मध्य प्रदेश की राजनीति में बीजेपी का भगवा तो गहरा चढ़ा है, लेकिन सीएम पद को लेकर सस्पेंस भी उतना ही बड़ा है। जिस राज्य में एक समय तक सिर्फ शिवराज सिंह चौहान की चर्चा होती थी, वहां पर अचानक से इतने सारे उम्मीदवार खड़े हो चुके हैं कि पुराने खिलाड़ियों को अपनी उम्मीदवारी पर संशय होना शुरू हो गया है। इस बीच मध्य प्रदेश से तो एक ऐसी तस्वीर भी सामने आई है जिसे सिर्फ एक तस्वीर ना मानकर कई जानकार बड़ा पॉलिटिकल मैसेज मान बैठे हैं।
इसे सिर्फ मुलाकात माना जाए क्या?
असल में शुक्रवार को प्रह्लाद सिंह ने शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान उन्होंने एमपी में मिली अप्रत्याशित जीत के लिए शिवराज को बधाई दी। लेकिन सवाल ये कि नतीजे 3 दिसंबर को आए और बधाई देने में प्रह्लाद सिंह को लग गए पांच दिन? इसी वजह से जानकार इसे टाइमिंग का सारा खेल मान रहे हैं क्योंकि खबर है कि वर्तमान में सीएम रेस के मामले में प्रह्लाद सिंह का नंबर काफी आगे चल रहा है। उनके बाद नरेंद्र सिंह तोमर के नाम पर भी चर्चा तेज है। लेकिन इस बार शिवराज सिंह चौहान को लेकर वो चर्चा देखने को नहीं मिल रही।
क्यों सीएम रेस में आगे प्रह्लाद?
जिस तरह से शिवराज सिंह चौहान ने भी दिल्ली जाने से साफ मना कर दिया, जिस तरह से उन्होंने सिर्फ लोकसभा चुनाव पर फोकस करने की बात बोली, जानकार तो इस बात से भी ये मानकर चल रहे हैं कि आलाकामन ने अपना फैसला शिवराज को बता दिया है, शायद इस बार उनका फिर सीएम बनना मुश्किल है। बड़ी बात ये है कि अभी तक सीएम चेहरे को लेकर कोई ऐलान नहीं हुआ है, इसकी घोषणा तो सोमवार को संभव है जब विधायक दल की बैठक बुलाई गई है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में जिस तरह से समीकरण लगातार बदल रहे हैं, उसमें प्रह्लाद सिंह पटेल बाजी मारते दिख रहे हैं।
एमपी की ओबीसी पॉलिटिक्स
प्रह्लाद सिंह पटेल को लेकर इस बार इतनी चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि सियासी महकमें बात ये हो रही है कि इस बार नए चेहरे को मौका देना चाहिए। अब नए चेहरों में पटेल बीजेपी के लिए जातीय समीकरण के लिहाज से मुफीद बैठते हैं। असल में प्रह्लाद सिंह पटेल लोध समुदाय वाले ओबीसी हैं, एमपी में उनकी तादाद निर्णायक है। खुद शिवराज सिंह चौहान भी एक ओबीसी चेहरा रहे हैं, इसी वजह से पार्टी इस समुदाय को खुद से दूर नहीं करना चाहती। अगर शिवराज सिंह चौहान को मौका नहीं दिया गया तो पार्टी को डर है कि कहीं इतना बड़ा वोटबैंक नाराज ना हो जाए। इसी वजह से ओबीसी की जगह दूसरे ओबीसी चेहरे को आगे करने की चर्चा चल रही है।
शिवराज से अच्छे संबंध, बीजेपी हुई निश्चिंत?
यहां ये समझना भी जरूरी है कि शिवराज सिंह चौहान और प्रह्लाद सिंह पटेल के रिश्ते अच्छे माने जाते हैं। ऐसे में अगर शिवराज की जगह पटेल को मौका दिया भी जाता है तो बगावत की संभावना कम रहेगी। पार्टी इस पहलू को भी इस समय बखूबी समझ रही है। इसके ऊपर प्रह्लाद पर बीजेपी का ज्यादा फोकस इसलिए भी जा सकता है क्योंकि जिस समुदाय से वे आते हैं, उसकी सीधे-सीधे एमपी की 70 सीटों पर निर्णायक भूमिका है, 13 लोकसभा सीटों पर भी ये समुदाय असर रखता है। ऐसे में किसी भी कीमत पर प्रह्लाद सिंह पटेल की दावेदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
तोमर भी रेस में, अचानक से पिछड़े क्यों?
वैसे शिवराज सिंह चौहान की भी दावेदारी खारिज नहीं की गई है, लेकिन उनका दिल्ली ना जाना, उनका सीएम पद पर दावा ना ठोकना सभी को हैरान कर गया है। उनके इसी रवैये को देख माना जा रहा है कि शिवराज को मोदी-शाह के मन की बात पता है जहां पर इस बार नए चेहरे पर दांव चलने की पूरी संभावना है। वैसे नए चेहरों में जिक्र नरेंद्र सिंह तोमर का भी हो रहा है। अगर बीजेपी ठाकुर दांव खेलने पर विचार करती है तो उनका नंबर आ सकता है। लेकिन उनकी दावेदारी कुछ कमजोर इसलिए पड़ रही है क्योंकि यूपी-उत्तराखंड में पहले ही ठाकुर मुख्यमंत्री बीजेपी दे चुकी है, ऐसे में ‘सबका साथ सबका विकास’ ध्यान में रखते हुए दूसरे समुदायों पर भी फोकस जमाया जाएगा।