ग्रेटर नोएडा के जनकपुर के अचार प्राइमरी स्कूल में कक्षा 1 और कक्षा 2 के बच्चे एक साथ बैठे हुए हैं। ब्लैकबोर्ड को दो हिस्सों में बांट दिया गया है—एक हिस्सा कक्षा 2 के लिए, तो दूसरा कक्षा 1 के लिए। बड़े बच्चों को जहां भी जगह मिल रही है, वहीं बैठा दिया गया है। कक्षा 3 और कक्षा 4 के बच्चे ओपन कोर्टयार्ड में बैठे हैं, जबकि कक्षा 5 के बच्चे एक टिन शेड के नीचे बरामदे में बैठने को मजबूर हैं। इस स्कूल में इस समय 155 बच्चे पढ़ रहे हैं, लेकिन शिक्षक केवल दो हैं।
स्कूल की प्रिंसिपल शालिनी बताती हैं, “हमारे स्कूल में कुल आठ शिक्षक हैं, लेकिन चार की बीएलओ ड्यूटी लगी हुई है। परीक्षा नजदीक हैं, ऐसे में सबकुछ मैनेज करना बेहद मुश्किल हो रहा है।” वह कहती हैं कि अकेले अटेंडेंस लेने में ही 30 मिनट लग जाते हैं और बच्चों का सिलेबस पूरा नहीं हो पाया है।
बीएलओ ड्यूटी से स्कूलों में शिक्षक कम
जब से उत्तर प्रदेश सरकार ने हजारों शिक्षकों को बीएलओ की ड्यूटी पर लगाया है, नोएडा और ग्रेटर नोएडा के राज्य स्तरीय स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी हो गई है। इसके चलते बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हुई है। स्टॉप-गैप अरेंजमेंट के तहत कई कक्षाओं को आपस में मिला दिया गया है।
उत्तर प्रदेश प्राइमरी टीचर्स एसोसिएशन, गौतम बुद्ध नगर के अध्यक्ष प्रवीण शर्मा कहते हैं, “कुल 1,800 शिक्षकों की ड्यूटी बीएलओ के रूप में लगाई गई है। कई ऐसे स्कूल हैं जहां सिर्फ 2–3 शिक्षक पूरा स्कूल चला रहे हैं। इस तरीके से चीजें संभालना नामुमकिन है, लेकिन कोई हमारी बात नहीं सुन रहा।”
तीन स्कूलों से इंडियन एक्सप्रेस की ग्राउंड रिपोर्ट
इंडियन एक्सप्रेस ने जब तीन स्कूलों का दौरा किया, तो वहां भी ज्यादातर टीचर महिलाएं थीं, जो एक कमरे से दूसरे कमरे की ओर भागते-भागते पढ़ा रही थीं। दनकौर स्कूल में कक्षा 1 और 2 के बच्चे काफी शोर मचा रहे थे। जैसे ही टीचर मंजूषा मौर्य अंदर आए, बच्चों ने ‘गुड आफ्टरनून मैम’ कहकर अभिवादन किया। उन्होंने आते ही ब्लैकबोर्ड को दो हिस्सों में बांटा—कक्षा 2 के लिए डबल डिजिट वाला सवाल और कक्षा 1 के लिए सिंगल डिजिट वाला।
मंजूषा बताती हैं, “हम बीमार होने के बाद भी जल्दी स्कूल पहुंच रहे हैं। हमारे बच्चे किसी अमीर परिवार से नहीं आते। उनके माता-पिता मजदूर हैं, पढ़े-लिखे भी नहीं। हम ही उनकी आखिरी उम्मीद हैं।”
18 किलोमीटर दूर घरबार कंपोजिट स्कूल में भी स्थिति एक जैसी है। वहां 13 शिक्षक होने के बावजूद आठ की बीएलओ ड्यूटी लगा दी गई है। स्कूल की प्रिंसिपल वंदना बताती हैं कि वह कक्षा 6 से 8 तक को अकेले संभाल रही हैं। बुधवार को यहां को 224 बच्चों में से 78% बच्चे उपस्थित थे।
कई स्कूल पढ़ा रहे बस चार विषय
बीएलओ प्रक्रिया शुरू होने के बाद कई स्कूलों में केवल कुछ ही विषय पढ़ाए जा रहे हैं—गणित, विज्ञान, हिंदी और अंग्रेजी। नोएडा के सबसे बड़े कंपोजिट स्कूल में 653 बच्चे हैं, लेकिन कई बच्चे जमीन पर बैठे थे। प्रिंसिपल रजनी यादव कहती हैं, “क्लासरूम तो हैं, लेकिन 20 में से सिर्फ 6 शिक्षक मौजूद हैं। हमारा काम क्या है—बच्चों को पढ़ाना, मिड-डे मील कराना या फिर सिर्फ मैनेज करना? इस माहौल में बच्चों को पढ़ाना संभव नहीं है।” रजनी के अनुसार, कुछ माता-पिता शिकायत कर रहे हैं कि बच्चों को होमवर्क नहीं मिल रहा और पढ़ाई पर गहरा असर पड़ा है।
माता-पिता की शिकायतें बढ़ीं
तीन बच्चों की मां, 35 वर्षीय कुसुम देवी कहती हैं, “दो हफ्तों से मेरे बेटे (8 और 10 साल) स्कूल के बाद सीधे खेलने चले जाते हैं। न होमवर्क है, न पढ़ाई। अब पता चला कि आधे से ज्यादा शिक्षक तो स्कूल में होते ही नहीं, उनकी बीएलओ ड्यूटी लगी है। 10 दिसंबर से हाफ-यर्ली परीक्षा शुरू हो रही है, ऐसे में हम बहुत परेशान हैं।” एक अन्य पैरेंट रंजीत कहते हैं, “मेरे बच्चे सिर्फ संस्कृत और होम सांइस पढ़ रहे हैं। गणित और विज्ञान पढ़ाने वाला शिक्षक ही नहीं है।”
प्रशासन की प्रतिक्रिया
इंडियन एक्सप्रेस ने जब एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, नोएडा अतुल कुमार से बात की, तो उन्होंने कहा, “प्रशासन कोशिश करता है कि बीएलओ ड्यूटी में कम से कम शिक्षक लगाए जाएं, हम ये बात जानते हैं कि शिक्षक पहले स्कूल में पढ़ाते हैं, फिर बीएलओ का काम करते हैं।
जनसत्ता की बीएलओ पर ग्राउंड रिपोर्ट
कुछ दिन पहले जनसत्ता ने बीएलओ की स्थिति पर एक विस्तृत पड़ताल की थी जिसमें कई बीएलओ से बात की गई, उनसे बात कर कई तरह की प्रशासनिक चुनौतियों के बारे में तो पता चला ही, इसके अलावा बीएलओ पर क्या दबाव है, इस बारे में भी काफी कुछ पता चला। जनसत्ता ग्राउंड रिपोर्ट पढ़िए कैसे मतदाता भी एसआईआर प्रक्रिया से अवगत नहीं हैं और बीएलओ को ही बार-बार चक्कर काट उनसे दस्तावेज लेने पड़ रहे हैं। जनसत्ता की इस विशेष खबर को पूरा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
