कोरोना काल में जब परेशान हाल मरीजों-तीमारदारों की मदद के काम में एक लड़की कूद पड़ी तो बदले में उसे क्या मिला? फोन पर अश्लील संदेश। मदद देने के सिलसिले में इस लड़की ने फोन नंबर देने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई थी। उसे विश्वास था कि मानवता के लिए इस कठिन समय में कोई इतना घटिया तो नहीं हो सकता कि नंबरों का दुरुपयोग करे।
यह आपबीती लिखी गई है ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे नाम के फेसबुक और इंस्टाग्राम पेज पर। वह बताती है कि उसकी दादी कोविड की दूसरी लहर शुरू होने से पहले की कोरोना वाइरस सें संक्रमित हो गई थीं। हमें लगा कि हम लोग आसानी से दवा आदि का इंतजाम कर लेगे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। उस समय तक सोशल मीडिया पर मदद की गुहार और उस गुहार की बार-बार रीट्वीट या शेयरिंग का चलन शुरू नहीं हुआ था। ऐसे में हमको अपने संपर्कों या उनके बताए संपर्कों को दिन में अनगिनत फोन करने पड़ रहे थे। आखिरकार, दवाएं पंजाब में मिली और उन्हें फ्लाइट से मंगाना पड़ गया।
अपनी दादी के लिए दवा न जुटा पाने की असहाय स्थिति ने मुझे झकझोर कर रख दिया। मैंने कोविड वालंटियर यानी स्वयंसेवक बनने का फैसला कर लिया। चूंकि मैं दादी के वास्ते बहुत भागी-दौड़ी थी तो मुझे काफी ज्ञान हो चुका था। सो, मैंने सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन, बेड और प्लाज़्मा की उपलब्धता के बारे में लिखना शुरू कर दिया। जहां कहीं किसी ने कॉन्टैक्ट डिटेल मांगे तो मैंने बताने से कभी गुरेज नहीं किया। मुझे यकीन था कि संकट काल में कोई मेरे साथ बदमाशी नहीं करेगा।
लेकिन, इस लड़की का विश्वास शीघ्र ही टूट गया और उसको मदद की जरूरतमंदों के फोनकॉल के बीच-बीच अश्लील संदेश, गंदे फोटो आने लगे। वह लिखती है कि सामान्य समय होता तो मैं इन लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करवाती लेकिन यह समय दूसरा था। मदद का समय था। मदद के लिए आ रही सौ कॉल्स के बीच बस ऐसे संदेश भेजने वालों को ब्लॉक करती गई।
एक दिन तो इतनी हद हो गई कि मैं अंदर तक टूट गई। हुआ यह कि मुझे कुछ देर पहले अपने प्रियजन की मौत का संदेश मिला था। उसी उदास क्षण में किसी ने मर्दाना जननांग की फोटो ट्विटर पर डीएम के जरिए मुझ तक भेज दी। मैं टूट गई। मैंने कहा कि कुछ दिन यह काम बंद। मैं बड़ा हताश और असहाय महसूस कर रही थी। सबसे खराब बात यह कि यह सब भोगने वाली मैं अकेली लड़की नहीं थी। दूसरी अनेक लड़कियां जो कोविड वालंटियर के रूप में काम कर रही थीं, उन्हें भी वैसे ही गंदे फोटो और संदंश मिल रहे थे।
तो परेशान होकर मैंने सेवाकार्य बंद कर दिया। लेकिन यह ज्यादा न चल सका। एक हफ्ते बाद एक लड़की का संदेश मिला। उसकी मां की जान बच गई थी। मैंने उसको मदद दी थी। लड़की मुझे धन्यवाद दे रही थी। इस संदेश से मुझे इतनी ऊर्जा मिली कि मैंने दोबारा मदद देनी शुरू कर दी। अब तो काफी समय हो गया है। गंदे संदेश अब भी आते हैं। मैं उन्हें ब्लॉक कर देती हूं।
दूसरा वक्त होता तो मैं थोड़ी गंदी भाषा में कहती—अबे थोड़ा मर्दानगी बढ़ा ले। लेकिन, अब तो उनसे बस इतना कहना चाहती हूं कि अपने शरीर में एक दिल उगा ले।