गांधी एक बेहतरीन संप्रेषक थे। अपनी बात को जनता तक पहुंचाने की कला में माहिर। वे कहते हैं कि हनुमान के पास अपार शक्ति थी। उन्होंने पर्वत उठाया और समुद्र लांघ गए। ऐसा इसलिए हो सका कि राम हनुमान के केवल होंठों पर नहीं, उनके हृदय में विराजमान थे।
महात्मा गांधी की संपूर्ण जीवन गाथा भय से अभय की यात्रा का दुर्लभ दस्तावेज है जिसे कोई भी आसानी से बांच सकता है। राम महात्मा गांधी के इतने निकट रहे कि उन्होंने अपने आदर्श समाज का नाम ही रामराज्य रख दिया। वे कहते हैं कि यदि किसी को रामराज्य शब्द बुरा लगे तो मैं उसे धर्म राज्य कहूंगा।
