उत्तराखंड हिमालय की पर्वत कंदराओं में बसा हुआ है जो प्राकृतिक दृष्टि से तो अत्यंत समृद्धशाली है, परंतु साथ ही यह हिमालय क्षेत्र शैशवावस्था में है। जिस कारण इस क्षेत्र में लगातार भूगर्भीय बदलाव हो रहा है और हिमालय का यह क्षेत्र भूकम्प से भी अछूता नहीं है। बीते कई सालों में आए भूकम्प यह दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र भूकम्प की दृष्टि से सुरक्षित नहीं है।
पिछले दिनों उत्तराखंड में भूकम्प की गतिविधियां बढ़ी है और जिस तरह से लगातार हल्के भूकम्प आए दिन आ रहे हैं। उनको देखते हुए भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तराखंड में इस सदी का सबसे भयानक भूकम्प आ सकता है। जिससे भारी तबाही मच सकती है। उत्तराखंड में पिछले एक में 50 से ज्यादा भूकम्प के झटके महसूस किए गए हैं और पिछले दो-ढाई महीनों में तो डेढ़ दर्जन से ज्यादा भूकम्प उत्तराखंड में आए हैं।
भूकम्प का आना है लगातार जारी
एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार इस साल 20 जनवरी को देहरादून में 2.8 तीव्रता का भूकम्प आया था । 22 जनवरी को पिथौरागढ़ में 3.8 तीव्रता, 25 जनवरी को पिथौरागढ़ में 2.1 तीव्रता, 29 जनवरी को चमोली में 2.0 तीव्रता, 10 फरवरी को रुद्रप्रयाग में 2.5 तीव्रता , 20 फरवरी को बागेश्वर में 2.5 तीव्रता और 3 अक्टूबर को उत्तराखंड में भूकम्प के झटके महसूस किए गए, जिसका केंद्र उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ की सीमा से लगे हुए नेपाल में था। इस भूकम्प की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 2.1 मापी गई थी।
7 अक्तूबर को उत्तराखंड के पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में भूकम्प आया था। जिसकी तीव्रता 5.5 मापी गई थी। जिसका केंद्र उत्तराखंड से सटे हुए नेपाल में था और इसका केंद्र बिंदु जमीन से 10 किलोमीटर नीचे था। अभी हाल में 16 नवंबर को उत्तरकाशी में भूकम्प के झटके महसूस किए गए। ये भूकम्प देर रात 2 बजकर 2 मिनट 10 सेंकड पर आया था। इसका केंद्र उत्तरकाशी में जमीन के अंदर गहराई में पांच किलोमीटर था।
भूकम्प के झटके उत्तरकाशी के सिलक्यारा क्षेत्र में भी महसूस किए गए थे। जहां पर सुरंग में 41 मजदूर फंसे हुए थे। नेशनल सेंटर फार सीस्मोलाजी के अनुसार, रिक्टर स्केल पर इस भूकम्प की तीव्रता 3.1 मापी गई थी। उत्तराखंड में बार-बार आ रहे भूकम्प के झटकों के साथ भले ही लोगों ने जीना सीख लिया हो, लेकिन फिर भी ये झटके लोगों में दहशत पैदा कर ही देते हैं।
उत्तराखंड में भूकम्प की दहशत
उत्तरकाशी के 1991 के भीषण भूकम्प को याद करके लोग अब अभी भी दहशत में आ जाते हैं। उत्तरकाशी में 20 अक्तूबर 1991 के बड़े भूकम्प ने जबरदस्त तबाही मचाई थीं। भूकम्प की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6.8 मापी गई थी। इस आपदा में 768 लोगों की जान गई थी, जबकि 5 हजार से अधिक लोग घायल हुए थे। लगभग 20 हजार से ज्यादा आवासीय भवन पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे, वही उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के चमोली में 29 मार्च 1999 में रिक्टर स्केल पर 6.8 की तीव्रता का भूकम्प आया था।
इस भूकम्प के कारण पास के जिले रुद्रप्रयाग में भी भारी नुकसान हुआ था। कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के प्रोफेसर संतोष ने कुमाऊं के भूकम्प की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों का अध्ययन किया है और इन क्षेत्रों में लगातार भूकम्प आने के कारण इस क्षेत्र में विशेष सतर्कता करने के सुझाव दिए हैं।
12 स्थानों पर भूकम्पमापी यंत्र स्थापित
पिथौरागढ़ मुनस्यारी, तोली, भराणीसैंण चमोली, चंपावत के सुयालखर्क, कालखेत, धौलछीना, मासी, देवाल, फरसाली कपकोट, पांगला .मनन कुमइया चौड़ समेत 12 स्थानों पर भूकम्पमापी यंत्र स्थापित किए गए हैं। एक अध्ययन के अनुसार छह अप्रैल 2005 से दस जनवरी 2017 तक 58 भूकम्प का अध्ययन किया गया है। 2017 के बाद भी एक दर्जन से अधिक छोटे भूकम्प का रिकार्ड दर्ज किया गया हैं।
हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के पूर्व प्रोफेसर आरसी शर्मा का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र में इंडो-यूरेशियन प्लेट की आपसी टकराहट के कारण जमीन के भीतर से ऊर्जा बाहर निकलती रहती है। राज्य के अति संवेदनशील जोन पांच में भूगर्भ में तनाव की स्थिति लगातार बनी हुई है।
बड़े भूकम्प की चेतावनी
आइआइटी रुड़की के सिविल विभाग के प्रोफेसर सत्येंद्र कुमार मित्तल के मुताबिक उत्तराखंड क्षेत्र का भूभाग सिकुड़ने की वजह से इनके नीचे ऊर्जा का भंडार एकत्र हो रहा है, जो कभी भी बड़े भूकम्प का रूप धारण कर सकता है। देहरादून से नेपाल तक हिमालय के नीचे क्षेत्र में ऊर्जा का अतिरिक्त भंडार भारी तादाद में जमा हो रहा है।
उत्तराखंड भूकम्प के अति संवेदनशील जोन पांच में आता है। हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड भूकम्प के लिहाज से संवेदनशील राज्य है और यहां विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है। राज्य के अति संवेदनशील जोन पांच में रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी जिले आते हैं, जबकि ऊधमसिंहनगर, नैनीताल, चंपावत, हरिद्वार, पौड़ी देहरादून टिहरी व अल्मोड़ा जोन चार में हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के कई इलाकों में भूकम्प दस से लेकर 25 किलोमीटर गहराई के बीच भूकम्प आते रहे हैं। भूकम्प में चट्टान के अपेक्षा मिट्टी वाले इलाकों में नुकसान अधिक होता है।