भारतीय वायुसेना के अधिकारी शुभांशु शुक्ला बुधवार को अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले दूसरे भारतीय बन जाएंगे। पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा थे, जिनका SOYUZ T-11 अंतरिक्ष यान 3 अप्रैल, 1984 को सोवियत कजाकिस्तान के बैकोनूर कॉस्मोड्रोम से उड़ा था। राकेश शर्मा की यात्रा सोवियत इंटरकॉसमॉस कार्यक्रम का हिस्सा थी, जिसके तहत 1978 और 1991 के बीच 17 गैर-सोवियत अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा गया था।
भारत-सोवियत संबंधों में मील का पत्थर
1960 के दशक में पहली बार प्रस्तावित इंटरकॉसमॉस के पीछे के लोगों ने इसे मानव रहित और मानवयुक्त अंतरिक्ष उपक्रमों के जरिए पूर्वी ब्लॉक देशों के साथ पारस्परिक रूप से अच्छे संबंध स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया था। यह कहानी कॉलिन बर्गेस और बर्ट विस ने इंटरकॉसमॉस: द ईस्टर्न ब्लॉक्स अर्ली स्पेस प्रोग्राम (2016) में लिखा था।
तकनीकी रूप से गुटनिरपेक्ष होने के बावजूद भारत 1960 के दशक से सोवियत संघ की ओर बढ़ रहा था। इससे अंतरिक्ष क्षेत्र में महत्वपूर्ण सहयोग हासिल हुआ। सोवियत संघ ने भारत के शुरुआती उपग्रहों आर्यभट्ट (1975), भास्कर I (1979) और भास्कर II (1981) के लॉन्च में सहायता करने के अलावा उपकरण और तकनीकी सहायता भी प्रदान की।
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1984 में राकेश शर्मा की अंतरिक्ष उड़ान अंतरिक्ष में भारत-सोवियत सहयोग का शिखर था। सोवियत नेता लियोनिद ब्रेझनेव ने 1980 में अपनी भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक संयुक्त भारत-सोवियत अंतरिक्ष मिशन का सुझाव दिया। मिशन को एक साल बाद आधिकारिक पुष्टि मिली। IAF को दो पायलटों का चयन करने का काम सौंपा गया था, जिन्हें सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण दिया जाएगा। राकेश शर्मा और रवीश मल्होत्रा, दोनों ही IAF के कुशल परीक्षण पायलट थे और इन्हें चयनित किया गया।
परीक्षण पायलट सभी प्रकार के विमानों को संभालने और उनके प्रदर्शन का विश्लेषण करने में कुशल होते हैं, जिन्हें अक्सर पायलटों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह उन्हें अंतरिक्ष यान चलाने के लिए आदर्श बनाता है। ऐतिहासिक रूप से कई अंतरिक्ष यात्री (जिनमें चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति नील आर्मस्ट्रांग भी शामिल हैं) परीक्षण पायलट रहे हैं। इनमें शुभांशु शुक्ला भी शामिल हैं। सितंबर 1982 से राकेश शर्मा और रवीश मल्होत्रा ने मुख्य रूप से मॉस्को से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्टार सिटी में यूरी गगारिन सेंटर में कठिन प्रशिक्षण लिया।
रूसी भाषा पर राकेश शर्मा ने बना ली थी पकड़
अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण केंद्र के वरिष्ठ प्रशासक बोरिस वोलिनोव ने दोनों ट्रेनी के बारे में कहा, “रवीश और राकेश हमारे पास रूसी भाषा के ज्ञान के बिना आए थे। थोड़े समय में ही उन्होंने न केवल इसे सीख लिया, बल्कि इस पर अच्छी पकड़ भी बना ली। वे अपने नोट्स लेते हैं, दस्तावेज़ पढ़ते हैं और परीक्षाए देते हैं। सब कुछ रूसी भाषा में।”
राकेश शर्मा को अंततः तीन सदस्यीय दल का हिस्सा बनने के लिए चुना गया। अनुभवी सोवियत अंतरिक्ष यात्री यूरी मालिशेव और गेनाडी स्ट्रेकालोव उनके साथी थे। वहीं रवीश मल्होत्रा बैकअप क्रू का हिस्सा थे।
अंतरिक्ष में राकेश शर्मा का हफ्ते भर का प्रवास
SOYUZ T-11 अंतरिक्ष यान 3 अप्रैल, 1984 को शाम 6.38 बजे बैकोनूर से 14 मंजिला रॉकेट के ऊपर चढ़ा। इस अखबार के 4 अप्रैल, 1984 के संस्करण में बताया गया कि उड़ान एक अद्भुत नजारा था, जब रॉकेट साफ आसमान में उड़ रहा था और इसकी लपटों की पूंछ अंतरिक्ष को लाल रंग की चमक से भर रही थी और इसके शक्तिशाली इंजन की गर्जना से मीलों तक धरती हिल रही थी।”
