भूमि अधिग्रहण विधेयक मोदी सरकार के गले की फांस बन गया है। कांग्रेस इस मामले में भाजपा के खिलाफ एक तरफ सारे विपक्ष को लामबंद करने में सफल होती दिख रही है तो दूसरी तरफ भाजपा सरकार इस विधेयक को राज्यसभा में पेश करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है।

संसद के उच्च सदन में सरकार वैसे भी खासे अल्पमत में है। भाजपा अपने विधेयक में आधा दर्जन संशोधनों के बावजूद अपने विधेयक के किसान हितैषी होने का संदेश दे पाने में नाकाम रही है। देश के किसान वैसे भी अब मोदी से मायूस हैं। उन्हें फसल का लाभकारी दाम दिलाने का अपना चुनावी वादा मोदी ने भुला दिया है। ऊपर से गन्ना किसानों को उनका बकाया नहीं मिल पा रहा। किसान संगठनों ने बुधवार को केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन किया।

इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भूमि विधेयक पर अण्णा हजारे को जवाब दे दिया। सोनिया ने हजारे के इस नजरिए पर सहमति जताई है कि नया प्रस्तावित भूमि कानून किसानों के हित में नहीं है। उधर भारतीय किसान यूनियन समेत देश के कई किसान संगठनों ने बुधवार को राजधानी में बड़ा प्रदर्शन किया और केंद्र सरकार से मांग की कि भूमि अधिग्रहण से पहले सौ फीसद किसानों की मंजूरी ली जानी चाहिए। ‘इंडियन कॉर्डिनेशन कमेटी आॅफ फार्मर्स मूवमेंट’ से संबद्ध अनेक किसान संगठनों के बैनर तले जंतर-मंतर पर बड़ी संख्या में किसान जमा हुए।

भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने पत्रकारों से कहा कि सरकार ने किसानों को विश्वास में लिए बिना भूमि अधिग्रहण विधेयक में इन संशोधनों को पेश किया है। हमारी बुनियादी मांग है कि अधिग्रहण से पहले उन सभी किसानों की सहमति जरूरी हो जिनकी जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा। उन्होंने कहा कि किसान देश का विकास बाधित नहीं करना चाहते। लेकिन जब तक सरकार विधेयक वापस नहीं लेती या कम से कम उनकी मांगों के संबंध में उन्हें कुछ आश्वासन नहीं मिलते तब तक वे प्रदर्शन जारी रखेंगे।

टिकैत ने कहा कि किसी भी मामले में उर्वर भूमि का अधिग्रहण नहीं होना चाहिए और केवल सार्वजनिक उद्देश्य से अधिग्रहण किया जा सकता है। निजी परियोजना के लिए या सार्वजनिक-निजी परियोजना के लिए कोई जमीन नहीं ली जा सकती। आप नेता योगेंद्र यादव ने भी प्रदर्शन में भाग लिया और विधेयक को किसान विरोधी करार देते हुए कहा कि वे किसानों की वजह से सत्ता में आए और अब उनके साथ छल कर रहे हैं। जिन्होंने किसानों की अनदेखी की और उनके खिलाफ गए, इतिहास ने उन्हें दिखा दिया है कि किसानों ने उन्हें छोड़ा नहीं है। उन्होंने कहा कि क्या सरकार किसी अन्य जमीन के मालिक की मंजूरी के बिना उसे खरीद या बेच सकती है तो किसानों की जमीन बेचने से पहले उनकी सहमति लेने के लिए तैयार क्यों नहीं है। बीकेयू महासचिव युद्धवीर सिंह ने कहा कि स्वामीनाथन आयोग की समस्त सिफारिशों को लागू किया जाना चाहिए।

केंद्र की भूमि अधिग्रहण नीति को लेकर जारी गतिरोध के बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने जमीन की प्रक्रिया का सरलीकरण कर दिया। अब स्ववित्त पोषित परियोजनाओं के लिए भूस्वामियों और खरीदार के बीच सामान्य अनुबंध करना होगा। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में यह फैसला गया। विकास परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में होने वाली देर और भूस्वामियों से अदालती लड़ाई से बचने के लिए यह फैसला किया गया है।

इस बार सरकार ने सीधे तौर पर भूमि खरीद की प्रक्रिया शुरू की है ताकि उसे आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे के लिए हरदोई, आगरा व कन्नौज में जमीन लेने के वास्ते हुई दिक्कतों का दोबारा सामना ना करना पड़े। सरकार ने सबसे पहले लखनऊ मेट्रो रेल परियोजना के लिए भूस्वामियों की रजामंदी से जमीन अधिग्रहीत की थी। राज्य सरकार ने यह फैसला ऐसे वक्त लिया है जब 12 से ज्यादा विपक्षी राजनीतिक दल लोकसभा में पिछले हफ्ते पारित किए गए भूमि अधिग्रहण विधेयक को ‘किसान विरोधी’ करार देते हुए आंदोलनरत हैं।

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस महीने के शुरू में भी कहा था कि केंद्र और प्रदेश की विकास परियोजनाओं के लिए जमीन का अधिग्रहण उसके मालिक किसानों की रजामंदी के बगैर किसी भी कीमत पर नहीं किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक, शहरी क्षेत्रों में जमीन अधिग्रहण के बदले दिया जाने वाला मुआवजा बाजार मूल्य या सर्किल दर के दोगुने से ज्यादा नहीं होगा।

इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में अधिग्रहण के एवज में बाजार मूल्य या सर्किल दर के चार गुणे से ज्यादा मुआवजा नहीं दिया जाएगा।

सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि भूमि अधिग्रहण के वक्त उसके मालिक किसान को उस जमीन पर लगे पेड़ों और खड़ी फसल का मुआवजा भी देना होगा। परस्पर सहमति से जमीन का अधिग्रहण नहीं हो पाने की स्थिति में 2013 में तत्कालीन कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के पारित कानून और संबंधित राज्य सरकार के आदेश प्रभावी होंगे। उन्होंने बताया कि नई भूमि अधिग्रहण नीति से जमीन लेने की जटिल प्रक्रिया आसान होगी। इससे जमीन की अच्छी कीमत की अदायगी, विक्रेता की रजामंदी व प्रभावित लोगों का पुनर्वास तय किया जाएगा।

जमीन अधिग्रहण विधेयक के विरोध से अपनी खोई जमीन तलाशने के मनसूबे पाल रही कांग्रेस ने बुधवार को कहा कि वह भूमि अधिग्रहण विधेयक के विरोध में 23 मार्च को तमिलनाडु में प्रदर्शन करेगी। पार्टी ने केंद्र से इसे वापस लेने का भी अनुरोध किया। तमिलनाडु प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष इलनगोवन ने चेन्नई में कहा कि चेन्नई, मदुरै, कोयंबटूर, तिरूची, सलेम और शिवगंगा समेत 31 जिलों में विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे।

इलनगोवन ने कहा कि वे शहर में प्रदर्शन का नेतृत्व करेंगे वहीं केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम शिवगंगा में आंदोलन की अगुवाई करेंगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री मणि शंकर अय्यर और ईएमएस नचियप्पन क्रमश: तंजावुर और डिंडीगुल में प्रदर्शनों की अगुआई करेंगे।