पिछले कुछ समय से बिहार की जनता चुनावों में ‘कोई उम्मीदवार पसंद नहीं’ यानी नोटा का बटन दबाने में तेजी दिखाने लगी है। इससे राजनीतिक दलों के लिए संदेश साफ है कि सही उम्मीदवारों को टिकट दें, नहीं तो जनता उन्हें जीतने नहीं देगी। 2014 के लोकसभा चुनाव में पांच लाख अस्सी हजार से ज्यादा मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया। यह कुल मतों का 1.64 फीसदी रहा। 2019 चुनाव में यह बढ़कर दो फीसदी हो गया। राज्य की 40 लोकसभा सीटों में करीबन आठ लाख से ज्यादा मतदाताओं ने नोटा बटन दबाया।

सामान्य सीटों के मुकाबले सुरक्षित सीटों पर ज्यादा नाराजगी

आंकड़े बताते है कि 34 सामान्य सीटों पर छह लाख सोलह हजार से ज्यादा और छह सुरक्षित लोकसभा सीटों पर दो लाख से ज्यादा वोटरों ने नोटा का उपयोग किया। इसका मतलब है कि सामान्य सीटों के मुकाबले सुरक्षित सीटों के वोटरों में ज्यादा प्रत्याशियों के प्रति नाराजगी रही।

2019 संसदीय चुनाव में बिहार के गोपालगंज में सबसे ज्यादा नोटा का प्रयोग हुआ। यहां पांच फीसदी मतदाताओं ने नोटा में मत डाले। इसी तरह पश्चिम चंपारण में 4.51 फीसदी, जमुई में 4.16, नवादा में 3.78, मधेपुरा में 3.35, वाल्मीकिनगर में 3.33, गया में 3.17 और भागलपुर में 3 फीसदी वोट पड़े।

एक प्रत्याशी की जीत-हार में 1,751 का था अंतर, 27,583 मत नोटा में पड़े

उम्मीदवारों के प्रति ऐसी नाराजगी कभी-कभी जीतने वाले प्रत्याशी की किस्मत पराजय में बदल देती है। 2019 संसदीय चुनाव में जदयू के चन्देश्वर चंद्रवंशी को जीत मिली थी। इन्हें 3,35,584 मत मिले थे, जबकि राजद प्रत्याशी सुरेंद्र प्रसाद यादव को 3,33,833 वोट मिले थे। इनके जीत का अंतर केवल 1,751 मत था। जबकि 27,583 मत नोटा में पड़े।

इसी तरह 2014 लोकसभा चुनाव में भागलपुर संसदीय सीट के नतीजे पर गौर किया जा सकता है। राजद प्रत्याशी शैलेश कुमार उर्फ वुलो मंडल ने बीजेपी उम्मीदवार शाहनवाज हुसैन को 9,485 मतों से हराया था, जबकि नोटा में 11,875 मत पड़े थे। 2019 चुनाव में ही समस्तीपुर सीट से 6,872 मतों से जीत हुई थी, जबकि नोटा में 29,211 वोट पड़े थे।

जाहिर है मतदाताओं को चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवारों में से कोई पसंद नहीं था। लोगों का कहन है कि राजनीतिक दलों को अपनी सोच बदलनी चाहिए। बुजुर्ग मतदाता केदार यादव कहते हैं नोटा में अपना मत देने वाले चाहते है कि स्वच्छ छवि का उम्मीदवार मैदान में उतारा जाए। इस संदेश पर राजनीतिक दल कितना अमल कर रहे हैं, यह इस बार के चुनाव में देखना होगा।