लॉन्च के 9 मिनट बाद अंतरिक्ष यान पृथ्वी के चारों ओर अपनी पूर्व-निर्धारित कक्षा में प्रवेश कर गया, जिससे राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय और कुल मिलाकर 138वें व्यक्ति बन गए। भारत अंतरिक्ष में व्यक्ति भेजने वाला 14वां देश बन गया था।
4 अप्रैल को उड़ान भरने के 25 घंटे बाद SOYUZ T-11 अंतरिक्ष यान सैल्यूट 7 अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़ गया। चालक दल ने अगले हफ्ते स्टेशन पर विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग किए, जो 200 किमी से अधिक की ऊंचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा था। राकेश शर्मा ने बाद में एक इंटरव्यू में कहा था, “अंतरिक्ष यान पर इतनी व्यस्त गतिविधियाँ थीं, हममें से प्रत्येक को इतने सारे काम करने थे कि हमारे पास सचमुच बैठकर अंतरिक्ष को देखने का समय नहीं था।”
अंतरिक्ष से भारत की खींची थीं कई तस्वीरें
मिशन के सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उद्देश्यों में से एक टेरा प्रयोग था जिसके लिए राकेश शर्मा और उनके साथियों ने उपमहाद्वीप और हिंद महासागर के आस-पास के क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों का अध्ययन करने के लिए अंतरिक्ष से भारत की कई तस्वीरें खींचीं। बर्गेस और विस ने लिखा, “अंतरिक्ष यात्रियों ने निकोबार और अंडमान द्वीपों की तस्वीरें लीं, ताकि उन शोलों का पता लगाया जा सके, जो तेल और गैस पैदा कर सकते हैं। उन्होंने उपमहाद्वीप के मध्य भाग में वन क्षेत्रों और वृक्षारोपण का निरीक्षण किया, गंगा नदी बेसिन, हिमालय के हिमनद और अलग-अलग महासागर क्षेत्रों में उनकी जैविक उत्पादकता निर्धारित करने के लिए निरीक्षण किया।”
राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष स्टेशन पर प्रतिदिन योग का अभ्यास भी किया। राकेश शर्मा उस समय अंतरिक्ष में गए थे जब भारत का अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम अपनी शुरुआती अवस्था में था और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) किसी भारतीय को अंतरिक्ष में भेजने के बारे में सोचने से दशकों दूर था। इस तरह मिशन से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को सीमित व्यावहारिक लाभ हुआ। हमेशा विनम्र रहने वाले राकेश शर्मा ने बार-बार अपनी व्यक्तिगत उपलब्धि को कम करके आंका है और मिशन को किसी भी चीज़ से ज़्यादा एक बहुत ही प्रतीकात्मक घटना कहा है। बेशक इससे यह कम महत्वपूर्ण नहीं हो जाता।
भारत-सोवियत संबंधों में एक प्रमुख मील का पत्थर होने के अलावा लॉन्च के दिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा कि यह मिशन हमारे दोनों लोगों की भलाई के लिए रचनात्मक सहयोग का एक और उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होंने कहा कि लाखों भारतीयों के लिए राकेश शर्मा की उड़ान एक प्रेरणादायक क्षण था, जिसने राष्ट्रीय गौरव को जगाया।
बर्गेस और विस ने लिखा, “राकेश शर्मा को राजघाट से थोड़ी मात्रा में मिट्टी, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, राष्ट्रपति जैल सिंह, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और तत्कालीन रक्षा मंत्री (बाद में राष्ट्रपति) आर वेंकटरमन के चित्रों के साथ-साथ सैल्यूट-7 स्टेशन पर सभी चालक दल के खाने के लिए ताजे आम और अन्य भारतीय खाद्य पदार्थ के साथ अंतरिक्ष में भेजा गया था।”
‘सारे जहां से अच्छा’
प्रवास के दौरान राकेश शर्मा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ एक टेलीविज़न इंटरव्यू किया, जिसे दूरदर्शन पर लाखों भारतीयों ने देखा। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है। इसपर राकेश शर्मा ने इकबाल की प्रतिष्ठित देशभक्ति कविता का हवाला देते हुए कहा, “सारे जहां से अच्छा।” 11 अप्रैल, 1984 को चालक दल धरती पर लौटा।