मध्यप्रदेश में एक  शख्स के गुमशुदा होने या उसकी मां के आरोपों के मुताबिक फर्जी एनकाउंटर में मारे जाने का मामला 19 साल बाद भी नहीं सुलझ पाया है। विमला देवी नाम की महिला अब इस दुनिया से जा चुकी है लेकिन उसकी छेड़ी हुई लड़ाई अभी भी जारी है। 

इस मामले में अब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। हद तो यह है कि कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में 2012 से जांच अधिकारी विशेष अदालत के सामने पेश ही नहीं हुए हैं। हाईकोर्ट ने इसपर नाराजगी जताई और कहा कि यह पुलिस विभाग की ओर से असंवेदनशीलता के अलावा और कुछ नहीं है। न्यायालय ने डीजीपी को मामले की जांच करने का भी निर्देश दिया है।

विमला देवी नहीं रहीं लेकिन लड़ाई बाकी है

कहानी शुरू होती है 22 अप्रैल, 2005 से, जब डबरा पुलिस स्टेशन के स्थानीय एसएचओ और क्षेत्र के अन्य अधिकारी विमला देवी के तीन बेटों को थाने ले गए थे। 27 अप्रैल को उसके दो बेटों बालकिशन और कल्ली को छोड़ दिया गया था, लेकिन उसने आरोप लगाया था कि तीसरे बेटे खुशाली राम को पुलिस हिरासत में रखा गया है। कुछ दिन बाद उसने एक अखबार में पढ़ा कि उसका बेटा एनकाउंटर में मारा गया है। खबर में उसे एक इनामी डकैत बताया गया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि अख़बार ने तस्वीर में उनके बेटे की पहचान “कालिया उर्फ़ बृजकिशोर” के तौर पर की थी। 

इसके बाद 2007 में मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दिया गया और पुलिस रिपोर्ट सामने आने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि ‘कालिया उर्फ ​​बृजकिशोर जीवित है और जिला जेल, झांसी में बंद है’। 

इसके बाद विमला देवी ने दतिया के तत्कालीन एसपी एमके मुदगल और अन्य पुलिसकर्मियों पर अपने बेटे की फर्जी मुठभेड़ में हत्या करने का आरोप लगाया और जांच की मांग की।

मध्य प्रदेश की एक निचली अदालत ने इससे पहले राज्य सरकार को 2007 में उसके बेटे की मौत के मामले में कोई कार्रवाई न करने के लिए 20,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था। इस महीने की शुरुआत में जस्टिस विवेक रूसिया और राजेंद्र कुमार वाणी की बेंच ने कहा था कि अंतिम क्लोजर रिपोर्ट की विशेष अदालत द्वारा जांच की जानी जरूरी है। 

क्यों नहीं बढ़ रही कार्यवाही? 

इस मामले में आए ताजा आदेश से पता चलता है कि क्लोजर रिपोर्ट पर विचार करने में देरी हो रही है क्योंकि जांच अधिकारी वीरेंद्र कुमार मिश्रा 2012 से विशेष अदालत के समक्ष पेश नहीं हुए हैं। 

जानकारी के मुताबिक  वह एसपी, दतिया के पद पर तैनात हैं। हैरानी की बात यह है कि उन्हें 2012 से अदालत के समक्ष पेश होने के लिए एक या दो दिन का समय नहीं मिल सका है। 

जानकारी यह भी है कि याचिकाकर्ता विमला देवी को आज तक 20,000 रुपये भी नहीं मिले हैं जिसका आदेश निचली अदालत ने 2007 में दिया था।